काला धन पर निबन्ध | Essay on Black Money in Hindi for UPSC : वर्तमान परिदृश्य में काला धन वह धन है जो सरकारी लेखा-जोखा से बाहर रहता है तथा जिस पर सरकार को कर प्राप्त नहीं होता। इस धन को वैध आय स्त्रोतों में शामिल नहीं किया जाता। अत: यह कहा जा सकता है कि यह ऐसा धन है जिसे वस्तुत: छिपाकर रखना पड़ता है। भारत में भी काले धन की प्रवृत्ति अत्यधिक बढ़ गयी है। बड़े-बड़े पूंजीपति विभिन्न प्रकार से कर चोरी करते हैं तथा सरकारी नौकरशाहों को रिश्वत देकर चुप रहने को कहते हैं तथा अपनी गतिविधियों को संचालित करते रहते हैं। दूसरी तरफ सरकारी अधिकारी अतिरिक्त धन पाकर कर वसूली में रियायत तथा ढिलाई करते हैं। इस प्रकार इन वर्गों का अतिरिक्त धन काले धन में बदल जाता है।
काला धन पर निबन्ध | Essay on Black Money in Hindi for UPSC
चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में धर्म
प्रथम स्थान रखता है। धर्म के अनुसार ही अर्थ और काम की पूर्ति करने पर, अन्तत: चतुर्थ पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति होती है। अर्थात अर्थ (धन)
ऐसा होना चाहिए जो धर्मनुकूल हो।
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में अर्थ को व्यवस्था
के लिए आधार माना है। इसी प्रकार कार्ल मार्क्स ने भी अर्थ को महत्वपूर्ण स्थान
दिया है। अत: धन मनुष्य जीवन
के लिए अत्यंत आवश्यक है परंतु यह भी सत्य है कि वह धन धर्म के मानकों के
अनुसार अर्जित किया जाये।यदि ऐसा नहीं है तो वह धन अधर्मी, अवैध या काला धन कहलाता है।
वर्तमान परिदृश्य में काला धन वह धन है जो
सरकारी लेखा-जोखा से बाहर रहता है तथा जिस पर सरकार को कर प्राप्त नहीं होता। इस
धन को वैध आय स्त्रोतों में शामिल नहीं किया जाता। अत: यह कहा जा सकता है कि यह
ऐसा धन है जिसे वस्तुत: छिपाकर रखना पड़ता है तथा इसका प्रयोग भौतिक आवश्यकताओं
यथा पर निर्माण, ज्वैलरी खरीदारी, व्यापारिक
संक्रियाओं के संचालन में होता है जहां उसे आसानी से पकड़ा न जा सके।
काले धन की प्रवृत्ति में वृद्धि का प्रमुख
कारण विभिन्न प्रकार की अवैध गतिविधियों का संचालन है। वर्तमान परिदृश्य में
भ्रष्टाचार तस्करी, जमाखोरी,
घूसखोरी, कर चोरी, ब्लैकमेलिंग मिलावट
आदि के कारण काले धन की प्रवृत्ति को बल मिला है। इस धन को या तो छिपा लिया जाता
है या पुन: ऐसी ही गतिविधियों में लगा दिया जाता है, जिससे
की इसका पता न लग सके।
भारत में भी काले धन की प्रवृत्ति अत्यधिक बढ़
गयी है। बड़े-बड़े पूंजीपति विभिन्न प्रकार से कर चोरी करते हैं तथा सरकारी
नौकरशाहों को रिश्वत देकर चुप रहने को कहते हैं तथा अपनी गतिविधियों को संचालित
करते रहते हैं। दूसरी तरफ सरकारी अधिकारी अतिरिक्त धन पाकर कर वसूली में रियायत
तथा ढिलाई करते हैं। इस प्रकार इन वर्गों का अतिरिक्त धन काले धन में बदल जाता
है। नौकरी पाने में घूस के लिए बड़ी रकम लेना-देना वर्तमान मे मामूली बात हो गयी
है इसी प्रकार जमाखोरी भी काले धन की प्रवृत्ति को बढ़ाती है। अपदाओं के समय वस्तुओं
