राजा भगीरथ की कहानी व जीवनी। Raja Bhagirath ki Kahani : भगीरथ विख्यात महाराज दिलीप के पुत्र थे। इन्हें अपने पितामहों की कथा सुनकर बड़ा दुःख हुआ। नके कोई सन्तान न थी और वह सारा राजकार्य मन्त्रियों को सौंपकर तप करने चले गये। उन्होंने अपने लाभ के लिए अथवा अपने हित के लिए तप नहीं किया। उनकी एकमात्र अभिलाषा यही थी कि गंगा की धारा लाकर अपने पितामहों की राख अर्पित कर दूँ। भगीरथ गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या करने लगे। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वर माँगे—एक तो यह कि गंगा जल चढ़ाकर भस्मीभूत पितरों को स्वर्ग प्राप्त करवा पायें और दूसरा यह कि उनको कुल की सुरक्षा करने वाला पुत्र प्राप्त हो। ब्रह्मा ने उन्हें दोनों वर दिये, साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग इतना अधिक है कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं सकती। शंकर भगवान की सहायता लेनी होगी।
राजा भगीरथ की कहानी व जीवनी। Raja Bhagirath ki Kahani
वंश-गोत्र
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इक्ष्वाकु वंश
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पिता
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राजा दिलीप
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शासन-राज्य
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अयोध्या
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अन्य विवरण
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गंगा भगीरथ की पुत्री होने के कारण 'भागीरथी' कहलायी थीं।
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यशकीर्ति
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भगीरथ अपनी अटूट तपस्या के बल पर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाये थे।
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जब मनुष्य कोई कार्य करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तब कार्य कितना भी कठिन हो, देखने में कितना भी असम्भव जान पड़ता हो, वह कर ही लेता है। एक-दो नहीं ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं। हमारे देश के इतिहास में ऐसे अनेक महापुरुषों का वर्णन है। उन्हीं में से एक राजा भगीरथ का जीवन-चरित्र यहाँ दिया जा रहा है।
जिस वंश के महाराज रामचन्द्र थे, उसी वंश के, उनके कई पीढ़ी पहले अयोध्या में राजा सगर राज्य करते थे। राजा सगर की दो रानियाँ थीं केशिनी और सुमति। राजा सगर ने यज्ञ आरम्भ किया। प्राचीन काल में यज्ञ के समय एक घोड़ा छोड़ दिया जाता था और वह विजय का चिह्न माना जाता था। राजा सगर के घोड़े को इन्द्र ने पकड़ लिया।
जब बहुत खोजने पर भी घोड़ा न मिला तब राजा सगर ने अपने पुत्रों से घोड़ा खोजकर लाने के लिए कहा। राजा के पुत्र यज्ञ का घोड़ा ढूँढ़ने के लिए घर से निकले। देश-विदेश उन्होंने खोज डाला, किन्तु घोड़े का कहीं पता न चला, तब उन्होंने पृथ्वी खोदना आरम्भ किया। एक-एक भाई धरती खोद-खोदकर ढूँढ़ने लगा। इस ढुँढ़ाई में अनेक जीव-जन्तुओं की हत्या होने लगी, इससे लोग बहुत दुःखी हुए। लोगों ने सगर के पुत्रों से अनुनय-विनय भी की, परन्तु उन्हें तो पिता के यज्ञ को पूर्ण करना था। उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और धरती खोदते चले गये। अन्त में एक स्थान पर पहुँचे, जहाँ मुनि कपिल बैठे हुए थे और वहीं उनके निकट घोड़ा बँधा हुआ था। राजा के पुत्रों ने समझा कि हमारे पिता के यज्ञ में विघ्न डालने वाला यही है। क्रोध में बोले , ‘‘तू ही हमारे पिता के यज्ञ के घोड़े को चुरा लाया है। देख, सगर के पुत्र तुझे खोजते-खोजते आ गये। मुनि कपिल को बहुत क्रोध आया और उन्होंने इन पुत्रों को वहीं भस्म कर दिया।
राजा सगर ने बड़ी प्रतीक्षा के बाद भी जब देखा कि मेरे पुत्र नहीं लौटे तब उन्होंने अपने दूसरे पुत्र को भेजा। इनका यह पुत्र बहुत परिश्रम से वहाँ पहुँचा। उसे सारी घटना का पता चला। घोड़ा वह ले आया, यज्ञ समाप्त हो गया। भस्म हुए पुरखों को तारने के लिए गंगा की आवश्यकता थी, गंगा को लाए कौन ?
