विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन

विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन : “विमुद्रीकरण की नीति शेर की सवारी” करने के समान होती है क्‍योंकि लाभ और जोखिम दोनों का स्‍तर काफी उच्‍च होता है। इस नीति के क्रियान्‍वयन से जहाँ एक ओर काली अर्थव्‍यवस्‍था पर करारा प्रहार होता है तथा अर्थव्‍यवस्‍था में पारदर्शिता एवं दक्षता बढ़ती है तो वहीं दूसरी ओर इसमें सामाजिक-अर्थिक-राजनैतिक जोखिम (अर्थव्‍यवस्‍था, मंदी, असुविधा आदि) भी होता है। विमुद्रीकरण के लागत-लाभ विश्‍वलेषण के आधार पर समस्‍त बौद्धिक समुदाय दो वर्गों में बंटा नजर आता है। एक वर्ग- इस नीति को कालेधन के संपूर्ण समापन में नाकाफी एवं गैर-जरूरी मानते हुए इसे असुविधाजनक, गरीब विरोधी अथा आर्थिक संवृद्धि में नकारात्‍मक प्रभाव डालने वाली मानता है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री डा. मनमोहन सिंह इस नीति के क्रियान्‍वयन मात्र से जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की कमी का आकलन करते है। इसकी आलोचना करते हुए वे इसे नरक की ओर जाती हुई एक ऐसी सड़क की संज्ञा देते है जिसका निर्माण अच्‍छे मनोभाव से किया गया है।

विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन

विमुद्रीकरण की नीति शेर की सवारी करने के समान होती है क्‍योंकि लाभ और जोखिम दोनों का स्‍तर काफी उच्‍च होता है। इस नीति के क्रियान्‍वयन से जहाँ एक ओर काली अर्थव्‍यवस्‍था पर करारा प्रहार होता है तथा अर्थव्‍यवस्‍था में पारदर्शिता एवं दक्षता बढ़ती है तो वहीं दूसरी ओर इसमें सामाजिक-अर्थिक-राजनैतिक जोखिम (अर्थव्‍यवस्‍था, मंदी, असुविधा आदि) भी होता है।

विमुद्रीकरण के लागत-लाभ विश्‍वलेषण के आधार पर समस्‍त बौद्धिक समुदाय दो वर्गों में बंटा नजर आता है। एक वर्ग- इस नीति को कालेधन के संपूर्ण समापन में नाकाफी एवं गैर-जरूरी मानते हुए इसे असुविधाजनक, गरीब विरोधी अथा आर्थिक संवृद्धि में नकारात्‍मक प्रभाव डालने वाली मानता है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री डा. मनमोहन सिंह इस नीति के क्रियान्‍वयन मात्र से जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की कमी का आकलन करते है। इसकी आलोचना करते हुए वे इसे नरक की ओर जाती हुई एक ऐसी सड़क की संज्ञा देते है जिसका निर्माण अच्‍छे मनोभाव से किया गया है। इसके विपरीत दूसरा वर्ग आर्थिक समृद्धि और सामाजि-आर्थिक न्‍याय की स्‍थापना हेतु इसे अपरिहार्य मानता है। ये इसे एक कड़वी औषधि की संज्ञा देते है जिससे अल्‍पकाल में भले ही कुछ असुविधाएं हो, परन्‍तु दीर्घकाल में निश्‍चि‍त ही लाभ होता है।

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 8 नवम्‍बर 2016 को एक साहसिक निर्णय लेते हुए मध्‍य रात्रि से 500 व 1000 रूपये की वर्तमान श्रंखला के नोटो का विमुद्रीकरण की घोषणा कर दी, इस कदम को अपनाने के पीछे क्‍या कारण रहे, उन्‍हें निम्‍न आधार पर प्रस्‍तुत किया जा सकता है :-
  • सर्वोच्‍च न्‍यायालय में दाखिल शपथ पत्र में केन्‍द्र सरकार ने यह बताया कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में लगभग 400 करोड रूपये नकली मुद्रा होने का अनुमान है और इसी धनराशि का प्रयोग आतंकवाद तथा कई अन्‍य प्रकार की राष्‍ट्र विरोधी एवं आपराधिक गतिविधियों के लिये किया जाता है। अत: इस नकली मुद्रा की समस्‍या का एकमात्र हल विमुद्रीकरण ही था।
  • हमारे देश की अर्थव्‍यवस्‍था में वृद्धि की तुलना में उच्‍च मूल्‍य की मुद्राओं (500/1000) के प्रवाह में कहीं अधिक वृद्धि हुई है। मार्च 2016 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 16,415 बिलियम मु्द्रा प्रवाहमान थी जिसमें



