नये राज्यों की मांग की प्रासंगिकता पर निबंध : भारत में नये राज्यों की मांग नई नहीं है। भाषा के आधार पर नये राज्यों के गठन की मांग का सिलसिला तो स्वतंत्रता के पहले से ही शुरू हो गया था। स्वतंत्रता के पश्चात तेलगू भाषी लोगों के द्वारा नये राज्य के गठन के मांग ने जोर पकड़ा, जिसमें पोट्टू श्री रामालू की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु होने से सरकार आन्ध्र प्रदेश का भाषायी आधार पर गठन करनेको मजबूर हो गयी। इसके पश्चात को तमिल, कन्नड़, मरोठी, मलयालम भाषी लोग आन्दोलित हो उठे। इस प्रकार नये राज्यों के अस्तित्व में आने का सिलसिला-सा चल पड़ा। नये राज्यों को गठित करने के लिए क्या मापदण्ड होने चाहिए इसके लिए सरकार ने सर्वप्रथम धर आयोग गठित किया था जिसने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को अस्वीकृत कर दिया। इसके पश्चात जे.वी.पी. कमेटी ने भी यही संस्तुति की।
नये राज्यों की मांग की प्रासंगिकता पर निबंध
- सीमाओं का निर्धारण आसान नहीं होता।
- संसाधनों के बंटवारे में असामंजस्य रहता है क्योंकि कई बार देखा गया है कि संसाधन किसी नये राज्य के पास तो कारखाने पुराने राज्य के पास होते हैं।
- क्षोभ और असंतोष की स्थिति पैदा होती है जिसकी परिणति जनाक्रोश के रूप में सामने आती है।
- नये राज्यों का गठन बहुत खर्चीला होता है जितना धन राज्य के गठन में खर्च करना पड़ता है उतने में तो विकास की गंगा बहाई जा सकती है।
- राज्य की अस्मिता प्रभावित होती है तथा सांस्कृतिक क्षरण भी होता है, क्योंकि हर एक राज्य अपनी विशेष संस्कृति होती है जिसे विकसित होने में शताब्दियाँ लग जाती हैं। राज्यों के बंटवारे से इस संस्कृति का क्षरण होता है।
- इसके लिए शिक्षा के अवसरों का विकास दूर-दराज के क्षेत्रों में भी उपयुक्त तरीके से करना होगा। शिक्षा का पूरा ढांचा तो प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च हो उसे क्रियान्वित करना होगा। रोजगार के अवसरों का सृजन करने पर बल दिया जाना चाहिए ताकि युवाओं के आक्रोश को कम किया जा सके।
- अधोसंरचना का विकास कर उन्हें प्रशासन से जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए।
- पंचायती राज के उद्देश्य को पूरी कर्तव्यनिष्ठ भावना के साथ क्रियान्वित किया जाना चाहिए ताकि अंतिम व्यक्ति भी प्रशासन में सहयोग करे तथा व्यवस्था से खुद को जोड़ सके।
- स्वस्थ्य सुविधाओं में व्याप्त भ्रष्टाचारपर अकुंश लगाया जाए क्योंकि इसी के कारण जनता अपने अधिकार को प्राप्त नहीं कर पाती है।
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