सगर के पश्चात् उनके वंश में अनेक लोगों ने बड़ी तपस्या की, किन्तु कोई गंगा की धारा लाने में समर्थ नही हुआ। अन्त में सगर के प्रपौत्र भगीरथ ने प्रतिज्ञा की, कि मै गंगा की धारा बहाकर लाऊँगा। भगीरथ विख्यात महाराज दिलीप के पुत्र थे। इन्हें अपने पितामहों की कथा सुनकर बड़ा दुःख हुआ। उन्हें इस बात का दुःख था कि मेरे पिता, पितामह यह कार्य न कर सके। उनके कोई सन्तान न थी और वह सारा राजकार्य मन्त्रियों को सौंपकर तप करने चले गये। उन्होंने अपने लाभ के लिए अथवा अपने हित के लिए तप नहीं किया। उनकी एकमात्र अभिलाषा यही थी कि गंगा की धारा लाकर अपने पितामहों की राख अर्पित कर दूँ।
ब्रह्मा वरदान प्राप्ति : भगीरथ गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या करने लगे। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वर माँगे—एक तो यह कि गंगा जल चढ़ाकर भस्मीभूत पितरों को स्वर्ग प्राप्त करवा पायें और दूसरा यह कि उनको कुल की सुरक्षा करने वाला पुत्र प्राप्त हो। ब्रह्मा ने उन्हें दोनों वर दिये, साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग इतना अधिक है कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं सकती। शंकर भगवान की सहायता लेनी होगी। ब्रह्मा के देवताओं सहित चले जाने के उपरान्त भगीरथ ने पैर के अंगूठों पर खड़े होकर एक वर्ष तक तपस्या की। शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया। गंगा को अपने वेग पर अभिमान था। उन्होंने सोचा था कि उनके वेग से शिव पाताल में पहुँच जायेंगे। शिव ने यह जानकर उन्हें अपनी जटाओं में ऐसे समा लिया कि उन्हें वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला।
धरती पर गंगा का अवतरण : भगीरथ ने फिर से तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर उसे बिंदुसर की ओर छोड़ा। वे सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं। ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा की ओर; सुचक्षु, सीता और महानदी सिंधु पश्चिम की ओर बढ़ी। सातवीं धारा राजा भगीरथ की अनुगामिनी हुई। राजा भगीरथ गंगा में स्नान करके पवित्र हुए और अपने दिव्य रथ पर चढ़कर चल दिये। गंगा उनके पीछे-पीछे चलीं। मार्ग में अभिमानिनी गंगा के जल से जह्नुमुनि की यज्ञशाला बह गयी। क्रुद्ध होकर मुनि ने सम्पूर्ण गंगा जल पी लिया। इस पर चिंतित समस्त देवताओं ने जह्नुमुनि का पूजन किया तथा गंगा को उनकी पुत्री कहकर क्षमा-याचना की। जह्नु ने कानों के मार्ग से गंगा को बाहर निकाला। तभी से गंगा जह्नुसुता जान्हवी भी कहलाने लगीं। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुँच गयीं। भगीरथ उन्हें रसातल ले गये तथा पितरों की भस्म को गंगा से सिंचित कर उन्हें पाप-मुक्त कर दिया। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर कहा—“हे भगीरथ, जब तक समुद्र रहेगा, तुम्हारे पितर देववत माने जायेंगे तथा गंगा तुम्हारी पुत्री कहलाकर भागीरथी नाम से विख्यात होगी। साथ ही वह तीन धाराओं में प्रवाहित होगी, इसलिए त्रिपथगा कहलायेगी।’’
यह प्रश्न हो सकता है कि भगीरथ गंगा को किस प्रकार लाये ? ऐसा जान पड़ता है कि गंगा की धारा पहले पहाड़ों के बीच होकर बहती थी। अपने राज्य के लिए तथा देश के लिए भगीरथ उसकी धारा वहाँ से निकाल कर लाये। आजकल भी पहाड़ों को काटकर बड़ी-बड़ी नहरें लायी जाती हैं। भगीरथ ने लगन और विश्वास से यह कार्य किया और वह पूर्ण रूप से सफल हुए। यह कार्य महान था इसी से महान कार्य करने में जो लोग कार्यरत होते हैं, कहा जाता है उन्होंने भगीरथ प्रयत्न किया।
ऐसा कहा जाता है, कि गंगा को लाने के पश्चात् और अपने पितामहों की धार्मिक क्रिया करने के पश्चात् बहुत दिनों तक महाराजा भगीरथ ने अयोध्या में राज्य किया। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने गंगा की धारा अपने राज्य के हित के लिए बहायी। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में उस घटना का बहुत रमणीक वर्णन किया है। आगे-आगे भगीरथ का रथ चला आ रहा है और पीछे-पीछे गंगा की धारा वेग से बहती चली आ रही है।
गंगा से हमारे प्रान्त को बहुत लाभ होता है। धन-धान्य से हमें कितना लाभ पहुँचता है, उसका वर्णन कहाँ तक किया जाय। इसकी महत्ता से पोथियाँ भरी पड़ी हैं। जिस महापुरुष ने ऐसी सरिता का दान हमें दिया उसके कृतज्ञ हम क्यों न हों ? भगीरथ जी के कार्य का महत्त्व हम इस बात से समझ सकते हैं कि यदि आज गंगा न होती तो हमारी स्थिति क्या होती ?
भगीरथ एक महान राजा ही नहीं थे, महान व्यक्ति भी थे, उन्होंने मानवता के हित के लिए सब कुछ किया। चिरकाल तक मानवता उनकी ऋणी रहेगी।
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