मीठी वाणी पर निबंध अथवा मधुर वाणी पर निबंध : मधुर वाणी से मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं। यह वह रसायन है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है, यह वह औषधि है, जिससे मानव हृदय के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। जीवन और जगत् को सुखी और शान्त बनाने के लिये मधुर वाणी से अधिक लाभदायक वस्तु और क्या हो सकती है। श्रोता और वक्ता दोनों को आनन्द-विभोर कर देने वाली यह मधुर वाणी समाज की पारस्परिक मान-मर्यादा, प्रेम-प्रतिष्ठा और श्रद्धा-विश्वास की आधार-स्तम्भ है। इसके अभाव में समाज कलह, ईष्र्या-द्वेष और वैमनस्य का घर बन जाता है। जिस समाज में पारस्परिक सौहार्द्र और सहानुभूति नहीं, वह समाज नहीं, प्रेतों का घर है, साक्षात् नरक है।
मीठी वाणी पर निबंध अथवा मधुर वाणी पर निबंध
“कागा काको धन हरै, कोयल काकूं देत।
तुलसी मीठे वचन से, जग अपनो करि लेत।।
क्या बेचारा कौआ किसी का कुछ लेता है यदि नहीं तो फिर लोग उसे आराम से अपने घरों की छतों पर, मेंरों पर, क्यों नहीं बैठने देते? घृणा यहां तक बढ़ गई है कि उसके दर्शन को भी अपशकुन समझा जाता है। किसी शुभ काम से जाने के पूर्व लोग दिखा लिया करते हैं कि बाहर कौआ तो नहीं बैठा है। इसके विपरीत कोयल समाज को क्या देती है? समाज उसकी वाणी को शुभ और दर्शनों को प्रिय क्यों समझता है? सोने के पिंजड़ों में बंद होकर कोयल राज दरबार की शोभा बढ़ा सकती है तो क्या कौए को पिंज़ों में बंद होकर किसी झोपड़ी में चार-चाँद लगाने का अधिकार नहीं ? यह व्यवहार-विभेद प्राणी के गुण-अवगुणों पर आधारित है। यदि आप में गुण हैं तो आप पराये को भी अपना बना सकते हैं। मधुर वाणी से मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं। यह वह रसायन है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है, यह वह औषधि है, जिससे मानव हृदय के समस्त विकार दूर हो जाते हैं, यह वह वशीकरण मन्त्र है, जिससे आप दूसरों के हृदय में बैठ जाते हैं, यह वह बाण है, जिससे मनुष्य के हृदय में घाव नहीं होता, अपितु स्नेह की मधुर व्यथा उत्पन्न हो जाती है। यह वह अमृत है, जिससे मृत-प्राणी में भी जीवन का संचार हो उठता है। जीवन और जगत् को सुखी और शान्त बनाने के लिये मधुर वाणी से अधिक लाभदायक वस्तु और क्या हो सकती है। श्रोता और वक्ता दोनों को आनन्द-विभोर कर देने वाली यह मधुर वाणी समाज की पारस्परिक मान-मर्यादा, प्रेम-प्रतिष्ठा और श्रद्धा-विश्वास की आधार-स्तम्भ है। इसके अभाव में समाज कलह, ईष्र्या-द्वेष और वैमनस्य का घर बन जाता है। जिस समाज में पारस्परिक सौहार्द्र और सहानुभूति नहीं, वह समाज नहीं, प्रेतों का घर है, साक्षात् नरक है। इसीलिये शास्त्र आज्ञा करते हैं कि
"प्रियं ब्रूयात्”
मधुर भाषण से मनुष्य का समाज में आदर होता है। मधुरभाषी के मुख से निकले हुए एक-एक शब्द पर सुनने वालों का जी लुभाता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो इसके मुख से फूल झड़ रहे हों। सम्पर्क में आने वाले असम्बन्धित व्यक्ति भी अपने बन जाते हैं और उनका आदर करने लगते हैं। तुलसीदास ने लिखा है
"तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
वशीकरण एक मन्त्र है, परिहर बचन कठोर ।।"
मीठे वचन बोलने से केवल श्रोता को ही आनन्द नहीं आता, बल्कि वक्ता की आत्मा भी आनन्द का अनुभव करती है। कहने और सुनने वाले दोनों को शान्ति-लाभ होता है। परन्तु वक्ता को एक विशेष लाभ यह होता है कि उसके मन की अहंकारी, दम्भ और वैमनस्य की भावनायें स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। अहंकारी व्यक्ति कभी मधुर-भाषी नहीं हो सकता, दूसरे के हृदय को दुखी करने में वह अपना मन बहलाव समझता है। कहा गया है कि
"ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आप शीतल होय ।।"
मधुर-भाषण से मनुष्य में नम्रता, शिष्टता, सहृदयता आदि उदात्त गुणों का संचार होता है, जिनसे जीवन प्रकाशमय और शान्त बन जाता है, क्रोध उसके पास नहीं आता। क्रोध मानव का सबसे बड़ा शत्रु है, क्रोध से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है, उसे उचित-अनुचित का विचार नहीं रहता। मृदु-भाषी कभी क्रोध नहीं करता, कभी किसी से ईर्ष्या-द्वेष नहीं करता, वह सबको स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखता है। मधुर-भाषी सदैव ध्यान रखता है कि
