निबंध : ई-न्यायालय व्यवस्था की दिशा में बढ़ते कदम - न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण का ही नतीजा है कि आज उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के साथ ही कई जिला अदालातों में ई-न्यायालय व्यवस्था भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोग अपने किसी भी मुकदमे की प्रगति और स्थिति के बारे में सिर्फ अदालत की वेबसाइट पर एक क्लिक करके ही अपेक्षित जानकारी घर बैठे प्राप्त कर पा रहे हैं। ई-न्यायालय के महत्व को महसूस करते हुए जुलाई 2004 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण के लिए देशव्यापी नीति तैयार करने के लिए ई-कमेटी के गठन के करते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश के महत्वकांक्षी और न्यायिक व्यवस्था में सुधार के इस दीर्धकालीन प्रस्तावको मंजूरी दी।
निबंध : ई-न्यायालय व्यवस्था की दिशा में बढ़ते कदम
विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की बढ़ती
संख्या से प्रभावकारी ढंग से निपटने, वादियों उनके
अदालती मामलों से जुड़ी आवश्यकता सुचनाएं तत्परता से उपलब्ध कराने, न्यायाधीशों को कानूनी बिन्दुओं से जुड़ी न्यायिक-व्यवस्थाएं और
आंकड़े सहजता से उपलब्ध कराने तथा समूची न्याय-प्रणाली को गति प्रदान करने के
लिए न्यायलयों के कम्प्यूटरीकरण की दिशा में दो दशक पूर्व प्रयास शुरू किए गए
थे। न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण का ही नतीजा है कि आज उच्चतम न्यायालय और
उच्च न्यायालयों के साथ ही कई जिला अदालातों में ई-न्यायालय व्यवस्था भी
सफलतापूर्वक काम कर रही है। देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोग अपने किसी
भी मुकदमे की प्रगति और स्थिति के बारे में सिर्फ अदालत की वेबसाइट पर एक क्लिक
करके ही अपेक्षित जानकारी घर बैठे प्राप्त कर पा रहे हैं।
ई-न्यायालय के महत्व को महसूस करते हुए जुलाई
2004 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण के लिए
देशव्यापी नीति तैयार करने के लिए ई-कमेटी के गठन के करते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश
के महत्वकांक्षी और न्यायिक व्यवस्था में सुधार के इस दीर्धकालीन प्रस्तावको
मंजूरी दी। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने इसके बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय के
सेवानिवृत्त न्यायाधीश डॉ. जी. सी. भरूका की अध्यक्षता में ई-कमेटी के गठन की
अधिसूचना जारी कर दी र्थी केन्द्र सरकार की इस अधिसूचना के साथ ही ई-न्यायालय व्यवस्था
की दिशा में काम शुरू हो गया।
न्यायमूर्ति भरूका की अध्यक्षता वाली ई-कमेटी
ने मई, 2005 में भारतीय न्यायपालिका में सुचना और संचार प्रोद्योगिकी लागू करने
की योजना के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश को सौंपी जिसमें न्यायपालिका
में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी लागू करने के प्रारूप को रेखांकित किया गया था।
ई-कमेटी की इस रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायपलिका में कम्प्यूटरीकरण और सूचना
प्रौद्योगिकी लागू करने की देशव्यापी योजना तैयार हुई।
रिपोर्ट में न्यायिक पोर्टल और ई-मेल सेवा, सहजता से इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर उपकरण, न्यायाधीशों
और अदालत के प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण, सूचना
प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अदालत
परिसर में प्रशिक्षित स्टाफ की उपस्थिति के लिए एक एक अलग काडर बनाने, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय परिसरों से मौजूद संरचना को
अपग्रेड करने, समूचे रिकार्ड के लिए डिजिटल संग्रह तैयार
करने और करने और समस्त लॉ-पुस्तकालयों को कम्प्यूटर-नेटवर्क से जोड़ने जैसे
