भारत में खाद्य सुरक्षा बिल एवं संरक्षण पर निबंध : भारत सरकार ने देश की दो-तिहाई जनसंख्या को ‘खाद्य सुरक्षा’ सुनिश्चित की है। ‘सुरक्षा’से तात्पर्य है- खतरे या चिंता से मुक्ति। अत: खाद्य सुरक्षा हमारी खाद्य और पोषण की सुरक्षा की आशावादी स्थिति मुहैया करती है। सभी लोगों को सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुंच और उसे प्राप्त करने की क्षमता ही खाद्य सुरक्षा है। भोजन मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है और इसी कारण भोजन के मानव अधिकार को संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय कानून (1999) के विभिन्न अभिकरणों में मान्यता दी गई है। वैश्विक स्तर पर भी खाद्य सुरक्षा किसी न किसी रूप में विद्यमान की गयी है। इसका एक अच्छा उदाहरण है ब्राजील द्वारा चलाया गया ‘फोम जीरो’ या ‘जीरो हंगर प्रोग्राम’ जो विश्व में खाद्य सुरक्षा कायम करने के प्रयासों के रूप में काफी सराहा गया। ब्राजील विश्व में ऐसा पहला सदेश है, जिसने भोजन के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया।
भारत में खाद्य सुरक्षा बिल एवं संरक्षण पर निबंध
- पर्याप्त अनाज की उपलब्धता की समस्या क्योंकि भारत पहले ही अनाज का आयात करता है।
- खाद्य संकट से उभरने के लिए जेनेटिक खाद्य को
बढ़ावा देने से, होने वाले घातक रोगों की आशंका।
- बेहद जरूरतमंदों के आंकड़ों की विश्वसनीयता, जिनकी वजह से पूर्ववर्ती योजनाएं अत्यधिक खर्च करने के बावजूद भी सफल
नहीं हुई।
- कारपोरेट जगत का कहना है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा।
- जब खाद्य सुरक्षा सरकार उपलब्ध करायेगी तो हो सकता है कि छोटे कृषकों का नजरिया कृषि कार्यों के प्रति बदले और वे अकृति कार्यों में जुट जाये।
- खाद्य असुरक्षा में बड़ा बदलाव कायम करने के लिए वित्तीय संसाधनों से युक्त मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।
- अत्यधिक मुद्रा कमाने की होड़ में बढ़ती जा रही
कैश क्राप्स के नाम पर अखाद्य कृषि के बढ़ते चलने को रोकने हुए, कृषकों खाद्यान्न उत्पादन के लिए प्रोत्साहन करना।
- इस कानून के दायरे में आने वाले लाभार्थियों को सर्वोचित रूप से प्रथमत: चिन्हित किए ताकि पहले अत्यधिक जरूरतमंदों की अवाश्यकता पूर्ण है।
- जैविक खेती को क्रमबद्ध विकास से खाद्य संकट को कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही तकनीकी कृषि को भी बढ़ावा दिया जाए ताकि कम भूमि में अधिक अनाज उगे।
- भारत में बहुत-सी भूमि बंजर, कल्लर तथा बैटलैंड के रूप में पड़ी है। अत: भूमि सुधार अधिक से अधिक
करके पर्याप्त भूमि उपलब्ध कराने की आवश्कता है।
- पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्धता ने होने के लिए
जहाँ कम उत्पादन और खाद्य कुप्रबंधन जैसे अनेक कारणों को जिम्मेदार ठहराया जाता
है, वही एक और प्रमुख कारण पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है, वह है खाद्य अपव्यय अर्थात खाद्यान्नों की बर्बादी। अत: लोगों को
शादियों, उत्सवों या त्यौहारों या घरों में ही खाना न
बरबाद करने के लिए जागरूक किया जाये। इस परिप्रेक्ष्य में सैम पित्रोदा द्वारा
गठित संस्था ‘इंडिया फूड नेटवर्क’
द्वारा खाद्य अपव्यय रोकने के लिए ‘एस एम एस अलर्ट’ कार्यक्रम सराहनीय है, जिसमें समारोह स्थलों पर
बचे खाने को इकट्ठा करके जरूरतमंदों में बांट दिया जाता। लोगो को ऐसे कार्यक्रमों
से जोड़ने के प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
- खाद्य सुरक्षा कानून की सफलता, इस कार्यक्रम में पारदर्शिता के सहारे टिकी है,
ताकि भ्रष्टाचार व अनियमिता न हो।
- इस अधिनियम क प्राक्कथन जहां पोषण की सुरक्षा
का वायदा करता है, वहीं यह आवश्यक हो जाता है कि
इसमें दालों, सब्जियों व खाने के तेल का प्रावधान हो क्योंकि
सिर्फ अनाज द्वारा पोषण नहीं मिलता।
- खाद्य सुरक्षा अधिनियम का 14वां अध्याय
संवेदनशील समूह जैसे जनजातीय लोग और जनजातियों के क्षेत्र को इंगित करता है। अत:
इसमें इन लोगों द्वारा पारंपरिक तरीके से भोजन के रूप में लगभग 400 प्रजातियों
(जैसे-आरबी, मशरूम, चैलाई, कंद, जीव, मछलियां और छोटे
शिकार) को शामिल किये जाने की अवाश्यकता क्योंकि ये उनके आस-पास आसनी से उपलब्ध
होते हैं।
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