बालिकाओं की घटती संख्या एक जटिल समस्या पर निबंध : आधुनिक भारत में असमानता के दुष्चक्र ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को कमजोर किया और एकांगी विकास पर बल दिया। 21वीं शताब्दी में कुछ महिलाओं ने हौसला दिखाते हुए अपनी अलग बनाई है। लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में महिलाओं को गरिमा से जीने के उनके अधिकार से वंचित रखा गया है। इसके अतिरिक्त, शिशु अगर लड़की हो तो उसे जीने लायक ही नहीं समझा जाता। समावेशी विकास के लिए यह जरूरी है कि हर स्थिति में महिलाओं को जीने का समान अवसर मिले और वो भी उनकी पसंद का। 2011की जनगणना चौंका देने वाली है। इसके अनुसार, नवजात से 6 साल की उम्र में प्रत्येक एक हजार लड़को पर 918 लड़कियां है जो कि लड़के-लड़कियों का अब तक का सबसे कम अनुपात (सीएसआर) है। देश के हर हिस्से-गांवों, जनजातीय क्षेत्रों और यहां तक कि शहरों में शहरों में लड़कियों की संख्या घट रही है।
हमारे प्राचीन
ग्रंथों में कहा गया है – ‘यत्र नार्यस्ते
पुजंते रमंते तत्र देवता’ यानी जहां नारी की पूजा होती है वहां ईश्वर का
वास होता है। उपनिषदों में कहा गया है- ‘एकम सत विपरह बहुदा
वदंथी’- इस दुनिया में केवल एक सच्चाई है जिसे अनेक तरह
से बताया गया है। पुरूष और महिला उस परम शक्ति की दो महत्वपूर्ण रचनाएं हैं जो
बल, ताकत और स्वभाव के लिहाज से एक से/बराबर हैं।
हमारे प्राचीन ग्रंथों और समाज में महिलाओं को इतना उच्च दर्जा प्राप्त था, लेकिन सदियों से महिलाओं को समाज में उनके
अधिकारों से वंचित रखा गया और उन्हें शरीरिक और मानसिक रूप से कई यातनाएं दी गई।
आधुनिक भारत में असमानता के दुष्चक्र
ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को कमजोर किया और एकांगी विकास पर बल दिया। 21वीं
शताब्दी में कुछ महिलाओं ने हौसला दिखाते हुए अपनी अलग बनाई है। लेकिन फिर भी
बड़ी संख्या में महिलाओं को गरिमा से जीने के उनके अधिकार से वंचित रखा गया है।
इसके अतिरिक्त, शिशु अगर लड़की हो तो उसे जीने लायक ही नहीं
समझा जाता। समावेशी विकास के लिए यह जरूरी है कि हर स्थिति में महिलाओं को जीने
का समान अवसर मिले और वो भी उनकी पसंद का।
2011की जनगणना चौंका
देने वाली है। इसके अनुसार, नवजात से 6 साल की उम्र में प्रत्येक एक हजार लड़को पर 918 लड़कियां है जो कि
लड़के-लड़कियों का अब तक का सबसे कम अनुपात (सीएसआर) है। देश के हर हिस्से-गांवों, जनजातीय क्षेत्रों और यहां तक कि
शहरों में शहरों में लड़कियों की संख्या घट रही है। ये ऐसी खतरनाक स्थिति है
जिसका देश की जनसांख्यिकी संनचना पर असर पड़ेगा। भेदभाव की खतरनाक प्रवृत्ति को
रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई और महिलाओं के सामाजिक समावेश और उनके समग्र विकास की
जरूरत है।
लड़के-लड़कियों
के बीच के घटते अनुपात को कम करने और महिलाओं की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए
बेटी बचाओं,
बेटी पढ़ाओं (बीबीबीपी) अभियान शुरू किया गया है। प्रधानमंत्री ने इसकी शुरूआत इस
साल 22 जनवरी को हरियाणा में पानीपत से की। यह अभियान महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
मंत्रलय तथा मानव संसाधन मंत्रालय का संयुक्त प्रयास है। इसका उद्देश्य बालिकाओं
को जन्म लेने और जीने के उनके अधिकार की रक्षा करना और उसे शिक्षा और जीवन कौशल
से सशक्त करना है। यह अभियान शुरू करने के लिए जिस जगह का चयन किया गया, वो भी बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि
हरियाणा में लड़को के मुकाबले बहुत कम लड़कियां है। हरियाणा में प्रत्येक 1000
पुरूषों के अनुपात में केवल 877 महिलाएं है और अगर 0-6 साल की उम्र का आंकड़ा
देखें तो बेहद कम 830 बच्चियां हैं।
प्रधानमंत्री
ने इस कार्यक्रम की शुरूआत के दौरान लोगों से भावनात्मक अपील की कि इस स्थिति को
तेजी से बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस ‘भयावह संकट’ को समाप्त करना सभी की जिम्मेदारी
है क्योंकि इसका बहुत बड़ा असर भावी पीढ़ी पर पड़ेगा। उन्होंने लोगों से
लड़कियों के जन्म को ‘अनंदोत्सव’ के रूप में मनाने की अपील की। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए ‘सुकन्या समृद्धि खाता’ की भी शुरूआत की। 2015-16 के आम बपट
में इसके लिए सालाना 9.1 प्रतिशत की ब्याज दर और कर में छूट का प्रस्ताव है।
बेटी
बचाओं,
बेटी पढ़ाओं के अंतर्गत शुरूआत में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 100
जिलों को चुना गया है जहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात बहुत कम है। इस
