रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन परिचय भाषा-शैली व साहित्यिक परिचय : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह का हिंदी के ओजस्वी कवियों में शीर्ष स्थान है। वे हिंदी के महान कवि, श्रेष्ठ निबंधकार, विचारक एवं समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के ग्राम सिमरिया में सन् 1908 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था। इनकी अल्पायु में ही इनके पिता का देहांत हो गया। इन्होंने ‘मोकामाघाट’ से मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी.ए. ऑनर्स करने के पश्चात् आप एक वर्ष तक मोकामाघाट के प्रधानाचार्य रहे। सन् 1934 ई. में आप सरकारी नौकरी में आए तथा 1943 ई. में ब्रिटिश सरकार के युद्ध-प्रचार-विभाग में उपनिदेशक नियुक्त हुए।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन परिचय भाषा-शैली व साहित्यिक परिचय
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह का हिंदी के
ओजस्वी कवियों में शीर्ष स्थान है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत उनकी कविताओं में प्रगतिवादी स्वर भी मुखरित है, जिसमें उन्होंने शोषण का विरोध करते
हुए मानवतावादी मूल्यों का समर्थन किया है। वे हिंदी के महान कवि, श्रेष्ठ निबंधकार, विचारक एवं समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं।
जीवन परिचय : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के ग्राम सिमरिया में सन् 1908 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था। इनकी अल्पायु में ही
इनके पिता का देहांत हो गया। इन्होंने ‘मोकामाघाट’ से मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा
उत्तीर्ण करने के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण
की। बी.ए. ऑनर्स करने के पश्चात् आप एक
वर्ष तक मोकामाघाट के प्रधानाचार्य रहे। सन् 1934 ई. में आप सरकारी नौकरी में आए तथा 1943 ई. में ब्रिटिश सरकार के युद्ध-प्रचार-विभाग में
उपनिदेशक नियुक्त हुए। कुछ समय बाद आप मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुए। 1952
ई. में आपको भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया, जहाँ आप 1962 ई. तक रहे। सन् 1963 ई.
में आपको भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। आपने भारत सरकार की हिंदी-समिति के सलाहकार और
आकाशवाणी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया। सन् 1974 ई. में आपका निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय :‘दिनकर’ जी में काव्य-प्रतिभा जन्मजात थी, मैट्रिक में पढ़ते समय ही आपका ‘प्रणभंग’ नामक काव्य प्रकाशित हो गया था। इसके
पश्चात सन् 1928-29 से विधिवत् साहित्य-सृजन के क्षेत्र में पदार्पण किया।
राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत आपकी ओजस्वी कविताओं ने
सोए हुए जनमानस को झकझोर दिया। मुक्तक, खंडकाव्य और महाकाव्य की रचना कर आपने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया। गद्य के क्षेत्र में
निबंधों और ग्रंथों की रचना कर भारतीय दर्शन, संस्कृति, कला एवं साहित्य का गंभीर विवेचन
प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य के भंडार को परिपूर्ण करने का सतत प्रयास किया। आपकी साहित्य साधना को देखते हुए राष्ट्रपति महोदय ने सन् 1959
मे आपको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। ‘उर्वशी’ पर आपको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त
साहित्य अकादमी पुरस्कारों से भी आप सम्मानित किए गए।
भाषा-शैली : दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक
खड़ीबोली है, जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उर्दू एवं अंग्रेजी के प्रचलित शब्द भी उनकी भाषा में उपलब्ध हो जाते हैं। संस्कृतनिष्ठ
भाषा के साथ-साथ व्यावहारिक भाषा भी उनकी गद्य रचनाओं में उपलब्ध होती है। कहीं-कहीं देशज शब्दों के साथ-साथ
मुहावरों का प्रयोग भी उनकी भाषा में मिल जाता है। विषय के अनुरूप उनकी शैली के विविध रूप दिखाई पड़ते हैं। गंभीर विषयों
के विवेचन में उन्होंने विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है तो कवि हृदय होने से उनकी गद्य रचनाओं में
भावात्मक शैली भी दिखाई पड़ती है। समीक्षात्मक निबंधों में वे प्राय: आलोचनात्मक शैली का प्रयोग करते हैं तो
कहीं-कहीं जीवन के शाश्वत सत्यों को व्यक्त करने के लिए वे सूक्ति शैली का प्रयोग करते हैं।
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