निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ का सारांश : निष्ठामूर्ति कस्तूरबा श्री काका कालेलकर द्वारा रचित एक संस्मरणात्मक निबंध है। प्रस्तुत निबंध में राष्ट्रमाता कस्तूरबा के पतिव्रत धर्म, त्याग व सेवापरायणता जैसे महान् गुणों का वर्णन किया गया है। यह निबंध भारतीय नारियों को एक आदर्श जीवन की प्रेरणा प्रदान करता है। लेखक कहते है कि कस्तूरबा महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष की पत्नी थी। जिसे राष्ट्र ने आदर से ‘बापूजी’ कहा। उसी प्रकार कस्तूरबा को ‘बा’ का उपनाम दिया। परंतु कस्तूरबा ने यह उपाधि अपने सद्गुणों के आधार पर प्राप्त की। कस्तूरबा के गुणों के कारण ही राष्ट्र उनका आदर करता है। उन्होंने राष्ट्र के सामने आदर्श की एक जीवित प्रतिमा प्रस्तुत की। लेखक कहते हैं कि कस्तूरबा निरक्षर थी। दक्षिण अफ्रीका में रहने के कारण वह कुछ अंग्रेजी शब्द बोल और समझ सकती थी और विदेशी मेहमानों के आगमन पर उन्हीं शब्दों के द्वारा उनका आतिथ्य करती थी।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा श्री काका कालेलकर द्वारा रचित एक संस्मरणात्मक निबंध है। प्रस्तुत निबंध में राष्ट्रमाता कस्तूरबा के पतिव्रत धर्म, त्याग व सेवापरायणता जैसे महान् गुणों का वर्णन किया गया है। यह निबंध भारतीय नारियों को एक आदर्श जीवन की प्रेरणा प्रदान करता है। लेखक कहते है कि कस्तूरबा महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष की पत्नी थी। जिसे राष्ट्र ने आदर से ‘बापूजी’ कहा। उसी प्रकार कस्तूरबा को ‘बा’ का उपनाम दिया। परंतु कस्तूरबा ने यह उपाधि अपने सद्गुणों के आधार पर प्राप्त की। कस्तूरबा के गुणों के कारण ही राष्ट्र उनका आदर करता है। उन्होंने राष्ट्र के सामने आदर्श की एक जीवित प्रतिमा प्रस्तुत की। लेखक कहते हैं कि कस्तूरबा निरक्षर थी। दक्षिण अफ्रीका में रहने के कारण वह कुछ अंग्रेजी शब्द बोल और समझ सकती थी और विदेशी मेहमानों के आगमन पर उन्हीं शब्दों के द्वारा उनका आतिथ्य करती थी। कस्तूरबा को गीता और रामायण पर अपार श्रद्धा थी। वह उन्हें पढ़ने का प्रयास करती थी। लेखक कहते हैं कि भले ही कस्तूरबा सती सीता का वृत्तांत न पढ़ सकी, परंतु यथार्थ जीवन में उन्होंने सीता का ही अनुसरण किया। कस्तूरबा ने दुनिया की दो अमोघ शक्तियों शब्द और कृति में से कृति की नम्र उपासना करके अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया। कस्तूरबा अपने निर्णय पर अटल रहती थी। वह अपनी धर्मनिष्ठा पर स्थायी थी भले ही इसके लिए कुछ भी सहन क्यों न करना पड़े। कस्तूरबा सहनशील थी। लेखक कस्तूरबा से प्रथम बार शांति निकेतन में मिले। लेखक को लगा उसे आध्यात्मिक मातापिता प्राप्त हो गए हैं जब सरकार ने कस्तूरबा को सभा में जिसमें महात्मा जी बोलने वाले थे, न जाने के लिए कहा, उन्होंने बिना किसी डर के अपना जाने का निर्णय सुना दिया। कस्तूरबा एक सादा जीवन व्यतीत करती थी। उनके लिए परतंत्रता का विचार असहनीय था। इसी परतंत्रता के बंधन से मुक्त होने के लिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। कस्तूरबा को अपना कर्तव्य ज्ञान था, वह दो शब्दों में अपना पैâसला सुना देती थी। आश्रम में कस्तूरबा सभी के लिए माँ के समान थी। वह छोटे व बड़े सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करती थी। कस्तूरबा में आलस्य नहीं था। वृद्धावस्था में भी वह रसोई में जाकर कार्य किया करती थी। अध्यक्षीय भाषणों के समय उनवâे विशिष्ट गुण प्रकट होते थे। इन्हीं गुणों के कारण राष्ट्र ने इनका आदर किया। ये गुण कस्तूरबा को अपने परिवार से प्राप्त हुए, जिनके बल पर वह असाधारण परिस्थितियों का सामना कर लेती थी। आज राष्ट्र के सभी लोग- हिंदू, सिक्ख, मुस्लिम सभी उनकों याद करते हैं और उनके जैसे गुण अपनाने की प्रेरणा लेते हैं।
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