उच्‍च मूल्‍य की मुद्रा
% में
मूल्‍य (बिलियन में)
1000 नोट की भागीदारी
38-6
6326 बिलियन
500 नोट की भागीदारी
47-8
7854 बिलियन
कुल
86-4
14180 बिलियन

14180 बिलियन रूपये हमारी जीडीपी का लगभग 10.5 प्रतिशत500 व 1000 की नोट है यह तब कि स्‍थिति है जब वर्ष 2015-16 की कुल राष्‍ट्रीय आय 135761 बिलियन मानी गयी है। उच्‍च मूल्‍य की मुद्रा का इतना विशालकाय स्‍थिति में होना देश के भीतर कालेधन के भण्‍डारण की संभावना को बल देती है। अत: यह एक प्रबलतम कारण रहा विमुद्रीकरण को अपनाने का।
  • विभिन्‍न अनुमानों के अनुसार, हमारे देश में विद्यमान समानांतर काले धन की अर्थव्‍यवस्‍था (Shadow Economy) का आकार हमारी अर्थव्‍यवस्‍था के 10-30 प्रतिशत के बराबर माना जाता है। स्‍वयं केन्‍द्र सरकार ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय में दाखिल अपने शपथ पत्र में इसे 26% बताया है अब यदि हम इस कालेधन की समानांतर अर्थव्‍यवस्‍था को  30% मान ले तो कह सकते है 500 और 1000 की मुद्रा में विद्यमान लगभग 4254 बिलियन राशि काले धन की उपज है या काला धन हो सकता है।
  • उपरोक्‍त कारण विमुद्रीकरण की अवधारणा को अपनाने के लिये पर्याप्‍त है।
  • विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है, जिसके तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्‍त कर देती है और नई मुद्रा को परिचालन में लाती है। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्‍यवस्‍था के लिए संकट उत्‍पन्‍न करने लगती तो इससे निजात पाने के लिए इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है, जिसके पास कालाधन होता है, वे नई मुद्रा लेने में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे काला धन स्‍वयं ही नष्‍ट हो जाता है।
  • RBI Act, 1934 की धारा 24(2) के अनुसार- रिजर्व बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्‍टर्स के सुझाव पर केन्‍द्र सरकार किसी भी मूल्‍य के नोट के जारी होने पर रोक लगा सकती है।
  • RBI Act, 1934 की धारा 26(2) के अनुसार- रिजर्व बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्‍टर्स के सुझाव पर केन्‍द्र सरकार किसी भी मुल्‍य की मुद्रा की किसी भी सीरीज को दी गई तिथि से अमान्‍य घोषित कर सकती है।

भारत में अब तक तीन बार विमुद्रीकरण की प्रक्रिया अपनायी जा चुकी है:-

वर्ष
विमुद्रीकरण का अधिकार
1946
इस अवधि में 1000 और 10,000 मूल्‍य के नोट चलने से बाहर करने के लिये RBI Act, 1934 में संशोधन कर धारा-26(2) के द्वारा किया गया था।
1978
इस अवधि में जनता पार्टी सरकार द्वारा 1000,5000 और 10,000 मूल्‍य के नोट का विमुद्रीकरण करने के लिए हाई डिनोमिशेन बैंक नोट (डिमोनेटाइजेशन) एक्‍ट 1978  पास करके किया था।
8 नवम्‍बर, 2016 को किया गया विमुद्रीकरण RBI Act 1934 की धारा 26(2) के अन्‍तर्गत केन्‍द्र सरकार को प्राप्‍त शक्‍तियों के आधार पर किया गया है, जबकि यह धारा किसी भी मूल्‍य की मुद्रा की किसी सीरीज विशेष को बंद करने की बात करता है न कि पूरी मुद्रा का जैसा कि वर्तमान में हुआ है।
काला धन बनाम विमु्द्रीकरण:
विमुद्रीकरण को अपनाने के केन्‍द्र में कालाधनकी समस्‍या है। यहाँ तीन बातों का विश्‍लेषण किया जायेगा:-
  1. काले धन का अर्थ
  2. काले धन का प्रभाव
  3. काले धन से निपटने की रणनीति

