शेरशाह सूरी की जीवनी। Biography of Sher Shah Suri in Hindi : शेरशाह का जन्म सासाराम शहर में हुआ था, जो अब बिहार के रोहतास जिले में है। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। उसके पिता हसन खाँ सहसराम के जागीरदार थे। उनकी चार पत्नियाँ थीं। वे अपनी छोटी पत्नी के प्रभाव में थे। फरीद की माँ से हसन की छोटी पत्नी की नहीं बनती थी। वह फरीद को तंग करती थी। फरीद अपनी सौतेली माँ के व्यवहार से दुःखी रहता था। परेशान होकर उसने सहसराम छोड़ दिया। फरीद ने बिहार के सुल्तान के यहाँ नौकरी कर ली। शिकार के समय फरीद ने एक शेर से सुल्तान की रक्षा की। प्रसन्न होकर सुल्तान ने उसे शेरखाँ की उपाधि दी। इसके बाद शेरखाँ ने 1527 से 1528 तक मुगल बादशाह बाबर के यहाँ नौकरी की और मुगलों के बारे में जानकारी प्राप्त की।
शेरशाह सूरी की जीवनी। Biography of Sher Shah Suri in Hindi
नाम
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फ़रीद खाँ, शेरशाह सूरी
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जन्म
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1472, सासाराम
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पिता का नाम
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हसन खाँ
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शासन अवधि
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1540–1545
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मृत्यु
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22 मई, 1545 कलिंजर, बुन्देलखण्ड
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शेरशाह का जन्म सासाराम शहर में हुआ था, जो अब बिहार के रोहतास जिले में है। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। उसके पिता हसन खाँ सहसराम के जागीरदार थे। उनकी चार पत्नियाँ थीं। वे अपनी छोटी पत्नी के प्रभाव में थे। फरीद की माँ से हसन की छोटी पत्नी की नहीं बनती थी। वह फरीद को तंग करती थी। फरीद अपनी सौतेली माँ के व्यवहार से दुःखी रहता था। परेशान होकर उसने सहसराम छोड़ दिया। वह जौनपुर चला गया। जौनपुर उन दिनों भारत का ‘‘शिराज’’
कहलाता था। वहाँ उसने अरबी,
फारसी, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। वह दस वर्ष तक वहाँ रहा जिससे उसके ज्ञान और अनुभव में पर्याप्त वृद्धि हुई।
हसन खाँ फरीद को सहसराम वापस ले गए और जागीर की व्यवस्था सौंपी। फरीद ने बड़ी कुशलता से जागीर का प्रबन्ध किया,
सदैव प्रजा के हित को ध्यान में रखा। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों और जमींदारों पर कड़ा अनुशासन रखा। घूस लेने वाले अधिकारियों को हटाया। न्याय को शासन का आधार बनाया। जनता से अच्छा व्यवहार किया। आदेशांे की अवहेलना के लिए कड़ी सजा की व्यवस्था थी। प्रजा उनकी प्रशंसा करती थी और उनसे प्रेम करती थी।
जागीर की देखभाल करते समय फरीद को प्रशासन
के अनेक अनुभव प्राप्त हुए जो आगे चलकर उसके काम आए। वह एक सफल शासक बना। उनकी प्रशंसा सौतेली माँ को सहन न हुई। उसने पिता-पुत्र में संघर्ष करा दिया। घरेलू परेशानियाँ सामने आई। फरीद ने भारी मन से पुनः घर छोड़ दिया।
फरीद ने बिहार के सुल्तान
के यहाँ नौकरी कर ली। शिकार के समय फरीद ने एक शेर से सुल्तान की रक्षा की। प्रसन्न होकर सुल्तान ने उसे शेरखाँ की उपाधि दी। इसके बाद शेरखाँ ने 1527 से 1528 तक मुगल बादशाह बाबर के यहाँ नौकरी की और मुगलों के बारे में जानकारी
प्राप्त की। वह अपने मित्र से कहा करते थे कि मैं मुगलों को भारत से निकाल सकता हूँ क्योंकि उनमें फूट है और अनुशासन की कमी है। बाबर बादशाह शेरखाँ की प्रतिभा से सतर्क हो गया। उसने मंत्री से कहा,
शेरखाँ पर नजर रखो। वह चालाक है। राजस्व के चिह्न उसके मस्तक पर दिखाई देते हैं। शेरखाँ मुगलों से अलग हो गया। वह कहता था कि ‘‘मुझे मुगलों में और उन्हें मुझमें विश्वास नहीं है।’’
आगे चलकर शेरखाँ ने शेरशाह सूरी के नाम से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। बाबर ने उसकी प्रतिभा को सही आँका था। उसकी भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई।
सूरी साम्राज्य की स्थापना