कार्यों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया शूरू की गई ।
देश की न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण की दिशा
में 1990 से ही प्रयास हो रहे थे। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों को कम्प्यूटर
प्रणाली से परस्पर जोड़ा जा रहा था। लेकिन
इन प्रयासों ने 2001 से गति पकड़ी। 2001-03 के दौरान चार महानगरों-दिल्ली, मुंबई, कोलमत्ता और चेन्नई में सात सौ अदालतों का
कम्प्यूटरीकरण किया गया। इसके बाद 2003-04 में राज्यों की राजधानियों और केन्द्र
शासित प्रदेशों के 29 शहरों की नौ सौ अदालतों के कम्प्यूटरीकाण का कार्य शुरू
हुआ।
न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण के संतोषजनक
नतीजे सामने आने पर मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलोंकी समिति ने फरवारी 2007 में
अदालतों में लंबित मुकदमों के निपटारे को गति प्रदान करने और मुकदमे के वादियों को
सूचना उपलब्ध कराने में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और न्यायाधीशों को न्यायिक
प्रक्रियासे जुड़े आंकड़े तथा जानकारियां सहजता से उपलब्ध कराने के इरादे से
441.08 करोड़ रुपय की ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना को मंजूरी दी।
ई-न्यायालय मिखन मोडि परियोजना के अंतर्गत जिला
और अधीनस्थ का कम्प्यूटरीकरण और उच्चतर न्यायालयों में सूचना एवं संचार
प्रौद्योगिकी की आधारीय संरचना को अधिक स1दृढ़ बनाना था। सरकार ने सितंबर 2010 में
इस परियोजना के लिए स्थिति रकम में संशोधन करके इसे 935 करोड़ रुपय कर दिया था।
इस वृद्धि का मकसद न्यायालय परिसरों और न्यायालयों की संख्या में वृद्धि करना, उत्पादों और सेवाओं की दरों में वृद्धि तथा नई मदों को इसमें शामिल करना
था। इसके बाद ई-न्यायालय परियोजना के दायरे में न्यायालय परिसरोंकी संख्या 2,100 से बढ़कर 3,069 अर्थात ऐसी अदालतों की संख्या
13,000 से बढ़कर 14,249 हो गई।
इय परियोजना के अंतर्गत देश के पहले कागजरहित
ई-न्यायालय ने फरवरी 2010 में दिल्ली के कड़कड़डूमा अदालत परिसर में काम करना
शुरू किया था। ई-न्यायालय में न्यायाधीश के समक्ष मुकदमों की मोटी फाइलें नहीं
बल्कि लैपटॉप होता है।
इस परियोजना के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और
देश के 20 उच्च नयायालयों में कम्प्यूटर्स, प्रिंटर्स, स्कैनर्स, सर्वर, नेटवर्किंग
उपकरण और नेटवर्क केबलिंग और व्यवधान रहित बिजली आपूर्ति जैसे उपाय करके सूचना
एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित संरचना को अपग्रेड किया जा चुका है। इस काम पर
अब तक 41.47 करोड रुपय खर्च किया जा चुके हैं। यही नहीं, अब जम्मू कश्मीर, गुवाहाटी,
राजस्थान और कलक उच्च न्यायालयों में विडियो कांफ्रेसिंग सुविधा भी उपलब्ध
कराई गई है।
केन्द्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तमेल
और न्यायपालिका में प्रशासनिक सुधारों पर निगाह रखने के लिए बनी ई-कमेटी की कमान
देश के प्रधान न्यायाधीश के हाथ में सौंपी है। इस समिति में न्यायिक अधिकारियों
और सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों के अलावा अटार्नी जनरल और कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं
को भी शामिल किया गया है।
सरकार ने भारतीय न्यायपलिका में प्रौद्योगिकी
की देशव्यापी नीति पर ई-कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार ई-न्यायालय परियोजना
को पांच साल में लागू करने के लिए इसे तीन चरणों में बांटा था। पहले चरण में 854
करोड़ रुपए खर्च करके सभी 2,500 अदालत परिसरों में कम्प्यूटर
कक्ष और न्यायिक सेवा केन्दों की स्थापना हुई। करीब 15,000
न्यायिक अधिकारियों को लैपटाप उपलब्ध कराने और तालुका स्तर से लेकर उच्चतम न्यायालय