कालेधन का अर्थ: कालेधन को सामान्‍यत: उस धन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसका कोई लेखा-जोखा न हो तथा जिस पर कोई कर अदा न किया गया हो। कालेधन का सृजन दो तरीको से होता है। प्रथम यह वैध स्‍त्रोत से अर्जित धन पर कर चोरी से उत्‍पन्‍न होता है। द्वितीय यह कि धन प्राप्‍ति स्‍त्रोत ही अवैध हो जैसे-तस्‍करी, चोरी, हवाला।
इन गतिविधियों से आज कालेधन का एक बड़ा भंडार बन गया है।

कालेधन का प्रभाव: भारत में कालेधन की समस्‍या काफी गंभीर है क्‍योंकि यह भारत में आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक न्‍याय की स्‍थापना में एक प्रमुख बाधक के रूप में कार्य करता है। इसके कारण जहाँ एक ओर राजस्‍व में कमी होती है, जिससे विकास एवं कल्‍याण गतिविधियों में अपेक्षित निवेश नहीं हो पाता है, वही दूसरी ओर राजनीतिक खरीद-फरोख्‍त, चुनावी धांधली आदि में भी इसकी प्रमुख भुमिका है। आजकल काला धन राष्‍ट्रीय सुरक्षा के समक्ष भी एक गंभीर चुनौती उत्‍पन्‍न करता नजर आ रहा है, क्‍योंकि यह आतंकवाद एवं संगठित अपराध के बीच गठबंधन की एक प्रमुख कड़ी भी है। इसके अतिरिक्‍त छदम मांग, ऊंची कीमतें, आर्थिक अस्‍थिरता हेतु भी कालेधन को उत्‍तरदायी ठहराया जाना अतिशियोक्‍ति नही होगा।

कालेधन से निपटने की रणनीति: काला धन जो अर्थव्‍यवस्‍था को व्‍यापक रूप से प्रभावित करता है, से निपटने हेतु दो रणनीतियां अपनायी जाती है:-
प्रथम रणनीति
प्रथम रणनीति के तहत कालेधन के सृजन को ही रोका जाता है। इसके तहत शासन के अंदर-पार‍दर्शिता, निष्‍पक्षता, जवाबदेहिता, स्‍पष्‍टा, सहभागिता आदि का सृजन करने के लिए युक्‍तिसंगत कर संरचना, ई-गवर्नेंस (डिजिटलीकरण), सिटिजन चार्टर, आनलाइन भुगतान प्रणाली, प्रेरक विधिक एवं भौतिक आधार संरचना, स्‍पष्‍ट एवं सरल नियम तथा कानूनों का विकास आदि जैसे कदम उठाये जाते हैं।
प्रथम रणनीति के अनुपालन हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयास निम्‍नवत् हैं:-
  • सूचना का अधिकार अधिनियम
  • सिटिजन चार्टर
  • प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली
  • डिजिटल भारत
  • स्‍टार्ट अप योजना
  • वस्‍तु एवं सेवा कर प्रणाली
  • आधार कार्ड की अनिवार्यता
  • पैन कार्ड के आधार क्षेत्र में वृद्धि
  • बैंकिंग क्षेत्र में नये प्रयोग (तकनीक से जुड़ने का मौका रूपे कार्ड, भीम एप)

दूसरी रणनीति
दूसरी रणनीति के तहत पहले से उपलब्‍ध कालेधन की समाप्‍ति हेतु कदम उठाए जाते है। इसके तहत विभिन्‍न कर छूट योजनाओं की घोषणा, गहन सतर्कता एवं जॉच, सूचनाओं का आदान-प्रदान, राउंड ट्रिपिंग का नियमन, विमुद्रीकरण आदि कदम उठाए जाते हैं।