को जमाखोरी कर ली जाती है तथा बाद में चोरी-छिपे उसे बेच कर काला धन अर्जित किया
जाता है। सिनेमा में भी काला धन अपार मात्रा में लगाया जाता है।
इस प्रकार वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति किसी
न किसी प्रकार काले धन को इकट्ठा करने और उसे वैध धन में परिवर्तित करने में
संलिप्त नजर आता है। काले धन को प्राप्त करने तथा जमा करने की इच्छा ही इसके
अस्तित्व के लिए जिम्मेदार है। भौतिकवादी संस्कृति, अत्यधिक उपभोक्तावाद भी इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है।
काले धन के इस प्रकार इकट्ठा होने की प्रवृत्ति
का देश की अर्थव्यवस्था तथा उसके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके साथ
ही अनेक प्रकार की सामाजिक बुराइयों को भी बल मिलता है। काले धन के कारण देश में
बड़ी मात्रा में आर्थिक क्रियाओं को करने के लिए निवेश नहीं हो पाता है। क्योंकि
काला धन छिपी हुयी अवस्था में रहता है इसका सरकारी नीतियों पर बुरा प्रभाव पड़ता
है। सरंचनात्मक ढांचे मे संधार, सामाजिक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, जनहित
की योजनायें आदि अनेक ऐसे कार्य हैं जो सरकारी निवेश के द्वारा ही संभव हो पाते
हैं लेकिन जब निवेश के लिए धन ही नहीं होगा तो ये कल्याणकारी कार्य कैसे संभव
होंगे?
कालेधन का कुप्रभाव सामाजिक व्यवस्था पर भी
पड़ता है। इससे लोगों के नैतिक मूल्यों का पतन होता है। भोगविलास और व्यभिचार
जैसी गतिविधियां सामने आती हैं तथा समाज में असमानता बढ़ती है। ईमानदारी, कर्मनिष्ठा, नैतिकता जैसा मूल्य बेईमानी लगते हैं
तथा यह विचारधारा बन गयी है किजो जितना भ्रष्ट वह उतना ही सुखी। यह सब काले धन की
समस्या के कारण ही है।
बोफोर्स दलाली, टू जी
स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों द्वारा आर्थिक विनियमितता बरती गयी तथा धन को
अवैध तरीके से अर्जित कर विदेशी बैंकों में जमा किया गया। पूरी दुनिया में काला धन
जो कर चोरी और भ्रष्ट आचरण से कमाया जाता है, उसे रखने की
पहली पसंद स्विस बैंक (स्विट्जरलैंड) है। क्योंकि यहां पर खाताधारकों के नाम से
गोपनीय रखा जाता है। स्विट्जरलैंड में ऐसे 283 बैंक हैं जिनमें 1.6 खरब अमेरिकी
डालर से भी ज्यादा विदेशियों का धन जमा है। यहां खाता खोलने के लिए शुरूआती राशि
ही 50 हजार करोड़ डालरहै। एसोचैम का दावा है कि विदेशी बैंकों में भारतीयों का
करीब 20 खरब डालर अर्थात् लगभग 12,043 अरब रुपये जमा हैं।
दुनिया के तमाम देशों ने कालेधन की वापसी का
सिलसिला पांच-छह वर्ष पहले ही शुरू कर दिया था, इसकी पृष्ठभूमि
में दुनिया में 2008 में आयी आर्थिक मंदी थी। मंदी में काले पक्ष में छिपे इस उज्जवल
पक्ष ने ही पश्चिमी देशों को यह राह दिखाई कि काला धन ही उस आधुनिक पूंजीवाद की
देन है जो विश्वव्यापी आर्थिक संकट का कारण बना तथा जिसने दुनिया की आर्थिक
महाशक्ति समझे जाने वाले अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भी हिला दिया। तभी यह तथ्य
समझ आया कि नेता, नौकरशाही, कारोबारी
और दलालों का गठजोड़ ही नहीं आतंक का पर्यास ओसामा बिन लादेन भी अपना धन खातों को
