सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय : चर्चित निबंधकार सरदार पूर्ण सिंह का जन्म पाकिस्तान के एबटाबाद जिले के सलहड़ नामक गाँव में 17 फ़रवरी 1881 ईस्वी में हुआ था। पिता सरदार करतार सिंह भागर कानूनगो पद पर आसीन सरकारी कर्मचारी थे। पूर्णसिंह अपने माता पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् टोकियो से रसायन शास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहाँ उन्होंने पूरे तीन वर्ष तक अध्ययन किया। वहां उनकी भेंंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। वे स्वामी जी के विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनका शिष्य बनकर उन्होंने सन्यास धारण कर लिया। भारत वापस लौटने पर इनका विवाह श्रीमती मायादेवी से हुआ। रसायन शास्त्री होते हुए भी, सरदार पूर्ण सिंह अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत आदि के विद्वान थे।
सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय Sardar Puran Singh ka Jeevan Parichay
जीवन-परिचयः चर्चित निबंधकार सरदार पूर्ण सिंह का जन्म पाकिस्तान के एबटाबाद जिले के सलहड़ नामक गाँव में 17 फ़रवरी 1881 ईस्वी में हुआ था। पिता सरदार करतार सिंह भागर कानूनगो पद पर आसीन सरकारी कर्मचारी थे। पूर्णसिंह अपने माता पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् टोकियो से रसायन शास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहाँ उन्होंने पूरे तीन वर्ष तक अध्ययन किया। वहां उनकी भेंंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। वे स्वामी जी के विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनका शिष्य बनकर उन्होंने सन्यास धारण कर लिया। भारत वापस लौटने पर इनका विवाह श्रीमती मायादेवी से हुआ। रसायन शास्त्री होते हुए भी, सरदार पूर्ण सिंह अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत आदि के विद्वान थे। उन्होनें लाहौर में अध्यापन कार्य किया है इसी से इन्हें अध्यापक पूर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। स्वामी रामतीर्थ के साथ उनकी अंतिम भेंट जुलाई 1906 में हुई थी। मार्च सन् 1931 ईस्वी में, मात्र 50 वर्ष की आयु में ही इनका स्वर्गवास हुआ।
रचनाएँ : सरदार पूर्ण सिंह अंग्रेजी, हिन्दी, और पंजाबी तीनों भाषाओं में रचनाएँ लिखते रहे हैं। इनके द्वारा हिंदी में लिखे गए निबंध निम्न हैं।
- सच्ची वीरता,
- कन्यादान,
- पवित्रता,
- आचरण की सभ्यता,
- मजदूरी और प्रेम,
- अमेरिका का मस्तयोगी वाल्टह्निटमैन
भाषा शैली : सरदार पूर्ण सिंह हिन्दी के चर्चित निबंधकार हैं। उन्हें हिन्दी के साथ संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू आदि भाषाओं पर अच्छा अधिकार प्राप्त था। विविध भाषाओं के विद्वान होने के कारण इनके निबंधों में इन भाषाओं का प्रभाव अवश्य दिखाई देता है। कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के वाक्य भी उभर आए हैं; जैसे "We shall beat the world with the tips of our fingers."
सरदार पूर्ण सिंह की भाषा भावानुकल सरल अथवा साहित्यिक है। उसमें मुहावरे और कहावतों का आकर्षक प्रयोग मिलता है। ‘आँखों का तारा‘, ‘आँखों में धूल झोकं ना, कान का कच्चा, दर-दर भटकना, चिकनी चुपड़ी बातें मुहावरों के साथ जिस डाल पर बैठे उसी को कुल्हाड़ी से काटना, ऊँची दुकान फीका पकवान आदि कहावतों के सुन्दर प्रयोग मिलते हैं। इनसे भाषा में आकर्षक रूप आया है तो भावों में प्रभावोत्पादक रूप विकसित हुआ है। इस विवेचन से सुस्पष्ट होता है कि सरदार पूर्ण सिंह के निबंधों की भाषा स्वाभाविक, साहित्यिक और अनुकूल है।
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