चींटी कविता का सारांश (भावार्थ) - सुमित्रानंदन पंत : चींटी कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ग्रंथ ‘युगवाणी’ से ली गई है जिसमें कवि ने चींटी की क्रियाशीलता को प्रदर्शित किया है। कवि कहते हैं कि क्या तुमने ध्यानपूर्वक कभी चींटी को देखा है। चींटियों की पंक्ति एक सीधी काली रेखा के समान दिखाई पड़ती है। जब चींटियाँ चलती हैं तो ऐसा लगता है जैसे काला धागा हिल-डुल रहा हो। वे अपने छोटे-छोटे पैरों से मिलती जुलती हुई चलती हैं। कवि चींटी की कार्यक्षमता पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि चींटी निरंतर अपने कार्य में लगी रहती है। उसका भी अपना घर समाज होता है, वह गाय चराती है। (प्राणिशास्त्रियों के अनुसार चीटियों में गायें भी होती हैं।) उन्हें धूप खिलाती हैं, बच्चों की देखभाल व शत्रुओं से न डरकर अपनी सेना को संगठित करती हैं तथा अपना घर, आँगन साफ करती है।
चींटी कविता का सारांश (भावार्थ) - सुमित्रानंदन पंत
चींटी कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ग्रंथ ‘युगवाणी’ से ली गई है जिसमें कवि ने चींटी की क्रियाशीलता को प्रदर्शित किया
है। कवि कहते हैं कि क्या तुमने ध्यानपूर्वक कभी चींटी को देखा है। चींटियों की
पंक्ति एक सीधी काली रेखा के समान दिखाई पड़ती है। जब चींटियाँ चलती हैं तो ऐसा
लगता है जैसे काला धागा हिल-डुल रहा हो। वे अपने छोटे-छोटे पैरों से मिलती जुलती
हुई चलती हैं। कवि चींटी की कार्यक्षमता पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि चींटी
निरंतर अपने कार्य में लगी रहती है। उसका भी अपना घर समाज होता है, वह गाय चराती है। (प्राणिशास्त्रियों
के अनुसार चीटियों में गायें भी होती हैं।) उन्हें धूप खिलाती हैं, बच्चों की देखभाल व शत्रुओं से न डरकर
अपनी सेना को संगठित करती हैं तथा अपना घर, आँगन साफ करती है। चींटी समाज मे रहने
वाला प्राणी है जो कठिन परिश्रमी एवं एक अच्छी नागरिक है। चींटी का शरीर भूरे
बालों की कतरन के समान छोटा एवं पतला है। उसके आकार का छोटापन विश्वविख्यात है, परंतु उसका हृदय असीम साहस से भरा
होता है। वह संपूर्ण पृथ्वी पर निडर होकर विचरण करती है तथा पूरी लगन से अपने
कार्य में लगी रहती है। वह जीवन की अक्षय चिंगारी के समान है। वह तिल के समान छोटी
होते हुए भी, प्राणों की झिलमिलाहट से पूर्ण है।
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