गोपनीय रखने वाले बैंकों में जमा कर दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
हमारे देश में जितने भी गैर-कानूनी काम हैं, उन्हें कानूनी जटिलतायें सरंक्षण देने का कार्य करती हैं। काले धन की
वापसी की प्रक्रिया भी सरकार के स्तर पर ऐसे ही हश्र का शिकार रही। हालांकि
नेतृत्व परिवर्तन के बाद कड़े फैसले के क्रम में एसटीआई का गठन किया गया। लिहाजा
काले धन के खिलाफ भारत की मुहिम को बल देते हुए स्विट्जरलैंड सरकार ने ऐसे
संदिग्ध भारतीयों की सूची तैयार कर ली है, जिन्होंने स्विस
बैंक में काला धन जमा कर रखा है। यह धन 14 हजार करोड़ रुपये बताया गया है। ऐसोचैम
ने काला धन वापसी का फामूर्ला सुझाते हुये कहा कि सरकार को छह महीने की एमनेस्टी
योजना शुरू करनी चाहिए। इसके तहत जमाखोरी को धन पर 40 फीसदी कर भुगतान के साथ एच्छिक
निधि स्थानांतरण की अनुमति मिले। 1997 में स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना के
जरिये भारत सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये जुटाये थे। यह योजना पीवी नरसिम्हा राव
सरकार ने लागू की थी।
दरअसल यदि पहले ही कालाधन वापसी के मामले ने तूल
पकड़ लिया होता तो काफी पहले ही इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगते। भारत और
स्विटजरलैंड के बीच दोहरे कराधान संशोधित करने के लिए संबंधित प्रोटोकॉल पहले ही
सम्पादित हो चुका था, लेकिन इस पर दस्तखत करते वक्त
भारत सरकार ने कोई ऐसी कार्य शर्त नहीं रखी जिससे काला धन की वापसी का रास्ता
खुलता। जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पन्न होने वाले ऐसे किसी भी दोहरे
समझौते में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होता है।
भ्रष्टाचारके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने एक
संकल्प 2003 में पारित किया था, जिसका मकसद गैर-कानूनी
तरीके से विदेशों में जमा काला धन वापस लाना था। इस संकल्प पर भारत समेत 140
देशों में हस्ताक्षर किये थे। यही नहीं, 126 देशों ने तो
इसे लागू कर काला धन की वसूली भी 2003 से ही शुरू कर दी थी। लेकिन भारत सरकार ने
यथासंभव कदम नहीं उठाये। उसने इस संकल्प के सत्यापन पर 2005 में हस्ताक्षर करे।
स्विट्जरलैंड के कानून के अनुसार कोई भी देश संकल्प को सत्यापित किये बिना विदेशों
में जमा धन की वापसी की कार्यवाही नहीं कर सकता था।
हालांकि अब संयुक्त राष्ट्र को ऐसी पहल करनी
चाहिए, जिससे विकसित देशों के बैंकों में काला धन जमा करने पर पाबन्दी लगे। क्योंकि
भारत जैसे विकासशील देशों से जब भ्रष्टाचार के रूप में अर्जित काला धन बाहर जाता
है तो देश में गरीबी और असमानता बढ़ती है। देर से ही सही परंतु यदि सरकार काले धन
की वापसी में सफल होती है तो आर्थिक तंगी से जूझ रहे भारत की तस्वरी बदलने में इस
धन से मदद मिलेगी। देश के भौतिक और नैतिक पक्षों के साथ-साथ समस्त रूप से विकास
किया जा सकेगा और लोगों के जीवनको खुशहाल बनाया जा सकेगा।
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