तक सभी अदालातों को डिजिटल इंटरनेक्टीविटी से जोड़ने और उच्चतम न्यायालय तथा
सभी उच्च न्यायालयों में ई-फाइलिंग सुविधा शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था।
दूसरे चरण में फाइलिंग की प्रक्रियास से लेकर इसके कार्यान्वन स्तर तक की सारी
न्यायिक प्रक्रिया के साथ ही प्रशासनिक गतिविधियों को सूचना और संचार
प्रौद्योगिकी के दायरे में लाने तथा तीसरे चरण में अदालतों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों
तथा विभागों के बीच सूचना के सहज प्रवाह को सुनिश्चित बनाने का लक्ष्य रखा गया
था।
इस परियोजना के कार्यान्वयन से जहां न्यायिक
प्रक्रियाओं को गति प्रदान करने, मामलों के तेजी से निपटाने
को सुविधाजनक बनाने में मदद मिल रही है वहीं मुकदमों की स्थिति, वादियों को मामले पर हुए निर्णय के बारे के सदस्यों तथा व्यक्तियों को
पारदर्शी तरीके से सूचना मिलना संभव हो सका है।
ई-न्यायायल सेवा के जरिए न्यायालय में मुकदमों
के प्रबंधन की प्रक्रिया को आटोमेशन मोड में डाला गया। इस सेवा के दायरे में
मुकदमों को फाइल करना, मामलों की जांच-पड़ताल, मामलों का पंजीकरण, मामले का आबंटन, अदालत की कार्यवाही, मामले से संबंधित विस्तृत
विवरण, मुकदमे का निष्पादन और स्थानांतरण जैसी जानकारी
मुहैया कराई जा रही है। इसी तरह ई-न्यायालय सेवा के तहत न्यायिक आदेश और फैसलों
की प्रमाणित प्रति, कोर्ट फीस और इससे जुड़ी दूसरी
जानकारियां आनलाइन प्राप्त की जा सकती हैं।
देश के दूरदराज इलाके में रहने वाले व्यक्ति
कहीं से और किसी भी समय वेबसाइट पर क्लिक करके किसी भी मुकदमे की जानकारी प्राप्त
करने में सक्षम हैं। इस परियोजना के तहत पहले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों
में ओर इसके बाद जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में ई-फाइलिंग सुविधाजनक होती जा रही
है।
ई-न्यायालय परियोजना के अंतर्गत एक फरवरी 2012
की स्थिति के अनुसार 9,389 अदालतों का कम्प्यूटरीकरण
हो चुका है। कुछ अदालतों में मामला दर्ज करने, पंजीकरण, मुकदमों की सूची तैयार करने जैस सेवाएं भी शुरू हो हो गई हैं। ई-न्यायालय
परियोजना के कार्यान्वयन के लिए एन.आई.सी. को 487.84 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए गए हैं।
न्यायालयों में उच्च गुणवत्ता वाले कम्प्यूटर, प्रिंटर्स, स्कैनर्स, सर्वर, नेटवर्किंग उपकरण और नेटवर्क केबलिंग और व्यवधान रहित बिजली आपूर्ति
जैसे उपाय करके सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित संरचना को सुदृढ़ बनानेके
सतत् प्रयास चल रहे हैं। इस काम पर उच्चतम न्यायालय में तीन करोड़ से अधिक रकम
खर्च की जा चुकी है जबकि उच्च न्यायालयों में बंबई उच्च न्यायालय में सबसे
अधिक सात करोड़ 53 लाख और सबसे कम एक लाख रुपए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
में खर्च हुए हैं।
ई-न्यायालय प्रक्रिया का उपयोग करने से पहले
इसकी प्रक्रिया को भी समझना जरूरी है। उच्चतम न्यायालय में सिर्फ एडवोकेट आन
रिकार्ड और व्यक्तिगत रूप से याचिका रूप से दायर करने वाले ही ई-फाइलिंग सुविधा
का उपयोग कर सकते हैं। उस सुविधा के इस्तेमाल के इच्छुक व्यक्ति या एडवोकेट आन
रिकार्ड को अपना पता, संपर्क के लिए विवरण तथा ई-मेल
का पता देना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया को पूरा करने पर ही एडवोकेट आन रिकार्ड को
लाग-इन आईडी और व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले को साइन अप प्रक्रिया से
लाग इन आईडी मिलती है। इस प्रक्रिया के तहत दी जाने वाली कोर्ट फीस का भुगतान
सिर्फ क्रेडिट कार्ड से किया जा सकता है। यही प्रक्रिया उच्च न्यायालयों और
निचली अदालतों में ई-फाइलिंग के लिए अपनानी होगी।
COMMENTS