अभियान के तहत समाज के हर वर्ग को इसमें शामिल करने, सामादायिक भागीदारी और जागरूकता
बढ़ाने पर जोर दिया गया है। यह कार्यक्रम एक अभियान है जिसमें कई लक्ष्य
निर्धारित किए गए हैं। एक तो चुने गए महत्वपूर्ण जिलों में जन्म के समय लड़के और
लड़कियों के बीच अनुपात (एसआरबी) को सुधारकर एक साल में 10 अंक तक लाना है। दुसरा, पांच साल से कम उम्र के शिशुओं के
मृत्यु दर को 2011 में 8 अंक से कम करके 2017 तक 4 अंक लाना है। साथ ही, लड़कियों के माध्यमिक शिक्षा में
दाखिलेको 2013-14 में 76 प्रतिशत से बढ़ाकर 2017 तक 79 प्रतिशत करना और 2017 तक
चुने गए 100 जिलों के हर स्कूल में लड़कियों के लिए शौचालय बनाना है।
बीबीबीपी
अभियान के तहत इस पर विशेष ध्यान दिया जाएगा कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने
वाले गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी और पीएनडीटी) कानून का सख्ती
से अमल हो। लड़कियों के पोषण पर ध्यान देते हुए पांच साल से कम उम्र की लड़कियों
में कम वजन और खून की कमी की समस्या को घटाना है। यौन अपराधों से बच्चों का
संरक्षण संबंधी अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) को लागू करके लड़कियों को सुरक्षित माहौल देना भी इस
अभियान का मकसद है।
स्थानीय
नेताओं को शामिल करके सामुदायिक भागीदारी के जरिए ही कोई जन-जागरूकता अभियान सफल
हो सकता है खासकर जिसका मुख्य लक्ष्य सोच और व्यवहार में बदलाव लाना हो।
बीबीबीपी अभियान में सभी स्थानीय नेताओं और जमीनी स्तरपर काम करने वाले लोगों को
एकसाथ लाने की जोरदार वकालत की गई है।
इस
अभियान में मुख्य रूप से लड़कियों के जन्म के लिए बेहतर माहौल देने पर जोर है।
प्रधानमंत्री ने पानीपत में अपने भाषण में वाराणसी के जयापूरा गांव का उदाहरण दिया
लड़की के जन्म लेने पर उत्सव मनाया जाता है और इस अवसर पर पांच पेड़ लगाए जाते
हैं। उन्होंने हर गांव से लड़की के जन्म पर ऐसा उत्सव मनाने को कहा।
मां
और शिशु को बेहतर माहौल देना, गर्भवती महिलाओं के प्रसव और लड़कियों के महत्व को समझाने के प्रति
जागरूकता लाना इस दिशा में एक कदम है। इसमें गर्भावस्था के दौरान आंगनवाड़ी
केंद्रों/स्वास्थ्य केंद्रों में पंजीकरण कराने को भी बढ़ावा दिया गया है।
इस
कार्यक्रम के तहत स्कूलों में लड़कियों का दाखिला सुनिश्चित करने के लिए स्कूल
प्रबंधन समितियों को सक्रिय बनाने के बारे में भी कहा गया है। स्कूल छोड़ चुकी
लड़कियों को फिर से स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहन करने हेतु बालिका मंच बनाने पर
भी ध्यान है। इसमें प्राथमिक स्तर पर 100 फीसदी लड़कियों का दाखिला करने और एक
साल तक इसे बरकरार रखने तथा ऐसे स्कूलों में जहां पांचवी से छठी, आंठवी से नौंवी और दसवीं से ग्यारहवीं
कक्षा तक शत-प्रतिशत
लड़कियों जाती है, उन स्कूल प्रबंधन समितियों के लिए प्रोत्साहन और पुरस्कारों का
प्रावधान है।
इसके
अतिरिक्त, इस
अभियान में नारी चौपाल लगाने, बेटी जन्मोत्सव मनाने तथा बेटी पढ़ओं को हर महीने उत्सव के रूप
में मनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय बालिका दिवस और अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस
मनाने का भी प्रस्ताव है। इस अभियान में लड़कियों के पैदा होने पर लोहड़ी मनाने, रक्षा बंधन जैसे त्योहारों के जरिए
सामाजिक-सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों को दूर करने की कोशिश है।
लड़कियों
की कम होती संख्या चिंता का विषय है जिसका असर समाज और आगे अपने वाली पीढ़ी पर
पड़ेगा। लड़कियों को शिक्षित करने का मतलब है जनसंख्या के एक बड़े वर्ग को सशक्त
करना। बीबीबीपी एक राष्ट्रवादी अभियान है जिसके जरिए समावेशी और टिकाऊ विकास के
लिए मार्ग प्रशस्त करना है।
Admin


100+ Social Counters
WEEK TRENDING
Loading...
YEAR POPULAR
गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें गम् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। गम् धातु का अर्थ होता है जा...
अस् धातु के रूप संस्कृत में – As Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें अस् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। अस् धातु का अर्थ होता...
Riddles in Malayalam Language : In this article, you will get കടങ്കഥകൾ മലയാളം . kadamkathakal malayalam with answer are provided below. T...
पूस की रात कहानी का सारांश - Poos ki Raat Kahani ka Saransh पूस की रात कहानी का सारांश - 'पूस की रात' कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित ...
COMMENTS