पानी में चंदा और चाँद पर आदमी’ का सारांश : प्रस्तुत वैज्ञानिक लेख जयप्रकाश भारती जी द्वारा लिखित है, जिसमें विचार सामग्री, विवरण और इतिहास के साथ एक रोमांचकारी कथा का आनंद प्राप्त होता है। लेखक ने पृथ्वी और चंद्रमा की दूरी, चंद्रयान और उसको ले जाने वाले अंतरिक्ष यान तथा चंद्र-तल के वातावरण का सजीव परिचय प्रस्तुत किया है तथा अंतरिक्ष यात्रा का संक्षिप्त इतिहास भी दिया है। लेखक 21 जुलाई सन् 1969 के दिन का वर्णन करते हुए कहता है कि जिस दिन मनुष्य को अपना पहला कदम चंद्रमा की सतह पर रखना था, उस समय सारी दुनिया के लगभग सभी भागों में सभी स्त्री-पुरुष व बच्चे रेडियों से संपूर्ण घटना को सुन रहे थे
पानी में चंदा और चाँद पर आदमी’ का सारांश
प्रस्तुत वैज्ञानिक लेख जयप्रकाश भारती जी द्वारा लिखित है, जिसमें विचार सामग्री, विवरण और इतिहास के साथ एक रोमांचकारी कथा का आनंद प्राप्त होता है। लेखक ने पृथ्वी और चंद्रमा
की दूरी, चंद्रयान और उसको ले जाने वाले अंतरिक्ष यान तथा चंद्र-तल के वातावरण का सजीव परिचय प्रस्तुत किया
है तथा अंतरिक्ष यात्रा का संक्षिप्त इतिहास भी दिया है। लेखक 21 जुलाई सन् 1969 के दिन का वर्णन करते हुए कहता है
कि जिस दिन मनुष्य को अपना पहला कदम चंद्रमा की सतह पर रखना था, उस समय सारी दुनिया के लगभग सभी भागों
में सभी स्त्री-पुरुष व बच्चे रेडियों से
संपूर्ण घटना को सुन रहे थे जिनके पास टी०वी०
था वे आँखें गड़ाए इसे देख रहे थे और इस रोमांचकारी घटना के क्षण-क्षण के गवाह बन रहे थे।
सोमवार 21 जुलाई 1969 को भारतीय समयानुसार सुबह एक बजकर सैंतालीस
मिनट पर ईगल नामक चंद्रयान नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन को लेकर चंद्रमा के जलविहीन शांति
सागर में उतरा। पृथ्वी से चार लाख किलोमीटर दूर चंद्रमा पर पहुँचने में मानव को 102 घंटे 45 मिनट और 42 सेकेंड का
समय लगा। अपोला-11 ने बुधवार 16 जुलाई 1969 को केप केनेडी से अपनी यात्रा शुरु की जिसमें तीन यात्री नील
आर्मस्ट्रांग, एडविन एल्ड्रिन और माइकल कांलिस थे। चंद्रमा की कक्षा में पहुँचकर चंद्रयान मूलयान कोलम्बिया से अलग
होकर चंद्रतल पर उतर गया और मूलयान 16 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करने लगा जिसमें माइकल कालिंस था।
नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रतल से पृथ्वी की सुंदरता का वर्णन करते हुए
इसे बड़ी, चमकीली और सुंदर बताया। दोनों यात्रियों ने चंद्रयान का निरीक्षण करके व कुछ देर आराम करके चंद्रतल पर उतरने
का निर्णय लिया। पहले सीढ़ियों से धीरे-धीरे नील आर्मस्ट्रांग नीचे उतरे और अपना बायाँ पैर चंद्रतल पर रखा। इस
बीच आर्मस्ट्रांग दोनों हाथों से चंद्रयान को पकड़े रहे। आश्वस्त होने के बाद वह यान के आसपास ही कुछ कदम चले। चंद्रयान
के अंदर बैठे एल्ड्रिन ने मूवी कैमरे से आर्मस्ट्रांग के चित्र लेने शुरू कर दिए। बीस मिनट बाद वह भी
चंद्रयान से बाहर निकल गए। तब तक आर्मस्ट्रांग ने चंद्रधूल का नमूना जेब मे रख लिया था व टेलीविजन कैमरे को त्रिपाद पर
जमा दिया था। मानव चंद्रतल पर अरबों डॉलर खर्च करने के बाद पहुँचा था इसलिए सीमित समय के एक-एक क्षण
