अपाला का जीवन परिचय। Apala ka Jivan Parichay : महर्षि अत्रि की पुत्री अपाला अद्वितीय सुन्दरी और बुद्धिमती थी। प्रभात काल में स्नान करते समय उसकी दृष्टि अपनी जंघा पर गयी जहाँ छोटे-छोटे सफेद दाग दिखायी दे रहे थे। अपाला उन दागों को देखकर चकित और चिन्तित हो उठी। तभी से अपाला स्नान के समय प्रतिदिन उन दागों को ध्यान से देखती थी और विस्मय में पड़ जाती थी क्योंकि दाग धीरे-धीरे बढ़ते हुए चकत्ते का रूप धारण कर रहे थे। उसने यह आसानी से समझ लिया कि ये साद्दारण दाग नहीं हैं, श्वेत दाग हैं। अपाला ने कई बार सोचा कि वह उन दागों की चर्चा अपने पिता से कर दे, किन्तु वह ऐसा न कर सकी।
अपाला का जीवन परिचय। Apala ka Jivan Parichay
महर्षि अत्रि की पुत्री अपाला अद्वितीय सुन्दरी और बुद्धिमती थी। प्रभात काल में स्नान करते समय उसकी दृष्टि अपनी जंघा पर गयी जहाँ छोटे-छोटे सफेद दाग दिखायी दे रहे थे। अपाला उन दागों को देखकर चकित और चिन्तित हो उठी। तभी से अपाला स्नान के समय प्रतिदिन उन दागों को ध्यान से देखती थी और विस्मय में पड़ जाती थी क्योंकि दाग धीरे-धीरे बढ़ते हुए चकत्ते का रूप धारण कर रहे थे। उसने यह आसानी से समझ लिया कि ये साद्दारण दाग नहीं हैं, श्वेत दाग हैं। अपाला ने कई बार सोचा कि वह उन दागों की चर्चा अपने पिता से कर दे, किन्तु वह ऐसा न कर सकी। वह उन दागों को हमेशा छिपाए रहती थी और इसके बारे में किसी को नहीं बताती थी।
अपाला जब विवाह के योग्य हुई तो अत्रि को उसके विवाह की चिन्ता हुई। संयोगवश वेदों के ज्ञाता विद्वान कृशाश्व ने अतिथि के रूप में अत्रि के आश्रम में प्रवेश किया। अपाला ने अतिथि कृशाश्व केे खान-पान का उचित प्रबन्ध किया। अपाला के सौन्दर्य और व्यवहार कुशलता से मुग्ध होकर कृशाश्व ने अपाला के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की।
महर्षि अत्रि ने प्रसन्नतापूर्वक अपाला का हाथ कृशाश्व के हाथ में दे दिया। विवाहोपरान्त अपाला कृशाश्व के साथ उनके आश्रम में चली गई।
दिन बीतने के साथ ही अपाला के शरीर के सफेद चकत्ते भी बढ़ने लगे। अपाला बड़े चतुराई से उन्हें कृशाश्व से भी छिपाए रहती थी। एक दिन कृशाश्व की दृष्टि उन सफेद चकत्तों पर जा पड़ी। तभी से वह अपाला को उपेक्षा व तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगा। अपाला को यह समझते देर न लगी कि उसका पति उसको अपने साथ नहीं रखना चाहता है।
पति से अपमानित होकर अपाला अपने पिता के आश्रम में पुनः चली गई। उसने रुँधे हुये कंठ से सभी बातें अपने पिता को बता दीं और कहा कि उन चकत्तों के कारण उसके पति ने अपमानित कर अपने आश्रम से बाहर कर दिया।
इससे अत्रि बहुत दुःखी हुए। उन्होंने अपाला को सान्त्वना देते हुए कहा,“ चिन्ता की कोई बात नहीं पुत्री ! श्वेत दाग के कारण तुम्हारे पति ने आश्रम से निकाल दिया है किन्तु पिता की गोद पहले की तरह तुम्हारे लिए खाली है। तुम पहले की तरह मेरे आश्रम में ही नहीं मेरी गोद में रहो और इस रोग के निदान के लिये पुरुषार्थ करो। इसके लिए तुम्हें इन्द्र की उपासना करनी होगी।“
पिता से प्रेरित होकर अपाला इन्द्र की उपासना में लग गई। वह नित्य प्रेमपूर्वक मंत्रों का जाप करती और सत्तू तथा सोमरस का नैवेद्य चढ़ाया करती थी। धीरे-धीरे कई माह व्यतीत हो गए। सत्तू अर्पित करने के बाद जब सोमरस की बारी आई तो सोमलता को पीसने के लिये कोई पत्थर नहीं था। उसने सोमलता को अपने दाँतों से पीस कर धरती पर गिरते हुए सोमरस का पान करने के लिये ’प्रभु’ से प्रार्थना की ।
अपाला के प्रेम और उसकी भक्ति पर इन्द्र गद्गद् हो उठे। उन्होंने प्रकट रूप में सत्त्तू और सोमरस का पान करते हुए कहा, “अपाले! तुम धन्य हो तुम्हारा रोग दूर हो जायेगा और तुम्हारे प्रेम और भक्ति की कहानी भी अमर हो जाएगी।’’
इन्द्र के वरदान से अपाला रोग मुक्त हो गयी। उसका शरीर स्वर्ण की तरह चमकने लगा। वह प्रेम और निष्ठा के फलस्वरूप अमर हो गयी।
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