अभी तक शेरशाह अपने आप को मुगल सम्राटों का प्रतिनिधि ही बताता था पर उनकी चाहत अब अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी। शेरशाह की बढ़ती हुई ताकत को देख आखिरकार मुगल और अफ़ग़ान सेनाओं की जून 1539 में बक्सर के मैदानों पर भिड़ंत हुई। मुगल सेनाओं को भारी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत ने शेरशाह का सम्राज्य पूर्व में असम की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में कन्नौज तक बढ़ा दिया। अब अपने साम्राज्य को वैध बनाने के लिये उन्होंने अपने नाम के सिक्कों को चलाने का आदेश दिया। यह मुगल सम्राट हुमायूँ को खुली चुनौती थी।
अगले साल हुमायूँ ने खोये हुये क्षेत्रो पर कब्ज़ा वापिस पाने के लिये शेरशाह की सेना पर फिर हमला किया, इस बार कन्नौज पर। हतोत्साहित और बुरी तरह से प्रशिक्षित हुमायूँ की सेना 17 मई 1540 शेरशाह की सेना से हार गयी। इस हार ने बाबर द्वारा बनाये गये मुगल साम्राज्य का अंत कर दिया और उत्तर भारत पर सूरी साम्राज्य की शुरुआत की
कुशल प्रशासक : शेरशाह चरित्रवान व्यक्ति था। वह अच्छा सेनापति था। साम्राज्य की सुरक्षा के लिए उसने ऐसी मजबूत सेना तैयार की,
जिसमें उत्तम चरित्र के आधार पर सीधी भर्ती होती थी। उत्तम नस्ल के घोड़े होते थे। पहचान के लिए शाही निशान लगाए जाते थे। उसके समय में उत्तमता पर विशेष बल दिया जाता था। नियमों का कड़ाई से पालन होता था।
शेरशाह नीति-कुशल शासक था। वह न्याय-प्रिय भी था और सभी धर्मों का ध्यान रखता था। राज्य के अधिकारियों को यात्रियों से अच्छा व्यवहार करने के लिए उसने कड़े आदेश दिए थे। राहगीरों की सुरक्षा का पूरा प्रबन्ध रखता था। राह में मृत्यु हो जाने पर राहगीर के माल को जब्त नहीं किया जाता था। चोरी होने पर गाँव का मुखिया (मुकद्दम) या जमींदार उत्तरदायी होता था। पता न लगा पाने की दशा में उसे स्वयं वही सजा भुगतनी पड़ती थी जो चोरों या लुटेरों को मिल सकती थी। रास्ते में हत्या हो जाने पर भी मुखिया या जमींदार को ही उत्तरदायी ठहराया जाता था। सजा के डर से अपराध नहीं होते थे। अधिकारी सतर्क थे। प्रजा सुरक्षित थी। कहा जाता है कि उस समय तक कमजोर वृद्धा भी सिर पर मूल्यवान गहनों का बक्सा लेकर बेखटक यात्रा कर सकती थी।
शेरशाह ने व्यापार
को उन्नत किया। उसने आवागमन के साधनों को सुधारा। सड़कें बनवाईं। उनके दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाए और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनवाईं तथा कुएँ खुदवाए। सरायों में यात्रियों के पद,
धर्म, जाति के अनुसार भोजन की भी व्यवस्था रहती थी। सरायों में सुरक्षा का उचित प्रबन्ध था। ग्रैण्ट ट्रंक रोड उसी ने बनवाई थी। यह सड़क सिन्धु नदी से बंगाल के सोनार गाँव तक जाती है। अब इसका नाम शेरशाह सूरी मार्ग कर दिया गया है। शेरशाह सूरी अपनी सड़कों को साम्राज्य की धमनियाँ कहता था। इनसे व्यापार में सहायता मिलती थी। उनसे उसको शासन सम्बन्धी सभी सूचनाएँ भी सरलता से प्राप्त होती थीं।
शेरशाह में संगठन की अद्भुत क्षमता थी। वह अपने लक्ष्य को सदैव ध्यान में रखता था। मंत्रियों के हाथ में शासन देने में उसे विश्वास नहीं था। उसने भूमि की नाप कराई और राजस्व का निर्धारण किया। आज की व्यवस्था भी उसी आधार पर बनाई गई है।
शेरशाह सूरी समय का सदुपयोग
करता था। सुबह से देर रात तक वह राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था। कठोर परिश्रम करता था,
प्रजा की दशा जानने के लिए देश-भ्रमण करता था। जनता की सुख-सुविधाएँ बढ़ाने के लिए उसने शासन व्यवस्था को सुसंगठित किया।
शेरशाह सूरी के कार्य : रुपए के सिक्के सर्वप्रथम शेरशाह ने ही ढलवाये। उसने खोटे और मिली-जुली धातु के सिक्कों का चलन बन्द कर दिया। सोने,
चाँदी और ताँबे के सिक्के ढलवाए गए। ये बढि़या और मानक सिक्के थे। उसके समय बाट और माप की प्रणाली में सुधार हुआ।
भवन-निर्माण
में भी शेरशाह की गहरी रुचि थी। उसने दिल्ली के निकट यमुना के तट पर एक नया नगर भी बसाया। वह विद्वानों को संरक्षण देता था। जायसी के ‘पद्मावत’
जैसे श्रेष्ठ महाकाव्य की रचना उसी के समय में हुई।
शेरशाह ने पाँच वर्ष (1540–1545) तक शासन किया। कालिंजर
की विजय के समय तोप के गोले से घायल हो जाने से उसकी मृत्यु (22 मई, 1545) हो गई। यदि वह कुछ और समय तक जीवित रहता तो वे कार्य पूरे करवाता जिनके लिए बाद में अकबर को प्रसिद्धि मिली।
फरीद अपने अच्छे गुणों के कारण ही एक साधारण व्यक्ति से सम्राट शेरशाह सूरी बन गया। उसकी समस्त उपलब्धियाँ, उसके अपने परिश्रम और अच्छे गुणों का परिणाम थीं।
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