का उपयोग करके दोनों यात्रियों को चंद्रमा की चट्टानों व मिट्टी के नमूने लेने थे तथा चंद्रतल पर कई तरह के
वैज्ञानिक उपकरण स्थापित करने थे। इन यात्रियों ने वहाँ पर भूकंपमापी यंत्र व लेसर परावर्त्तक रखा। इन्होंने वहाँ तीनों
चंद्र यात्रियों और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के हस्ताक्षरयुक्त धातु फलक रखा और अमेरिकी ध्वज फहराया। विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के
संदेशों की माइक्रो फिल्म भी वहाँ पर छोड़ी और विभिन्न अंतरिक्ष यात्रियों को दिए गए पदकों की अनुकृतियाँ वहाँ रखी।
मानव का चंद्रमा पर उतरने का यह प्रयास प्रथम होते हुए भी सफल रहा।
जिस चंद्रमा को कवियों ने सलोना तथा सुंदर कहा था उसे वैज्ञानिकों ने बदसूरत व जीवनहीन करार दे दिया। चंद्रमा
के बारे में संसार की हर जाति ने कहानी बनाई और उसे रजनीपति व रात्रि की देवी माना। श्रीराम व कृष्ण भी उस खिलौने को
पाने का हठ करते थे तब बालक को बहलाने का उपाय था– चंद्रमा की छवि को पानी में उतारना। मानव की प्रगति की यात्रा को
महादेवी वर्मा ने एक सूत्र में बाँधते हुए कहा– ‘‘पहले पानी में चंदा को उतारा जाता था
और आज चाँद पर मानव पहुँच गया है।’’
अंतरिक्ष युग का सूत्रपात 4 अक्टूबर 1957 को हुआ था जब सोवियत रूस के
स्पुतनिक यान में यूरी गागरिन प्रथम अंतरिक्ष यात्री बना। इसके ठीक 11 वर्ष 9 मास 17 दिन बाद मानव
चंद्रमा पर पहुंचा। दिसंबर १९६८ में अपोलो-8 के तीनों यात्री चंद्रमा के पड़ोस तक पहुँचे। अपोला-10 के
द्वारा इस नाटक का पूर्वाभिनय किया गया। जिसमें एक यात्री यान को चंद्रमा की कक्षा में घुमाता रहा और अन्य दो यात्री चंद्रयान को
चंद्रमा से केवल ९ मील की दूरी तक ले गए थे। अपोलो-यान-सैटन-5 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाता है। यह विश्व का
शक्तिशाली वाहन है। जिसके तीन भाग होते हैंकमांड माड्यूल, सर्विस माड्यूल और ईगल। जिसके दो भाग-अवरोह व आरोह थे। नील
आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चंद्रतल पर 21 घंटे 36 मिनट बिताए। उन्होंने लाखों डालर का सामान
भी वहाँ छोड़ा।
दोनों चंद्र-विजेताओं ने ऊपर उड़ान भरते हुए चंद्रकक्ष में परिक्रमा
करते हुए मूलयान से अपने यान को जोड़ा ओर अपने साथी माइकल कालिंस से मिल गए। उन्होंने चंद्रयान को अलग करके उसे
चंद्रकक्ष में छोड़ दिया और इंजन दागकर वापसी के लिए बढ़ चले। वे प्रशांत महासागर में उतरे। जहाँ से उन्हें
चंद्र प्रयोगशाला ले जाया गया, उनके अनुभव रिकार्ड किए गए व उनकी जाँच भी की गई कि ये यात्री मानव जाति के लिए हानिकारक
कीटाणु तो साथ नहीं लाए हैं। चंद्रतल की मिट्टी व चट्टानों के नमूनों को विभिन्न देशों के विशेषज्ञों को
अनुसंधान के लिए दिया गया।
अपोलो-11 के बाद अपोलो-12 को भी चंद्रतल की खोज के लिए भेजा गया व
अपोलो-13 की यात्रा दुर्घटनावश बीच में रोकनी पड़ी।
अभी चंद्रमा के लिए बहुत-सी यात्राएँ होगी। अंतरिक्ष में परिक्रमा
करने वाला स्टेशन स्थापित करने की दिशा में तेजी से प्रयास हो रहे हैं। मानव हमेशा से जिज्ञासु रहा है। अज्ञात की खोज
में वह कहाँ पहुँचेगा, यह नहीं कहा सकता है।
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