दूसरी रणनीति के अनुपालन हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयास निम्‍नवत् हैं:-
  • आय घोषणा योजना (जून से सितम्‍बर, 2016)
  • दोहरे कराधान संधियों की समीक्षा (मारिशस व सिंगापुर जैसे देशों के साथ)
  • सूचना साझेदारी समझौते (स्‍विट्जरलैण्‍ड के साथ)
  • गार अधिनियम को लागू करना
  • एसआईटी का गठन
  • 500 व 1000 रूपये की नोटों का विमुद्रीकरण (8 नवम्‍बर, 2016 को)
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण योजना
  • देश के भीतर बेनामी संपत्ति और दिवालियेपन पर नये कानून

विमुद्रीकरण का प्रभाव
विमुद्रीकरण को एक युगांतकारी कदम माना जा रहा है, जो न केवल अर्थव्‍यवस्‍था अपतिु सामाजिक-अर्थिक ढॉचे की तस्‍वीर को भी बदलने में सक्षम है, परन्‍तु ऐसा नहीं है कि इसके केवल सकारात्‍मक प्रभाव ही पड़ेगा। भारत की विशेष स्‍थ‍िति, जहाँ संसाधनों के वितरण में असमानता, ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अंतराल, आधारभूत संरचना में विविधता तथा नीतिगत विभेद काफी अधिक है, के आलोक में इस नीति की सफलता एवं लक्ष्‍य प्राप्‍त‍ि के समक्ष कुछ चुनौतियां भी विद्यमान है। अंतत: विमुद्रीकरण के सम्‍पूर्ण प्रभाव को समझने के लिए आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक आधार पर क्षेत्रावार विश्‍लेषण करना उचित होगा।

विमुद्रीकरण का आर्थिक क्षेत्र पर प्रभाव:
आर्थिक प्रभाव: आर्थिक प्रभाव को समझने के लिए विमुद्रीकरण ने देश के उपभोक्‍ता व्‍यवहार, लोक वित्‍त, विदेशी व्‍यापार, उत्‍पादन, रोजगार, निवेश आय वितरण पर क्‍या प्रभाव डाला है, का अध्‍ययन व विश्‍लेषण करना होगा।

विमुद्रीकरण का सकारात्‍मक आर्थिक प्रभाव: विमुद्रीकरण भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को सकारात्‍मक रूप से प्रभावित करेंगी को, बिन्‍दुवाद स्‍पष्‍ट किया जा रहा है:-
  • विमुद्रीकरण, नकद रूप से रेखा समस्‍त कालेधन को समाप्‍त कद देगी तथा समस्‍त मुद्रा का लेखा उपस्‍थित होने से मौद्रिक नीति दक्ष तथा प्रभावी बनायी जा सकेगी।
  • सम्‍पूर्ण वित्‍त के लेखांकन से राजस्‍व में वृद्धि होगी, जिससे आधारभूत संरचना मं वित्‍त संबंधी मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी तथा सरकार कल्‍यारणकारी कार्यक्रमों को क्रियान्‍वित करने में और अधिक सामर्थयवान होगी।
  • जब काला धन नहीं होग, तो कृत्रिम मांग (अनावश्‍यक मांग) स्‍वत: ही कम हो जायेगी, इससे मुद्रास्‍फीति‍ की बढ़ी हुई दरें नियंत्रित रहेगी, जो प्रत्‍यक्ष रूप से देश की आम जनता को सुखद स्‍थिति में पहुंचायेगी।
  • कालेधन का एक बड़ा भाग रियल एस्‍टेट में लगा हुआ है। इससे आवासों की कीमतों में अनावश्‍यक वृद्धि हो गयी है। विमुद्रीकरण, मुद्रा के रूप में संचित काले धन का खात्‍मा कर देगी, जिससे धीरे-धीरे इसका असर रियल एस्‍टेट पर दिखेगा तथा फ्लैट्स और घरों के दाम गिरेंगे तथा सामान्‍य जन का घर खरीदने का सपना पूरा होगा।
  • विमुद्रीकरण की प्रक्रिया से अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भारत की छवि एक पारदर्शी और भ्रष्‍टाचार के प्रति जीरो दालरेंस देश के रूप में बनेगी। परिणामत: भारत में वैश्‍विक निवेश बढ़ेगा,जो अंतत: उत्‍पादन, उत्‍पादकता एवं रोजगार सृजन को बढ़ायेगा यह स्‍थिति भारत को स्‍वत: ईज ऑफ डूईंग बिजनेस जैसे वैश्‍विक इंडेक्‍स में हमारी रैंकिंग को सुधारेगी।
  • देश में हवाला प्रणाली के चलते बड़े आराम से काले धन को स्‍थानांतरित किया जाता रहा है। विमुद्रीकरण, अवैध मुद्रा भंडार को ही समाप्‍त कर देगी, जिससे स्‍वत: ही हवाला प्रणाली ध्‍वस्‍त हो जायेगी।
  • इस कदम का एक बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होगा। इससे अच्‍छे व्‍यवहार, पारदर्शिता, नैतिकता तथा असंग्रहण की संस्‍कृति का विकास होगा।
  • विमुद्रीकरण प्रत्‍यक्ष रूप से बैंकों की वित्‍तीय स्‍थिति को मजबूत करेगी परिणामत: बैंक रियायती ब्‍याजदरों पर उद्यमियों के लिए वित्‍त का प्रबन्‍ध कर सकेगी।
  • इससे भविष्‍य में नकद संस्‍कृति का समापन होगा तथा देश नकदरहित अर्थव्‍यवस्‍था अथवा लैस-कैश की ओर बढ़ेगी।

