सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय रचनाएँ व साहित्यिक परिचय : कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 ई. को अल्मोड़ा के समीप कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके जन्म के 6 घंटे बाद ही माता का देहांत हो गया, जिसके कारण इनकी दादी और पिता ने इनका लालन-पालन किया। इनके पिता का नाम गंगादत्त पंत था। ये जन्मजात कवि थे, इन्होंने सात वर्ष की अल्पवय में ही काव्य-रचना प्रारंभ कर दी थी। सन् 1919 ई. में पंत जी अपने मँझले भाई के साथ काशी चले गए। वहाँ आपने क्वींस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। यहीं आप कवि कर्म की ओर विशेष रूप से उन्मुख हुए। आप की कविताएँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं। काशी में पंत जी का परिचय रवींद्रनाथ ठाकुर और सरोजिनी नायडू के काव्य के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ।
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय रचनाएँ व साहित्यिक परिचय
सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के महान कवियों में से एक थे। इनका
काव्य अधिकांशत: प्रकृति चित्रण पर आधारित है। इसलिए इन्हें ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ भी कहा जाता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने पंत के विषय में लिखा
है-‘‘पंत केवल शब्द-शिल्पी ही नहीं, महान् भाव-शिल्पी भी हैं और सौंदर्य के निरंतर निखरते सूक्ष्म रूप को
वाणी देने वाले, एक संपूर्ण युग को प्रेरणा देने वाले प्रभाव-शिल्पी भी।’’
जीवन परिचय—कविवर सुमित्रानंदन
पंत का जन्म 20 मई, 1900 ई. को अल्मोड़ा के समीप कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके जन्म के 6 घंटे बाद ही माता का देहांत हो गया, जिसके कारण इनकी दादी और पिता ने इनका लालन-पालन किया। इनके पिता का नाम गंगादत्त पंत था। ये जन्मजात कवि थे, इन्होंने सात वर्ष की अल्पवय में ही काव्य-रचना प्रारंभ कर दी थी।
पंत जी ने उच्चशिक्षा का प्रथम चरण अल्मोड़ा में पूर्ण किया। वहीं पर
इन्होंने अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।
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सन् 1919 ई. में पंत जी अपने
मँझले भाई के साथ काशी चले गए। वहाँ आपने क्वींस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। यहीं आप कवि कर्म की ओर विशेष रूप से उन्मुख हुए। आप की कविताएँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं। काशी
में पंत जी का परिचय रवींद्रनाथ ठाकुर और
सरोजिनी नायडू के काव्य के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ। अब आपकी कविता सहृदय काव्य-मर्मज्ञों के हृदय में धाक जमाने लगी थी। इसके बाद सन् 1950 ई. में आपको आल
इंडिया रेडियो के परामर्शदाता के पद पर नियुक्ति मिली। इस पद पर आप 1957 ई. तक कार्य करते रहे।
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आपको ‘लोकायतन’ पर सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी पुरस्कृत हुए। भारत सरकार ने आपको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 28 दिसंबर सन् 1977 ई. को सरस्वती का यह उपासक लौकिक जगत् को त्यागकर गोलोकवासी हो गया।
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साहित्यिक परिचय— पंत जी जहाँ सौंदर्य एवं प्रकृति के सुकुमार कवि हैं, वहीं उनकी मानवतावादी दृष्टि भी किसी से छिपी नहीं है। काव्य सृजन का
जो वास्तविक उद्देश्य है, उसकी पूर्ति सर्वत्र की गई है। इस
दृष्टि से हिंदी साहित्य में कवि पंत का स्थान बहुत ऊँचा है। पंत जी का काव्य युग
के साथ बदलता रहता है। प्रारंभ में वे छायावादी रहे बाद में प्रगतिवादी चेतना से
युक्त हो गए। कालांतर में उनकी कविता अरविंद दर्शन से प्रभावित हुई तथा तत्पश्चात्
वे नवमानववादी रचनाएँ लिखने लगे। पंत जी अपनी कोमल कल्पना के कारण सुविख्यात रहे
हैं।
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कृतियाँ— आपने दीर्घकालिक काव्य-जीवन में हिंदी काव्य-जगत् को अनेक कृतियाँ
प्रदान की, जो निम्नलिखित हैं–
(अ) लोकायतन— इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा अभिव्यक्त
हुई है। इसमें ग्राम्यजीवन और जन-भावना को स्वर प्रदान किया गया है।
(ब) पल्लव— इस काव्य-संग्रह ने कवि को छायावादी कवि के रूप में स्थापित किया।
इसमें प्रेम, प्रकृति और सौंदर्य पर आधारित व्यापक
चित्र प्रस्तुत किए गए हैं।
(स) वीणा— इस काव्य-संग्रह में कवि के प्रारंभिक गीत संकलित हैं, जो प्रकृति के अपूर्व सौंदर्य को चित्रित करते हैं।
(द) ग्रंथि— इस काव्य-संग्रह में कवि की वियोग-व्यथा को व्यक्त करने वाली रचनाएँ
हैं। प्रकृति यहाँ भी सहचरी बनकर कवि को संबल प्रदान करती हुई चलती है।
(य) गुंजन— इसमें कवि की गंभीर और प्रौढ़ रचनाएँ संकलित हैं, जो कि प्रकृति-प्रेम और सौंदर्य से संबंधित हैं।
(र) युगांत, ग्राम्या एवं युगवाणी— इन संग्रहों की रचनाओं पर प्रगतिवाद और समाजवाद का प्रभाव है। कवि का
मानव हृदय दलित पीड़ित के प्रति द्रवित हो उठा है।
(ल) अन्य— स्वर्णधूलि, उत्तरा, अतिमा, स्वर्णकिरण आदि रचनाओं में पंत जी
महर्षि अरविंद के अंतश्चेतनावाद को भाव एवं शब्द प्रदान करते नजर आते हैं।
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त ‘चिदंबरा’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘शिल्पी’ आदि पंत जी की अन्य महत्वपूर्ण
कृतियाँ हैं।
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भाषागत विशेषताएँ— कवि की भाषा प्रांजल और साहित्यिक खड़ीबोली हिंदी है। भावानुकूल भाषा
का प्रयोग शैली को सरस और सरल बनाता है। इनकी शैली में मधुरता, सरलता, चित्रात्मकता एवं संगीतात्मकता
सर्वत्र विद्यामन है। भाषा में कोमलता, सुकुमारता के साथ-साथ लाक्षणिकता भी देखी जा सकती है।
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