“मेल प्रीति सब सौं भली, बैर न हित मित गोत।
रहिमन याही जनम में, बहुरि ने संगत होत ।।”
मृदु-भाषी समाज में सद्भावना और सह-अस्तित्व का संचार करता है । इस प्रकार वह समाज के अभ्युत्थान में भी सहयोग देता है।
मान ले प्राणी मेरा कहना, मीठी वाणी है एक गहना।
गहना भी अनमोल, मुँह सों कड़वा बोल न बोल ॥
बडे-बडे शस्त्रों का प्रहार वह काम नहीं कर सकता, जो मनुष्य की कटु वाणी कर देती है। शस्त्रों के घाव चिकित्सा से भर जाते हैं, पर वाणी के घावों की कोई चिकित्सा नहीं, समय-समय पर उसमें ऐसी टीस उठती है कि मनुष्य तिलमिला जाता है। कटु वाणी से मनुष्य दसरों के हृदय को तो दखाता ही है, स्वयं भी स्थान-स्थान पर अनादर का पात्र बन जाता है। कड़वा बोलने वाले में कोई बात तक करना पसन्द नहीं करता, उसके दुःख-दर्द में किसी की सहानभति नहीं होती। भद्र लोग उसे अशिष्ट समझते हैं, साधारण उसे दुष्ट कहते हैं। वह घर और बाहर केवल अनादृत ही नहीं होता; कहीं-कहीं पिटाई की नौबत भी आ जाती है। कटु-भाषी लोगों की तुलसीदास जी ने भी यही उपचार बताया है-
“खीरा को मुख काटि कै, मलिये नौन लगाय।।
तुलसी कडुए मुखन को, चहिए यही सजाय ।।"
जिस प्रकार ‘खीरा' नाम का फल मुख की ओर से कडुवा होता है और उसकी कडुवाहट टर करने के लिये उसका मख काटकर नमक डालकर गड़ा जाता है, तब कहीं उसकी कड़वाहट दूर होती है, उसी प्रकार कडुवे मुख वाला मनुष्य भी तभी मधुर-भाषी बन सकता है, जबकि उसके मुख की पिटाई या रगड़ाई हो। कटु-भाषी की प्रत्येक स्थान पर निन्दा होती है, उसका चरित्र भ्रष्ट हो जाता है, सभ्य समाज में उसे आमन्त्रित नहीं किया जाता। ऐसा व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है और बुद्धिहीन होता है। जहाँ मधुर-भाषी को विद्वान् देवता की उपाधि देते हैं, वहाँ कटु-भाषी को राक्षस की। जहाँ मधुर भाषण अमृत है, वहाँ कटु भाषण विष। जहाँ मधुर भाषण एक अमूल्य औषधि है, वहाँ कटु भाषण एक जहरीला बाण। कबीरदास जी ने लिखा है-
“मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर।
स्रवन द्वार से संवरै, सालै सकल शरीर ।।"
समाज में जिन महापुरुषों ने उच्च पद और उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त की है, वे सभी बड़े मृदु-भाषी हुए हैं। इसीलिये समाज आज भी उनका कीर्ति गान करते हुए नहीं थकता। उन्होंने अपने मधुर व्यवहार से पाषाण हुदयों को भी पानी-पानी कर दिखाया था। भगवान् बुद्ध ने कभी अपने कट्टर शत्रुओं तक को कटु वचन नहीं कहे, इसीलिये अन्त में वे उनके चरणों में आकर गिरे। कौरवों के कटु वचनों का श्रीकृष्ण ने बड़े मृदु वचनों में उत्तर दिया। शंकर जी का धनुष भंग हो जाने पर परशुराम जी ने क्रोध में भरी अनेक बातें कहीं, सुनकर लक्ष्मण को क्रोध भी आया परन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम राम अन्त तक मुस्कराते रहे और बड़ी मीठी वाणी से उन्हें उत्तर देते रहे। गाँधी जी शत्रुओं से मीठा बोलते थे और मित्रों से भी । यही कारण है कि आज उन्हें विश्वबन्धु कहा जाता है। विद्वानों ने इसीलिये शील-स्वभाव की प्रशंसा की है। कबीर लिखते हैं-
"सीलवन्त सबसे बड़ा सर्व रतन की खानि ।
तीन लोक की सम्पदा रही शील में आनि ॥"
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को जीवन में उन्नत बनने के लिये मधुर भाषण की बड़ी आवश्यकता है। इससे समाज में प्रतिष्ठा, गौरव और ख्याति प्राप्त होती है। आजकल के नवयुवक मधुर-भाषी नहीं होते। अध्यापक तो दूर रहा, माता-पिता से अकड़ बैठते हैं। यह बुरा है, हमें अपना चरित्र उज्ज्वल बनाने के लिये, मृदु-भाषी होना चाहिये, तभी हम देश में एकता स्थापित कर सकते हैं तभी हम विश्वबन्धुत्व की भावना को आगे बढ़ा सकते हैं, देश के सच्चे नागरिक भी हम तभी हो सकते हैं जब हम समाज में सहयोग और सहानुभूति रखते हों। मधुर-भाषण और मधुर-व्यवहार के अभाव में न सहयोग सम्भव है और न सहानुभूति ही।
Good para
ReplyDeleteThis is not correct paragraph lines have difficult wording
DeleteI can lines for my speeking exam that on tomorrow