विमुद्रीकरण का नकारात्‍मक आर्थिक प्रभाव : विमुद्रीकरण अर्थव्‍यवस्‍था पर सकारात्‍मक प्रभाव डालेगा, यह तब तक कहना उचित नहीं होगा, जब तक विमुद्रीकरण का दसरा पहलू, नाकरात्‍मक प्रभाव का अध्‍ययन व विश्‍लेषण न कर लिया जाये।
  • देश के प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री व पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अनुसार विमुद्रीकरण देश की जीडीपी को 1-2 प्रतिशत पीछे कर देगी। उनका मानना है कि किसी देश का विकास आर्थिक गतिविधियों से होता है और आर्थिक गतिविधियों को पूर्ण करने के लिए नकदी की उपलब्‍धता होना आवश्‍यक है, चूंकि विमुद्रीकरण, नकदी की अनुपलब्‍धता को बढ़ावा देता है। इसलिए नोट बंदी का अर्थव्‍यवस्‍था पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्‍त अनेक विचारक इस धारणा को कि – समस्‍त काला धन नकद रूप में है और समस्‍त नकद काला धन है को गलत मानते हैं यह वास्‍तविकता भी है कि भारत में 90 प्रतिशत से ज्‍यादा लोग नकद में मजदूर प्राप्‍त करते हैं, देश में 60 करोड़ से ज्‍यादा लोग बिना बैंक खाते के है, लगभग संपूर्ण ग्रामीण निवेश, उत्‍पादन, व्‍यापार, नकद के ऊपर ही निर्भर है, जो नोट बंदी से अंशत: ही प्रभावित होगी। ऐसे में विमुद्रीकरण पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगना स्‍वभाविक हो जाता है। इसका मनौवैज्ञानिक प्रभाव भी गरीब विरोधी नजर आता है, क्‍योंकि नोट बंदी ने सामान्‍य वस्‍तु की मांग घटाने और वहीं दूसरी ओर विलासिता की वस्‍तुओं की मांग में वृद्धि करने का कार्य किया है। प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्‍त्री कीन्‍स ने अर्थव्‍यवस्‍था के विकास हेतु सबसे महत्‍वपूर्ण कारण मांग को माना है। नोटबंदी के इस कदम ने मांग को ही सबसे अधिक दुष्‍प्रभावित किया। इसका नकारात्‍मक प्रभाव बड़े व्‍यापारियों पर भी पड़ रहा है, क्‍योंकि भारत में बहुस्‍तरीय व्‍यापार प्रणाली और इसमें धन का स्‍थानान्‍तरण नकद रूप से फुटकर व्‍यापार प्रणाली और इसमें धन का स्‍थानान्‍तरण नकद रूप से फुटकर व्‍यापार से ही ऊपर की ओर होता है। मांग में आई इस तीव्र गिरावट से निकट भविष्‍य में आर्थिक मंदी की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता है। विमुद्रीकरण से एक और गंभीर दुष्‍प्रभाव घरेलू बचत (महिलाओं की गोपनीय बचत) की समाप्‍ति के रूप में भी पड़ है, क्‍योंकि घरेलू बचत आपात स्‍थितियों के साथ-साथ छोटे व्‍यापार (रेहड़ी-फेरी) की दृष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण होती है।

