विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन : “विमुद्रीकरण की नीति शेर की सवारी” करने के समान होती है क्योंकि लाभ और जोखिम दोनों का स्तर काफी उच्च होता है। इस नीति के क्रियान्वयन से जहाँ एक ओर काली अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार होता है तथा अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता एवं दक्षता बढ़ती है तो वहीं दूसरी ओर इसमें सामाजिक-अर्थिक-राजनैतिक जोखिम (अर्थव्यवस्था, मंदी, असुविधा आदि) भी होता है। विमुद्रीकरण के लागत-लाभ विश्वलेषण के आधार पर समस्त बौद्धिक समुदाय दो वर्गों में बंटा नजर आता है। एक वर्ग- इस नीति को कालेधन के संपूर्ण समापन में नाकाफी एवं गैर-जरूरी मानते हुए इसे असुविधाजनक, गरीब विरोधी अथा आर्थिक संवृद्धि में नकारात्मक प्रभाव डालने वाली मानता है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रख्यात अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह इस नीति के क्रियान्वयन मात्र से जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की कमी का आकलन करते है। इसकी आलोचना करते हुए वे इसे नरक की ओर जाती हुई एक ऐसी सड़क की संज्ञा देते है जिसका निर्माण अच्छे मनोभाव से किया गया है।
विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन
- सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल शपथ पत्र में केन्द्र सरकार ने यह बताया कि हमारी अर्थव्यवस्था में लगभग 400 करोड रूपये नकली मुद्रा होने का अनुमान है और इसी धनराशि का प्रयोग आतंकवाद तथा कई अन्य प्रकार की राष्ट्र विरोधी एवं आपराधिक गतिविधियों के लिये किया जाता है। अत: इस नकली मुद्रा की समस्या का एकमात्र हल विमुद्रीकरण ही था।
- हमारे देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की तुलना में उच्च मूल्य की मुद्राओं (500/1000) के प्रवाह में कहीं अधिक वृद्धि हुई है। मार्च 2016 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 16,415 बिलियम मु्द्रा प्रवाहमान थी जिसमें
उच्च मूल्य
की मुद्रा
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% में
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मूल्य
(बिलियन में)
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1000 नोट की
भागीदारी
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38-6
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6326 बिलियन
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500 नोट की
भागीदारी
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47-8
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7854 बिलियन
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कुल
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86-4
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14180 बिलियन
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- विभिन्न अनुमानों के अनुसार, हमारे देश में विद्यमान समानांतर काले धन की अर्थव्यवस्था (Shadow
Economy) का आकार हमारी अर्थव्यवस्था के 10-30 प्रतिशत के बराबर
माना जाता है। स्वयं केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने शपथ
पत्र में इसे 26% बताया है अब यदि हम इस कालेधन की समानांतर
अर्थव्यवस्था को 30% मान ले तो कह सकते है 500 और 1000 की मुद्रा में विद्यमान लगभग 4254
बिलियन राशि काले धन की उपज है या काला धन हो सकता है।
- उपरोक्त कारण विमुद्रीकरण की अवधारणा को अपनाने के लिये पर्याप्त है।
- विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है, जिसके तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को
परिचालन में लाती है। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए संकट उत्पन्न
करने लगती तो इससे निजात पाने के लिए इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है, जिसके पास कालाधन होता है, वे नई मुद्रा लेने में
