हिंदी कहानी मायावी सरोवर : 12 वर्ष का वनवास पूरा होने को आया। एक दिन पांडवों ने जंगल में एक हिरण का पीछा किया। वह एक मायावी हिरण था। तेज दौड़कर पांडवों को जंगल में बहुत दूर ले गया, फिर गायब हो गया। तंग आकर पांडव एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। युधिष्ठिर ने कहा, “भैया बहुत प्यास लग रही है।” नकुल ने एक पेड़ पर चढ़कर आसपास नजर दौड़ाई। और बोला, “पास में खूब हरियाली है और सारस भी वहां पर उड़ रहे हैं। वहां पानी जरूर होगा। मैं अभी पानी ले कर आता हूं।”
हिंदी कहानी मायावी सरोवर
12 वर्ष का वनवास पूरा होने को आया। एक दिन पांडवों ने जंगल में एक हिरण का पीछा किया। वह एक मायावी हिरण था। तेज दौड़कर पांडवों को जंगल में बहुत दूर ले गया, फिर गायब हो गया। तंग आकर पांडव एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। युधिष्ठिर ने कहा, “भैया बहुत प्यास लग रही है।” नकुल ने एक पेड़ पर चढ़कर आसपास नजर दौड़ाई। और बोला, “पास में खूब हरियाली है और सारस भी वहां पर उड़ रहे हैं। वहां पानी जरूर होगा। मैं अभी पानी ले कर आता हूं।”
थोड़ी दूर जाने पर उसे तालाब दिखाई दिया। उसने तालाब में हाथ डाला। अचानक आसमान से आवाज आई, “ठहरो यह तालाब मेरा है। मेरे सवालों का जवाब दो, फिर पानी पीना।” नकुल चौक गया। पर उसे बहुत तेज प्यास लगी थी। चेतावनी को अनसुना कर वह पानी पी गया। पानी पीते ही वह जमीन पर गिर पड़ा। बहुत देर तक नकुल वापस नहीं आया तो युधिष्ठिर ने सहदेव को उसे ढूंढने भेजा।
वह भी तालाब पर पहुंचा। आवाज की परवाह ना करते हुए उसने भी पानी पी लिया और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। फिर अर्जुन उन्हें ढूंढते हुए वहां पहुंचा। अपने भाइयों की हालत देखकर दंग रह गया। तभी उसे एक अजीब तरह की प्यास ने बेचैन कर दिया। वह पानी की ओर खिंचता चला गया और पानी में हाथ डाला। फिर से वही आवाज आई, “पहले मेरे सवालों का जवाब दो, बाद में पानी पीना, वरना तुम्हारी भी यही हालत होगी।”
अर्जुन क्रोध से झल्ला उठा। हिम्मत हो तो सामने आकर लड़ो यह कहते हुए अर्जुन ने अपना धनुष उठाया। लेकिन उसने पानी पीकर ताकत के साथ लड़ने का निश्चय किया और पानी पी लिया। पानी पीते ही वह भी गिर पड़ा। फिर भीम ने भी वही आवाज सुनी। तुम कौन होते कौन हो मुझे आज्ञा देने वाले ? यह कहते हुए उसने भी पानी पी लिया और गिर पड़ा। अंत में युधिष्ठिर आया।
अपने भाइयों का हाल देखकर वह रो पड़ा। प्यास से पीड़ित विधि युधिष्ठिर पानी की ओर बढ़ा। उसी समय उसी अज्ञात आवाज ने उसे भी रोका। तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात नहीं सुनी। कम से कम तुम तो मेरे प्रश्नों का उत्तर दे कर पानी पियो। युधिष्ठिर ने पहचान लिया कि यह किसकी आवाज़ है और कहा, “तुम अपने प्रश्न पूछो। मैं उत्तर दूंगा।” यक्ष ने लगातार प्रश्न पूछे और युधिष्ठिर उनके उत्तर देता गया।
वह क्या है जो मनुष्य का जीवन भर साथ देता है ?
उत्साह।
खतरे में मनुष्य को कौन बचाता है ?
साहस।
सफलता की पहली सीढी क्या है ?
निरंतर प्रयास है।
मनुष्य होशियार कैसे बनता है ?
बुद्धिमान लोगों के साथ रहकर।
यात्री का साथ कौन देता है ?
प्राप्त शिक्षा।
सभी लाभों में बेहतर लाभ क्या होता है ?
निरोग जीवन।
मनुष्य सबका प्यारा कब बन सकता है ?
घमंड को छोड़ने पर।
ऐसी क्या चीज है जिसे खाने से मनुष्य को खुशी मिलती है दुख नहीं ?
क्रोध, इसके हो जाने से दुख नहीं सताता।
दुख का कारण क्या है ?
इच्छा और क्रोध।
कौन धरती से अधिक सहनशील है ?
मां, जो अपनी संतान की देखरेख करती है।
युधिष्ठिर ने बिना हिचकिचाए ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर दिए। अंत में यक्ष ने कहा, “तुम्हारे जवाब से मैं प्रसन्न हुआ। मृत भाइयों में से तुम जिसे भी चाहो उसे मैं जीवित कर दूंगा।” युधिष्ठिर ने कहा, “नकुल जीवित हो जाए।” यक्ष ने तुरंत सामने प्रकट होकर पूछा, “भीम तो 16000 हाथियों के समान बलवान है। अर्जुन धनुर्विद्या में निपुण है। इन दोनों को छोड़कर तुमने नकुल का नाम क्यों लिया ?” युधिष्ठिर ने कहा, “मेरे पिता की दो पत्नियां हैं कुंती और माद्री। कुंती का पुत्र मैं हूं। इसलिए माद्री के पुत्र को जीवित करना चाहता हूं।” यक्ष युधिष्ठिर की निष्पक्षता से बहुत प्रसन्न हुए और सभी भाइयों को जीवित कर दिया।
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