बूढ़ी काकी’ कहानी में समाज की ज्वलन्त वृद्ध-समस्या का यथार्थ चित्रण : मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है। बूढ़ी काकी नामक कहानी भी इसी कोटि की कहानी है, जिसमें वृद्धजनों के प्रति समाज में उपेक्षा की पनपती समस्या को स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया गया है। लेखक ने गंभीरता के साथ बूढ़ी काकी के साथ होने वाले जिस उपेक्षापूर्ण व्यवहार को उठाया है, वह अकेली काकी के ही साथ नहीं हैं, अपितु समाज में ऐसे कितने ही वृद्ध हैं। कहानीकार कहता है कि पंडित बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा का व्यवहार एक दम बदल गया और वे यह भी भूल गये कि वे आज जिस संपत्ति के मालिक हैं, वह सब इसी बूढ़ी काकी की दी हुई है। गावं में मिली प्रतिष्ठा संपत्ति की आय के कारण है, लेकिन जिसकी जायदाद है उसके लिए भरपेट भोजन तक भी नहीं है।
बूढ़ी काकी’ कहानी में समाज की ज्वलन्त वृद्ध-समस्या का यथार्थ चित्रण
मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है। बूढ़ी काकी नामक कहानी भी इसी कोटि की कहानी है, जिसमें वृद्धजनों के प्रति समाज में उपेक्षा की पनपती समस्या को स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया गया है। लेखक ने गंभीरता के साथ बूढ़ी काकी के साथ होने वाले जिस उपेक्षापूर्ण व्यवहार को उठाया है, वह अकेली काकी के ही साथ नहीं हैं, अपितु समाज में ऐसे कितने ही वृद्ध हैं। पंडित बुद्धिराम जैसे लालची लोग मीठी-मीठी बातों में बहला-फुसलाकर बूढों से उनकी संपत्ति अपने नाम लिखवा लेते हैं। खूब लम्बे-चैड़े वायदे करते हैं, लेकिन बहुत जल्दी ही उनका घिनौना रूप सामने आ जाता है।
RELATED POST-बूढ़ी काकी कहानी का उद्देश्य।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि बुढापा आते ही मानव के स्वभाव में बचपन के गुण आने लगते हैं। बूढ़ी काकी के आचरण में भी इसके लक्षण थे, लेकिन कहानीकार कहता है कि यह सब बात पंडित बुद्धिराम को उस समय सोचनी चाहिए थी, जब वह आश्वासनों पर विश्वास बूढ़ी काकी ने डेढ़-दो सौ रूपये प्रतिवर्ष की आय वाली जायदाद उसके नाम लिख दी थी। यह ठीक है कि बूढ़ी काकी अपनी इच्छा पूरी न होते देख रोने-चीखने लगती थी, परन्तु इसके सिवा वह कर भी क्या सकती थी।
RELATED POST-बूढ़ी काकी’ कहानी की समीक्षा
कहानीकार कहता है कि पंडित बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा का व्यवहार एक दम बदल गया और वे यह भी भूल गये कि वे आज जिस संपत्ति के मालिक हैं, वह सब इसी बूढ़ी काकी की दी हुई है। गावं में मिली प्रतिष्ठा संपत्ति की आय के कारण है, लेकिन जिसकी जायदाद है उसके लिए भरपेट भोजन तक भी नहीं है। भूख के कारण बूढ़ी काकी की इच्छाएं अतृप्त रहती है। साथ कहानीकार ने ध्यान आकर्षित किया है कि भूख और जीभ का स्वाद मनुष्य को कहां तक गिरा सकता है। मार खाती है, अपमानित होती है, भला-बुरा सुनती है; परन्तु मन में भूख की लालसा रह-रहकर उसे बेचैन करती रहती है। इसके पीछे मुंशी प्रेमचन्द ने समाज में व्याप्त