असमर्थ हो जाते हैं, जिससे काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता
है।
- RBI Act, 1934 की धारा 24(2) के अनुसार- “रिजर्व बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सुझाव पर केन्द्र सरकार किसी भी मूल्य के नोट के जारी होने पर रोक लगा सकती है।“
- RBI Act, 1934 की धारा 26(2) के अनुसार- “रिजर्व बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सुझाव पर केन्द्र सरकार किसी भी मुल्य की मुद्रा की किसी भी सीरीज को दी गई तिथि से अमान्य घोषित कर सकती है।“
- काले धन का अर्थ
- काले धन का प्रभाव
- काले धन से निपटने की रणनीति
- सूचना का अधिकार अधिनियम
- सिटिजन चार्टर
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली
- डिजिटल भारत
- स्टार्ट अप योजना
- वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली
- आधार कार्ड की अनिवार्यता
- पैन कार्ड के आधार क्षेत्र में वृद्धि
- बैंकिंग क्षेत्र में नये प्रयोग (तकनीक से जुड़ने का मौका रूपे कार्ड, भीम एप)
- आय घोषणा योजना (जून से सितम्बर, 2016)
- दोहरे कराधान संधियों की समीक्षा (मारिशस व सिंगापुर जैसे देशों के साथ)
- सूचना साझेदारी समझौते (स्विट्जरलैण्ड के साथ)
- गार अधिनियम को लागू करना
- एसआईटी का गठन
- 500 व 1000 रूपये की नोटों का विमुद्रीकरण (8
नवम्बर, 2016 को)
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
- देश के भीतर बेनामी संपत्ति और दिवालियेपन पर नये कानून
- विमुद्रीकरण, नकद रूप से
रेखा समस्त कालेधन को समाप्त कद देगी तथा समस्त मुद्रा का लेखा उपस्थित होने
से मौद्रिक नीति दक्ष तथा प्रभावी बनायी जा सकेगी।
- सम्पूर्ण वित्त के लेखांकन से राजस्व में
वृद्धि होगी, जिससे आधारभूत संरचना मं वित्त संबंधी मांग
को पूरा करने में मदद मिलेगी तथा सरकार कल्यारणकारी कार्यक्रमों को क्रियान्वित
करने में और अधिक सामर्थयवान होगी।
- जब काला धन नहीं होग, तो कृत्रिम मांग (अनावश्यक मांग) स्वत: ही कम हो जायेगी, इससे मुद्रास्फीति की बढ़ी हुई दरें नियंत्रित रहेगी, जो प्रत्यक्ष रूप से देश की आम जनता को सुखद स्थिति में पहुंचायेगी।
- कालेधन का एक बड़ा भाग रियल एस्टेट में लगा हुआ
है। इससे आवासों की कीमतों में अनावश्यक वृद्धि हो गयी है। विमुद्रीकरण, मुद्रा के रूप में संचित काले धन का खात्मा कर देगी, जिससे धीरे-धीरे इसका असर रियल एस्टेट पर दिखेगा तथा फ्लैट्स और घरों के
दाम गिरेंगे तथा सामान्य जन का घर खरीदने का सपना पूरा होगा।
- विमुद्रीकरण की प्रक्रिया से अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर भारत की छवि एक पारदर्शी और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो दालरेंस देश के रूप में
बनेगी। परिणामत: भारत में वैश्विक निवेश बढ़ेगा,जो
अंतत: उत्पादन, उत्पादकता एवं रोजगार सृजन को बढ़ायेगा यह
स्थिति भारत को स्वत: ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस जैसे वैश्विक
इंडेक्स में हमारी रैंकिंग को सुधारेगी।
- देश में हवाला प्रणाली के चलते बड़े आराम से
काले धन को स्थानांतरित किया जाता रहा है। विमुद्रीकरण, अवैध मुद्रा भंडार को ही समाप्त कर देगी, जिससे स्वत:
ही हवाला प्रणाली ध्वस्त हो जायेगी।
- इस कदम का एक बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होगा।
इससे अच्छे व्यवहार, पारदर्शिता, नैतिकता तथा असंग्रहण की संस्कृति का विकास होगा।
- विमुद्रीकरण प्रत्यक्ष रूप से बैंकों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करेगी परिणामत: बैंक रियायती ब्याजदरों पर उद्यमियों के लिए वित्त का प्रबन्ध कर सकेगी।
- इससे भविष्य में नकद संस्कृति का समापन होगा तथा देश नकदरहित अर्थव्यवस्था अथवा लैस-कैश की ओर बढ़ेगी।
- देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व पूर्व
