सन्त रविदास ( रैदास ) की जीवनी। Sant Raidas ki Jivani : सन्त रविदास का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुआ। इनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) तथा माता का नाम कलसा देवी (घुरबिनिया) था। पिता चर्म व्यवसाय करते थे। समयपालन की आदत तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। साधु-सन्तों की सहायता करने में उन्हें अत्यन्त आनंद मिलता था। उनके गुरु का नाम स्वामी रामानन्द था। अपना कार्य पूरा करने के बाद वे अधिकतर समय स्वामी रामानन्द के साथ ही बिताते थे। रविदास का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में अनेक बुराइयाँ फैली थीं, जैसे अन्धविश्वास, धार्मिक आडम्बर, छुआछूत आदि। रविदास ने इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। वे स्वरचित भजन गाते थे तथा समाज सुधार के कार्य करते। उन्होंने लोगों को बताया कि बाह्य आडम्बर और भक्ति में बड़ा अंतर है।
सन्त रविदास ( रैदास ) की जीवनी। Sant Raidas ki Jivani
नाम
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रविदास
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जन्म
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1398 ई
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जन्मस्थान
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काशी (वाराणसी)
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पिता का नाम
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संतो़ख दास (रग्घु)
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माता का नाम
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कलसा देवी (घुरबिनिया)
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गुरु का नाम
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स्वामी रामानन्द
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मृत्यु
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1540 ई
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सन्त रविदास का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुआ। इनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) तथा माता का नाम कलसा देवी (घुरबिनिया) था। पिता चर्म व्यवसाय करते थे। सन्त रविदास भी वही व्यवसाय करने लगे। वे अपना कार्य पूरी लगन और परिश्रम से करते थे। समयपालन की आदत तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। साधु-सन्तों की सहायता करने में उन्हें अत्यन्त आनंद मिलता था।
स्वामी रामानन्द काशी के प्रतिष्ठित सन्त थे। रविदास उन्हीं के शिष्य हो गए। अपना कार्य पूरा करने के बाद वे अधिकतर समय स्वामी रामानन्द के साथ ही बिताते थे।
रविदास कर्म को ही ईश्वरभक्ति मानते थे। वे कर्म में इतने लीन रहते थे कि कभी-कभी ग्राहकों को सामान तो बनाकर दे देते पर उनसे दाम लेना भूल जाते थे। रविदास दिनभर कर्म करते और भजन गाते थे। काम से खाली होने पर वे अपना समय साधुओं की संगति एवं ईश्वर भजन में बिताते थे। रविदास के भजनों का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है।
रविदास के विचार-
- राम, कृष्ण, करीम, राघव, हरि, अल्लाह, एक ही ईश्वर के विविध नाम हैं।
- सभी धर्मों में ईश्वर की सच्ची अराधना पर बल दिया गया है।
- वेद, पुराण, कुरान आदि धर्मग्रंथ एक ही परमेश्वर का गुणगान करते हैं।
- ईश्वर के नाम पर किए जाने वाले विवाद निरर्थक एवं सारहीन हैं।
- सभी मनुष्य ईश्वर की ही संतान हैं, अतः ऊँच-नीच का भेद-भाव मिटाना चाहिए।
- अभिमान नहीं अपितु परोपकार की भावना अपनानी चाहिए।
- अपना कार्य जैसा भी हो वह ईश्वर की पूजा के समान है।
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