उस समस्या की ओर ध्यान खींचा है, जहां बूढ़ों की भावनाओं की कद्र नहीं होती। आज की नयी पीढ़ी वृद्धों को अपनी आधुनिकता के मार्ग में बाधक समझती है। यहां तक कि उनका भद्दा मजाक भी उड़ाया जाता है। ‘बूढ़ी काकी’ कहानी में लेखक ने बुद्धिराम के लड़कों द्वारा न केवल उसे चिढ़ाया जाता है, अपितु उसके ऊपर मुंह के जूठे पानी के कुल्ले करना आम बात है। कभी काकी को नोचं कर भाग जाते हैं तो कभी बालों को खींचकर चले जाते हैं, लेकिन बुद्धिराम या उसकी पत्नी रूपा अपने लड़कों को डांटना तो दूर, मना तो नहीं करते। इस तरह के व्यवहार से भी परिवार के वृद्धजन टूट जाते हैं। यह स्थिति अकेली बूढ़ी काकी की नहीं, अपितु समूचे समाज की है जिसमें युवाओं द्वारा वृद्धों के प्रति दुव्र्यवहार किया जाता है।
इसी तरह लेखक ने स्वयं बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा के व्यवहार को उस समय घृणास्पद बना दिया है, जब वह काकी पकवानों की खुशबू से अधीर होकर हलवाइयों के पास कड़ाहे के पास जा बैठती है। रूपा एक तरफ तो मेहमानों के इशारों पर नाच रही है, वहीं दूसरी तरफ कड़ाहे के पास बूढ़ी काकी को बैठी देख आग बबूला हो जाती है। अपशब्द बोलती है और कहती है कि उसकी इसी में भलाई है कि चुपचाप अपनी कोठरी में चली जाए। विवश और लाचार काकी के पास जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं होता। मन मारकर सोचती रहती है। इसके माध्यम से कहानीकार कहना चाहता है कि आखिर बड़-े बूढ़ांे की भी इच्छा होती है। जिस तरह सगाई-विवाह समारोहों में शामिल होकर आप आनन्द लेना चाहते हैं, उसी प्रकार उन्हें क्यों नहीं शामिल करते। झूठा-प्रदर्शन करने से कोई लाभ नहीं। बाहर से अतिथियों की तो हर इच्छा पूरी करने का प्रयास किया जाता है लेकिन अपने घर के वृद्धों की उपेक्षा की जाती है, जो किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता।
RELATED POST- बूढ़ी काकी कहानी का सारांश पढ़ें
मुंशी प्रेमचन्द ने इस कहानी के माध्यम से वृद्धों की उपेक्षा करने वाले स्वार्थी बुद्धिराम जैसे लोगों को समाज के भीतर उस समय नंगा कर दिया है, जब बूढ़ी काकी अधीर होकर दावत खा रहे लोगों के बीच आ बैठती है और सभी लोग उसकी बदहाली को देखकर ‘कौन है-कौन है’ कहकर चिल्लाने लगते हैं। यहां तक कि उसका भतीजा बुद्धिराम आकर उसे दोनों हाथों से उठाकर कोठरी में ले जाकर पटक देता है और खूब खरी-खोटी सुनाता है। बुढ़िया चुपचाप पड़ी रहती है और कोई उसे खाने तक की नहीं पूछता। उस समय समाज की दशा और भी दयनीय हो जाती है, जब वह बुढ़िया लाडली का हाथ पकड़कर पत्तलों की जूठन चाटने लगती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी कहानी ‘बूढ़ी काकी’ में वर्तमान समाज की ज्वलन्त वृद्ध-समस्या को सहजता और स्वाभाविकता के साथ प्रभावी ढंग से उठाया है। बूढ़ी काकी की दुर्दशा को देखकर मानवीय हृदय न केवल करूणा एवं सहानुभूति से भर उठता है अपितु, आत्मचिंतन के लिए बाध्य-सा कर देता है।
Bahut hi Badiya Sir Aapne Iss Kahani Ka Wardan Kiya Hai Sir
ReplyDelete