वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे पर अनुच्छेद लेखन : एक आदमी ही दूसरे आदमी के काम आ सकता है, कोई अन्य नहीं। मनुष्य जो कर सकता है, पशु-पक्षी वह सब कभी नहीं कर पाते। इस प्रकार मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा और समझा जा सकता है। जीने को तो सभी मनुष्य जीते ही हैं, पशु-पक्षी भी अपने-अपने लिए जिया करते हैं, पर केवल अपने या अपनों का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जीना ना तो मनुष्यता का लक्षण है और ना ही सच्चे अर्थों में जीवित रहने का लक्षण ही माना जा सकता है।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे पर अनुच्छेद लेखन
एक आदमी ही दूसरे आदमी के काम आ सकता है, कोई अन्य नहीं। मनुष्य जो कर सकता है, पशु-पक्षी वह सब कभी नहीं कर पाते। इस प्रकार मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा और समझा जा सकता है। जीने को तो सभी मनुष्य जीते ही हैं, पशु-पक्षी भी अपने-अपने लिए जिया करते हैं, पर केवल अपने या अपनों का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जीना ना तो मनुष्यता का लक्षण है और ना ही सच्चे अर्थों में जीवित रहने का लक्षण ही माना जा सकता है। मनुष्य अपने लिए नहीं, अपने पूरे समाज, पूरे देश, राष्ट्र और सारी मानवता के लिए जिया करता है। इसी कारण वह सर्वश्रेष्ठ और सामाजिक प्राणी माना जाता है। सच्चे मनुष्य का हर कदम, हर कार्य सामूहिक चिंतन और हित साधना की भावना से भरा रहता है। तभी तो कई बार उसे दूसरों के लिए अपने प्राणों का बलिदान करते हुए भी देखा जा सकता है। मनुष्य जीवन में जो अतिथि देवता आदि की कल्पना की गई है, इन्हें देवता के समान महत्व दिया गया है। उसके मूल में भी अपने लिए नहीं, बल्कि सारी मनुष्यता के लिए जीने की परिकल्पना छिपी हुई है। बौद्ध, जैन तीर्थंकर, गांधी आदि महान व्यक्ति महापुरुष इसी कारण माने जाते हैं कि वह लोग केवल अपने लिए नहीं बल्कि मानवता के लिए जिए और मानवता के लिए ही मरे। केवल अपने पेट पर हाथ फेरते रहना, अपने ही घर द्वार की चिंता करना तरह-तरह के भ्रष्टाचारों को जन्म देकर देश का सर्वनाश कर रहा है। इस तथ्य से हम सभी भली भांति परिचित हैं। अतः यदि हम पूरे समाज, देश जाति और राष्ट्र का उत्थान करना चाहते हैं, तो हमें अपने आप का विस्तार सारे राष्ट्र और सारी मानवता में करना होगा। यही सच्ची मनुष्यता और उसका रहस्य है।
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