विमुद्रीकरण का राजनीतिक क्षेत्रपर प्रभाव:
राजनीतिक प्रभाव : राजनैतिक प्रभाव के अन्‍तर्गत भ्रष्‍टाचार, आतंकवाद, आतंरिक सुरक्षा तथा अन्‍य अपराधो पर विमुद्रीकरण के प्रभाव का अध्‍ययन व विश्‍लेषण करना होगा।

विमुद्रीकरण का सकारात्‍मक राजनीतिक प्रभाव: विमुद्रीकरण देश की अर्थव्‍यवस्‍था को भले ही अल्‍पावधि के लिए नकारात्‍मक रूप से प्रभावित अवश्‍य कर सकती है, परन्‍तु नोट बंदी से राजनीति क्षेत्र पर सौ फीसदी सकारात्‍मक प्रभाव ही पड़ेगा जैसे-काले धन की समाप्‍ति से भारत की आंतरिक सुरक्षा के समझ उत्‍पन्‍न चुनौतियां कम होंगी, क्‍योंकि कालेधन के उपयोग से ही भारत में संगठित अपराध तथा आतंकवाद गतिविधियों संचालित होती हैं। अब इन गतिविधियों हेतु वित्‍त की अनुपलब्‍धता होगी। इस कदम का आगामी चुनाव पर भी सकारात्‍मक प्रभाव की संभावना है। इससे चुनावों में अनावश्‍यक व्‍यय, वोटरों की खरीद, फरोख्‍त, जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्‍त आदि पर लगाम लगेगी।

विमुद्रीकरण का सामाजिक क्षेत्र पर प्रभाव:
  • सामाजिक प्रभाव : इसके अन्‍तर्गत सामाजिक विषमता, महिला सशक्‍तिकरण, जागरूकता जैसे सामाजिक मुद्दों पर विमुद्रीकरण के प्रभावों का अध्‍ययन व विश्‍लेषण किया जायेगा।
  • विमुद्रीकरण का सकारात्‍मक सामाजिक प्रभाव : नंद नीलेकणि ने विमुद्रीकरण पर अपना मत स्‍पष्‍ट करते हुए कहा था कि विमुद्रीकरण के कारण लोगों को जागरूक करने तथा अर्थव्‍यवस्‍था को डिजिटलाइज करने का जो कार्य तीन वर्षें में होता है वह अब 6 महीने में ही जो जायेगा। लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ तार्किक उपभोक्‍ता प्रवृत्‍ति का विकास सामाजिक आर्थिक विषमता में कमी, स्‍त्रियों की स्‍थिति में सुधार जैसे- सकारात्‍मक सामाजिक प्रभाव भी पड़ेगे। समग्र रूप से लेस कैश संस्‍कृति का विकास स्‍वत: ही समाज को विकसित व संतुलित करेगा।
  • विमुद्रीकरण का सामाजिक क्षेत्र पर नाकरात्‍मक प्रभाव : इसके अंतर्गत सामाजिक विषमता, महिलासशक्‍तिकरण, जागरूकता जैसे सामाजिक मुद्दो पर विमुद्रीकरण के प्रभाव का अध्‍ययन व विश्‍लेषण किया जायेगा।
  1. लघु एवं सूक्ष्‍म उद्योगों से जुड़े लोग जहाँ अधिकतर लेन-देन कैश में करते है कि आय, रोजगार, उत्‍पादन, उपभोग, सबमे गिरावट होगी।
  2. व्‍यापार एवं उपभोग में गिरावट के फलस्‍वरूप सरकार के अप्रत्‍यक्ष कर राजस्‍व में इस क्‍वार्टर कमी आयेगी।
  3. रियल स्‍टेट में आने वाली गिरावट उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर को नकारात्‍मक कर सकती है। साथ ही यह क्षेत्र डिफाल्‍टर बैंकों का एनपीए बढ़ा सकती है।
  4. आम जनता तक पर्याप्‍त नकदी उपलब्‍ध करना, सबसे बड़ी चुनौती है।
  5. वर्तमान में एटीएम मशीनों तथा खरीददारी हेतु स्‍वाइप मशीनों की उपलब्‍धता आवश्‍यकता से कम होना भी एक गंभीर चुनौती है।

सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो। अब जब देश परिवर्तन के पथ पर अग्रसर हो चुका है तो व्‍यापक राष्‍ट्रहित के लिये हम थोड़ी बहुत समस्‍याओं और चुनौतियों से दो-चार होने से पीछे नहीं हटा सकते। जो लोग यह संशय जता रहे है कि विमु्द्रीकरण से महज अभी जो मुद्रा कालेधन के रूप में है वह भले समाप्‍त हो जाये पर इसके सृजन को विराम नहीं लग सकता, उन्‍हें यह समझना होगा कि वर्तमान में देश में भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध एक माहौल है और पारदर्शिता एवं ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार और जनता एकमत है। अभी आने वाले वित्‍तीय वर्ष यानी 1 जुलाई 2017 से देश में जीएसटी भी लागू होने जा रहा है, यह देश का अब तक का सबसे बड़ा अप्रत्‍यक्ष कर सुधार, व्‍यापार में सुगमता एवं पारदर्शिता लायेगा। अत: उससे पहले विमुद्रीकरण के इस कदम को अर्थजगत के सफाई अभियान के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही जो अन्‍य सुधारात्‍मक कदम उठाये जा चुके है या उठाये जा रहे है- चाहे इन्‍साल्‍वेन्‍सी एण्‍ड बैक्रप्‍सी कानून हो, बेमानी आहरण अधिनियम 2016 हो या फिर अन्‍य देशों से रियल टाइम इंफोरमेशन प्राप्‍त करने की दिशा में मिली सफलता हो, इन सबका सम्मिलित प्रभाव एक स्‍वच्‍छ वातावरण का निर्माण अवश्‍य करेगा जो हमे कालेधन के उत्‍सर्जन से मुक्‍त‍ि दिलायेगा।

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HindiVyakran: विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन
विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन
विमुद्रीकरण पर निबंध : आजादी के बाद सबसे बड़ा मौद्रिक परिवर्तन : “विमुद्रीकरण की नीति शेर की सवारी” करने के समान होती है क्‍योंकि लाभ और जोखिम दोनों का स्‍तर काफी उच्‍च होता है। इस नीति के क्रियान्‍वयन से जहाँ एक ओर काली अर्थव्‍यवस्‍था पर करारा प्रहार होता है तथा अर्थव्‍यवस्‍था में पारदर्शिता एवं दक्षता बढ़ती है तो वहीं दूसरी ओर इसमें सामाजिक-अर्थिक-राजनैतिक जोखिम (अर्थव्‍यवस्‍था, मंदी, असुविधा आदि) भी होता है। विमुद्रीकरण के लागत-लाभ विश्‍वलेषण के आधार पर समस्‍त बौद्धिक समुदाय दो वर्गों में बंटा नजर आता है। एक वर्ग- इस नीति को कालेधन के संपूर्ण समापन में नाकाफी एवं गैर-जरूरी मानते हुए इसे असुविधाजनक, गरीब विरोधी अथा आर्थिक संवृद्धि में नकारात्‍मक प्रभाव डालने वाली मानता है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री डा. मनमोहन सिंह इस नीति के क्रियान्‍वयन मात्र से जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की कमी का आकलन करते है। इसकी आलोचना करते हुए वे इसे नरक की ओर जाती हुई एक ऐसी सड़क की संज्ञा देते है जिसका निर्माण अच्‍छे मनोभाव से किया गया है।
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