अमर शहीद भगतसिंह पर कविता संग्रह : सरदार भगतसिंह का नाम देशवासियों के लिए प्रेरणा-स्त्रोत रहा है। आज सरदार भागर सिंह की याद में कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है। कविताओं के माध्यम से एक बार फिर हम सब शहीद भगत सिंह के बलिदान को याद करते हैं। भारत माता का सपूत, आजादी का दीवाना था, हँसकर झूल गया फाँसी पर, भगतसिंह मस्ताना था। नौजवान था वह पंजाबी, गजब शेर के दिलवाला, देशप्रेम का रस पीकर वह बना हुआ था मतवाला। दिन में चैन, नींद रात में, उसको कभी नहीं आती, भारत माता की परवशता अति बेचैन बना जाती। आजादी की लौ पर मरने वाला वह परवाना था,
अमर शहीद भगतसिंह पर कविता संग्रह
सरदार भगतसिंह का नाम देशवासियों के लिए प्रेरणा-स्त्रोत रहा है। आज सरदार भागर सिंह की याद में कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है। कविताओं के माध्यम से एक बार फिर हम सब शहीद भगत सिंह के बलिदान को याद करते हैं।
भारत माता का सपूत, आजादी का दीवाना था,
हँसकर झूल गया फाँसी पर, भगतसिंह मस्ताना था।
नौजवान था वह पंजाबी, गजब शेर के दिलवाला,
देशप्रेम का रस पीकर वह बना हुआ था मतवाला।
दिन में चैन, नींद रात में, उसको कभी नहीं आती,
भारत माता की परवशता अति बेचैन बना जाती।
आजादी की लौ पर मरने वाला वह परवाना था,
हँस कर झूल गया फाँसी पर, भगतसिंह मस्ताना था।
‘हम स्वदेश आजाद करेंगे’ - कसम वीर ने खाई थी,
भारत के कोने-कोने में उसने जोत जगाई थी।
बाँध कफन सिर पे, मशाल ले क्रान्तिदूत था मुस्काया,
गाँव-गाँव में आजादी का परचम उसने लहराया।
इंकलाब का नारा देने वाला वह मरदाना था,
हँस कर झूल गया फाँसी पर भगत सिंह मस्ताना था।
कर दी नींद हराम भगत ने, अंग्रेजों की मार से
काँप गया सिंहासन लन्दन का उसकी हुंकार से।
लिए हाथ में दीप क्रान्ति का सबको राह बताने को,
वीर भगत बढ़ चला वतन को बन्धनमुक्त कराने को।
मुर्दों में भी जान फूँक दे, ऐसा एक तराना था,
हँसकर झूल गया फाँसी पर, भगतसिंह मस्ताना था।
केन्द्र-सभा में बम निर्भय हो, भगत सिंह ने था फेंका,
अन्दर जाते पुरुषसिंह को नहीं किसी ने था टोका।
सजा मौत की मिली अदालत में, फिर भी था मुस्काया,
फाँसी पर चढ़ गया, वीर वह तनिक नहीं था घबराया।
देकर अपनी जान, क्रान्ति का दीपक उसे जलाना था,
हँसकर झूल गया फाँसी पर, भगतसिंह मस्ताना था।
भारत ने सचमुच, सपूत अपना महान, एक खोया था,
सच है उस दिन भारतभूमि का, बच्चा-बच्चा रोया था।
कुर्बानी उस वीर भगत की, आओ सब मिल याद करें,
आजादी की रक्षा के हित, हम सब कुछ बलिदान करें।
बलिदानी था, उसे देश का नव इतिहास बनाना था,
हँसकर झूल गया फाँसी पर, भगत सिंह मस्ताना था।
कविता संख्या - 2
आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?
हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।
फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।
झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।
पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।
उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।
सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का,
बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का।
जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला,
स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला।
झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने,
लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने।
लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा,
जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा।
खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी,
होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी।
गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर,
भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर।
मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले,
प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले।
बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है,
वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है।
तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई,
छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई।
एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा,
बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा।
बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा,
आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा।
पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा,
स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा।
तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती,
अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती।
भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया,
स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया।
भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है,
जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है।
जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते,
इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते।
यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी,
होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी।
मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने,
कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने?
मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं,
उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें।
भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती,
वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती।
मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ,
उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ।
मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे,
फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे ।
इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो,
इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो।
हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए,
विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए।
और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे,
बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे।
भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर,
हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर।
हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर,
विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर।
अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ,
सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ।
जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी,
तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी।
जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ,
जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ।।
कविता संख्या - 3
भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह ।
था तुझको मुल्को-कौम का अभिमान भगत सिंह ।।
वह दर्द तेरे दिल में वतन का समा गया ।
जिसके लिये तू हो गया कुर्बान भगत सिंह ।।
वह कौल तेरा और दिली आरजू तेरी ।
है हिन्द के हर कूचे में एलान भगत सिंह ।|
फांसी पै चढ़के तूने जहां को दिखा दिया ।
हम क्यों न बने तेरे कदरदान भगत सिंह ।।
प्यारा न हो क्यों मादरे-भारत के दुलारे ।
था जानो-जिगर और मेरी शान भगत सिंह ।।
हरएक ने देखा तुझे हैरत की नजर से ।
हर दिल में तेरा हो गया स्थान भगत सिंह ।।
भूलेगा कयामत में भी हरगिज न ए ‘किशोर’ ।
माता को दिया सौंप दिलोजान भगत सिंह ।।
कविता संख्या - 4
दाग़ दुश्मन का किला जाएँगे, मरते मरते,
ज़िन्दा दिल सब को बना जाएंगे, मरते मरते ।।
हम मरेंगे भी तो दुनिया में ज़िन्दगी के लिये,
सब को मर मिटना सिखा जाएंगे, मरते मरते ।।
सर भगत सिंह का जुदा हो गया तो क्या हुया,
कौम के दिल को मिला जाएंगे, मरते मरते ।।
खंजर -ए -ज़ुल्म गला काट दे परवाह नहीं,
दुक्ख ग़ैरों का मिटा जाएंगे, मरते मरते ।।
क्या जलाएगा तू कमज़ोर जलाने वाले,
आह से तुझको जला जाएंगे, मरते मरते ।।
ये न समझो कि भगत फ़ांसी पे लटकाया गया,
सैंकड़ों भगत बना जाएंगे, मरते मरते ।।
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