करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान पर निबंध : यह हिंदी की अत्यंत प्रसिद्ध सूक्ति है, जिसका प्रयोग लोग प्रायः कहावत के रूप में करते हैं। यह सूक्ति हिंदी के प्रसिद्ध रीतिकालीन नीति कार कवि वृंद के एक दोहे का पूर्वार्ध है। उनका पूरा दोहा इस प्रकार है- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान। अर्थात मंद बुद्धि वाला व्यक्ति भी अभ्यास कर करके ज्ञानी और विद्वान बन सकता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि कुवे से पानी खींचते समय रस्सी के बार-बार आते-जाते रहने से उसके पत्थर पर निशान बन जाता है। तात्पर्य यह है कि एक ही क्रिया को बार-बार दोहराते रहने से वह पक्का हो जाता है। अतः अभ्यास एक ऐसी क्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान पर निबंध
यह हिंदी की अत्यंत प्रसिद्ध सूक्ति है, जिसका प्रयोग लोग प्रायः कहावत के रूप में करते हैं। यह सूक्ति हिंदी के प्रसिद्ध रीतिकालीन नीति कार कवि वृंद के एक दोहे का पूर्वार्ध है। उनका पूरा दोहा इस प्रकार है
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।।
अर्थात मंद बुद्धि वाला व्यक्ति भी अभ्यास कर करके ज्ञानी और विद्वान बन सकता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि कुवे से पानी खींचते समय रस्सी के बार-बार आते-जाते रहने से उसके पत्थर पर निशान बन जाता है। तात्पर्य यह है कि एक ही क्रिया को बार-बार दोहराते रहने से वह पक्का हो जाता है। अतः अभ्यास एक ऐसी क्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए अभ्यास आवश्यक होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म से ही किसी क्षेत्र में पारंगत नहीं होता, अपितु अपनी प्रतिभा के साथ-साथ अभ्यास के बल पर की उस में सिद्धहस्त हो जाता है। कोई भी बच्चा चलना शुरू करने पर बार-बार गिरता है, डगमगाता है, लेकिन गिरने पर वह फिर से उठता है, चलना शुरू कर देता है, और ऐसा करते-करते वह कुछ ही दिनों में ठीक से चलना शुरू कर देता है। विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में हम जिमनास्ट को ऐसे-ऐसे कर्तव्य और कलाबाजियां खाते हुए देखते हैं कि हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं। वह ऐसा अपने निरंतर अभ्यास से ही कर पाते हैं। ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों ने निरंतर अभ्यास करके ही ऐसी सफलताएं प्राप्त की हैं। अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी में पहली बार भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाने का जो कारनामा दिखाया था, वह किसी एक या कुछ दिनों का परिणाम नहीं था बल्कि वह वर्षों तक किए गए लगातार अभ्यास का परिणाम था। इसी प्रकार पीटी उषा, लिएंडर पेस, विजेंद्र सिंह, सुशील कुमार आदि खिलाड़ियों ने अभ्यास के बल पर ही सफलताएं अर्जित की हैं।
अभ्यास एक ऐसी साधना है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आप को संस्कारित करता है। अभ्यास से नैसर्गिक प्रतिभा परिमार्जित और परिनिष्ठित होती है। ऐसे अनेकों उदाहरण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। भीलराज के पुत्र एकलव्य ने बिना गुरु से शिक्षा प्राप्त किए हुए धनुर्विद्या में अभ्यास के बल पर निपुणता प्राप्त करके पांडवों के कुत्ते को बिना हानि पहुंचाए उसके मुख को बाणों से भर डाला था, वह अभ्यास का ही फल था। आज क्रिकेट के खेल में सचिन तेंदुलकर ने सफलता की जिन बुलंदियों को छुआ है, उसके पीछे उनकी प्रतिभा के साथ ही निरंतर अभ्यास की बहुत बड़ी भूमिका रही है। नहीं तो उनके समकालीन कई अन्य क्रिकेट खिलाड़ी प्रतिभासंपन्न होते हुए भी अभ्यास में कमी के कारण पीछे छूट गए। निरंतर अभ्यास हमारी कुशलता को बढ़ाने का काम करता है। अतः विद्या, शिल्प, व्यायाम, भाषण, लेखन, खेल आदि में इसके महत्व को स्वीकार करना ही पड़ेगा।
अभ्यास के संबंध में यह ध्यान देना आवश्यक है कि उसके लिए मन में दृढ़ संकल्प हो। इस दौरान किसी भी प्रकार की निराशा को मन में नहीं आने देना चाहिए। किसी के निरुत्साहित किए जाने पर संकल्प का त्याग नहीं करना चाहिए। किसी भी क्षेत्र में अभ्यास करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि उसके लिए अनुकूल परिस्थितियां विद्यमान हैं हो। साथ ही वह कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए जिसकी जीवन में कोई उपयोगिता ही ना हो। बुरी बात तथा गलत आदतों का तो अभ्यास कभी भी नहीं करना चाहिए।
अतः मनुष्य यदि अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार विद्या लेखन व्यापार क्रीड़ा आदि किसी भी क्षेत्र में अभ्यास करें तो एक न एक दिन उसे पूर्ण सफलता अवश्य मिलेगी तथा वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा। इसलिए इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि जड़मति अर्थात कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी निरंतर अभ्यास से विद्वान और बुद्धिमान क्यों नहीं बन सकता है।
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