फसलों के प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले तत्व : विभिन्न कारक, जैसे किसानों की सामाजिक आर्थिक दशाएं, सांस्कृतिक कारक, जलवायु दशाएं आदि क्षेत्र में फसल प्रतिरूप निर्धारित या प्रभावित करते हैं। इस संबंध में मुख्य कारक निम्नलिखित हो सकते हैं। भूमि जोत का आकार : भारत में छोटे और सीमांत किसान कृषि समुदाय का बहुत बड़ा भाग हैं। इस कारण से एक फसल प्रतिरूप बहुत अधिक प्रचलित है क्योंकि यह किसान के परिवार खाद्य आवश्यकताएं पूरी करता है। स्थिति ऐसी होती है कि वाणिज्यिक फसल की बहुत कम गुंजाइश रहती है। साक्षरता : फसल के लिए बेहतर तरीके अपनाने के लिए शिक्षा का कुछ स्तर प्राप्त करना आवश्यक है। यह भारत के संदर्भ में छोटे और सीमांत किसान समुदाय में अत्यधिक निरक्षरता के कारण है जो बड़ी संख्या में हैं। प्रौद्योगिकीय आदानों की आवश्यकता वाले मिश्र फसल प्रतिरूप में अंतर्निहित वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग में यह कारक (अर्थात् निरक्षरता) बड़ी बाधा है।
विभिन्न कारक, जैसे किसानों की सामाजिक आर्थिक दशाएं, सांस्कृतिक कारक, जलवायु दशाएं आदि क्षेत्र में फसल प्रतिरूप निर्धारित या प्रभावित करते हैं। इस संबंध में मुख्य कारक निम्नलिखित हो सकते हैं।
भूमि जोत का आकार : भारत में छोटे और सीमांत किसान कृषि समुदाय का बहुत बड़ा भाग हैं। इस कारण से एक फसल प्रतिरूप बहुत अधिक प्रचलित है क्योंकि यह किसान के परिवार खाद्य आवश्यकताएं पूरी करता है। स्थिति ऐसी होती है कि वाणिज्यिक फसल की बहुत कम गुंजाइश रहती है।
साक्षरता : फसल के लिए बेहतर तरीके अपनाने के लिए शिक्षा का कुछ स्तर प्राप्त करना आवश्यक है। यह भारत के संदर्भ में छोटे और सीमांत किसान समुदाय में अत्यधिक निरक्षरता के कारण है जो बड़ी संख्या में हैं। प्रौद्योगिकीय आदानों की आवश्यकता वाले मिश्र फसल प्रतिरूप में अंतर्निहित वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग में यह कारक (अर्थात् निरक्षरता) बड़ी बाधा है।
वित्तीय आवश्यकता स्थायित्व : बड़ी संख्या में किसानों की खराब आर्थिक दशा के कारण मध्यम से उच्च पूँजी आवश्यकता वाले फसल प्रतिरूप किसानों द्वारा नही अपनाए जा सकते। वे कम लागत के ऐसी फसल प्रतिरूप अपनाने के लिए विवश होते हैं जो कम उत्पाद और आय देते हैं।
रोग/कीट प्रवर्धन/नियंत्रण : यह ऊपर उल्लिखित छोटे किसानों की वित्तीय और शैक्षिक स्थिति के कारकों को जोड़ देता है। इसके कारण किसान आधुनिक रोग/कीट नियंत्रण उपाय नही अपना सकते।
पारिस्थितिक उपयुक्तता : क्षेत्र का फसल प्रतिरूप फसलों के लिए पारिस्थितिक उपयुक्तता पर अत्यधिक निर्भर करता है। स्थानीय पारिस्थितिक कारकों के अनुकूल फसल प्रतिरूप अपनाने में मृदा परीक्षण और प्रचलित दशाओं के लिए अपेक्षित आदानों के प्रयोग की आवश्यकता होगी। एक बार फिर सामाजिक/ आर्थिक हैसियत प्राकृतिक दशा के इस स्वरूप का सामना करने में बाधक कारक होता है।
आर्द्रता उपलब्धता : यह क्षेत्र में जलवायु संबंधी कारक अर्थात् वर्षा से जुड़ा है। इसका सामना करने के लिए आधुनिक सिंचाई सुविधाएं आवश्यक हैं। इस सभी के लिए कुछ स्तर की जानकारी और आर्थिक आधार आवश्यक हैं जो भारत में श्रेष्ठतम कृषि प्रथाएं अपनाने के लिए सहायक नहीं हैं।
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