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अनुसार विमुद्रीकरण ‘देश की जीडीपी को 1-2 प्रतिशत पीछे कर देगी। उनका मानना है कि किसी देश का
विकास आर्थिक गतिविधियों से होता है और आर्थिक गतिविधियों को पूर्ण करने के लिए
नकदी की उपलब्धता होना आवश्यक है, चूंकि विमुद्रीकरण, नकदी की अनुपलब्धता को बढ़ावा देता है। इसलिए नोट बंदी का अर्थव्यवस्था
पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्त अनेक विचारक इस धारणा को कि – ‘समस्त काला धन नकद रूप में है और समस्त नकद काला धन है’ को गलत मानते हैं यह वास्तविकता भी है कि भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा
लोग नकद में मजदूर प्राप्त करते हैं, देश में 60 करोड़ से
ज्यादा लोग बिना बैंक खाते के है, लगभग संपूर्ण ग्रामीण
निवेश, उत्पादन, व्यापार, नकद के ऊपर ही निर्भर है, जो नोट बंदी से अंशत: ही
प्रभावित होगी। ऐसे में विमुद्रीकरण पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वभाविक हो जाता है।
इसका मनौवैज्ञानिक प्रभाव भी गरीब विरोधी नजर आता है, क्योंकि
नोट बंदी ने सामान्य वस्तु की मांग घटाने और वहीं दूसरी ओर विलासिता की वस्तुओं
की मांग में वृद्धि करने का कार्य किया है। प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री कीन्स
ने अर्थव्यवस्था के विकास हेतु सबसे महत्वपूर्ण कारण ‘मांग’ को माना है। नोटबंदी के इस कदम ने मांग को ही सबसे अधिक दुष्प्रभावित
किया। इसका नकारात्मक प्रभाव बड़े व्यापारियों पर भी पड़ रहा है, क्योंकि भारत में बहुस्तरीय व्यापार प्रणाली और इसमें धन का स्थानान्तरण
नकद रूप से फुटकर व्यापार प्रणाली और इसमें धन का स्थानान्तरण नकद रूप से फुटकर
व्यापार से ही ऊपर की ओर होता है। मांग में आई इस तीव्र गिरावट से निकट भविष्य
में आर्थिक मंदी की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता है। विमुद्रीकरण से एक और
गंभीर दुष्प्रभाव घरेलू बचत (महिलाओं की गोपनीय बचत) की समाप्ति के रूप में भी
पड़ है, क्योंकि घरेलू बचत आपात स्थितियों के साथ-साथ छोटे
व्यापार (रेहड़ी-फेरी) की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होती है।
- सामाजिक प्रभाव : इसके
अन्तर्गत सामाजिक विषमता, महिला सशक्तिकरण, जागरूकता जैसे सामाजिक मुद्दों पर विमुद्रीकरण के प्रभावों का अध्ययन व
विश्लेषण किया जायेगा।
- विमुद्रीकरण का सकारात्मक सामाजिक प्रभाव : नंद
नीलेकणि ने विमुद्रीकरण पर अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा था कि विमुद्रीकरण के
कारण लोगों को जागरूक करने तथा अर्थव्यवस्था को डिजिटलाइज करने का जो कार्य
तीन वर्षें में होता है वह अब 6 महीने में ही जो जायेगा। लोगों को जागरूक करने के
साथ-साथ तार्किक उपभोक्ता प्रवृत्ति का विकास सामाजिक आर्थिक विषमता में कमी, स्त्रियों की स्थिति में सुधार जैसे- सकारात्मक सामाजिक प्रभाव भी
पड़ेगे। समग्र रूप से लेस कैश संस्कृति का विकास स्वत: ही समाज को विकसित व
संतुलित करेगा।
- विमुद्रीकरण का सामाजिक क्षेत्र पर नाकरात्मक
प्रभाव : इसके अंतर्गत सामाजिक विषमता, महिलासशक्तिकरण, जागरूकता जैसे सामाजिक मुद्दो पर
विमुद्रीकरण के प्रभाव का अध्ययन व विश्लेषण किया जायेगा।
- लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों से जुड़े लोग जहाँ अधिकतर लेन-देन कैश में करते है कि आय, रोजगार, उत्पादन, उपभोग, सबमे गिरावट होगी।
- व्यापार एवं उपभोग में गिरावट के फलस्वरूप सरकार के अप्रत्यक्ष कर राजस्व में इस क्वार्टर कमी आयेगी।
- रियल स्टेट में आने वाली गिरावट उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर को नकारात्मक कर सकती है। साथ ही यह क्षेत्र डिफाल्टर बैंकों का एनपीए बढ़ा सकती है।
- आम जनता तक पर्याप्त नकदी उपलब्ध करना, सबसे बड़ी चुनौती है।
- वर्तमान में एटीएम मशीनों तथा खरीददारी हेतु स्वाइप मशीनों की उपलब्धता आवश्यकता से कम होना भी एक गंभीर चुनौती है।
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