रामनवमी का महत्व हिन्दी निबंध : मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म दिन है ‘राम नवमी’। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है। इसी पुण्यतिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस का प्रणयन आरंभ किया था। श्री राम विष्णु के सातवें अवतार हैं। वे दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के पुत्र बनकर प्रकट हुए थे। वह मनुष्य रूप में जन्मे थे अतः उनके भी शत्रु-मित्र थे। दुख, कष्ट, विपत्ति उन्हें भी झेलनी पड़ी। जीवन में हताश भी हुए, सिर पीट कर क्रंदन भी किया। वे पूर्ण पुरुष थे, लोकोत्तर देवता नहीं। विष्णु की भांति चार भुजाएं, ब्रह्मा की भांति चार मस्तक, शिव के भांति पांच मुख तथा इन्द्र की भाँति सहस्त्र नेत्र नहीं थे। वह तो दो हाथ, दो पैर, दो आंख और 1 सिर वाले हम जैसे मानव थे।
रामनवमी का महत्व हिन्दी निबंध। ram navami par nibandh
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म दिन है ‘राम नवमी’। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है। फलित ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवमी रिक्ता तिथि मानी गई है और चैत्र मास विवाह आदि शुभ कार्यों में निषिद्ध मास माना गया है। पर इसी मनभावन मधुमास की नवमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र ने जन्म धारण किया था। इसी पुण्यतिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस का प्रणयन आरंभ किया था। इस प्रकार मानव ज्योतिष शास्त्र की स्थापनाओं के विपरीत भी यह भाग्यशालिनी तिथि पवित्र भावनाओं से सुपूजित बन गई है। -रामप्रताप त्रिपाठीश्री राम विष्णु के सातवें अवतार हैं। वे दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के पुत्र बनकर प्रकट हुए थे। वह मनुष्य रूप में जन्मे थे अतः उनके भी शत्रु-मित्र थे। दुख, कष्ट, विपत्ति उन्हें भी झेलनी पड़ी। जीवन में हताश भी हुए, सिर पीट कर क्रंदन भी किया। वे पूर्ण पुरुष थे, लोकोत्तर देवता नहीं। विष्णु की भांति चार भुजाएं, ब्रह्मा की भांति चार मस्तक, शिव के भांति पांच मुख तथा इन्द्र की भाँति सहस्त्र नेत्र नहीं थे। उनका निवास क्षीरसागर की अगाध जल-राशि में विराजमान शेष का पर्यंकपीठ, दुग्ध-ध्वज हिमाच्छन्न शिखर पर विराजमान, नंदीश्वर की पृष्ठिक अथवा नाभिसमुद्भूत शतदल कमल की कोमल पंखुड़ियां या समुद्र में पैदा होने वाले उच्चैःश्रवा नहीं था। वह तो दो हाथ, दो पैर, दो आंख और 1 सिर वाले हम जैसे मानव थे।
श्री राम धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढ़ संकल्प, सर्वभूत हित-निरत, आत्मवान, जित, क्रोध, अनसूयक, धृतिमान, बुद्धिमान, नीतिमान, वाग्मी, शुचीम इन्द्रियजयी, समाधिमान, वेद-वेदांग सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञ, साधू और विलछड़ हैं। बे गंभीरता में समुद्र के समान, धैर्य में हिमालय के समान, वीरता में विष्णु के समान, क्रोध में कालाग्नि के समान, क्षमा में पृथ्वी के समान और धन में कुबेर के समान हैं। इसलिए श्रद्धा के केंद्र हैं।
श्री राम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप की स्थापना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। वह आदर्श शिष्य, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श सेनाध्यक्ष और आदर्श राजा हैं। गौतम पत्नी अहिल्या, सबरी निषादराजगुह, गृध्रराज जटायु, वानर राज सुग्रीव, कपीश हनुमान और अंगद अपने निजी जीवन में अपावन होकर भी उनकी इसी अमर धर्म नीति की दुहाई फेरने के लिए ही धार्मिक इतिहास में पन्नों में अमिट रूप से जुड़ गए हैं। अजामिल या गणिका की कल्पना भी उनकी इसी धर्म नीति की पृष्ठभूमि पर आधारित है। जो रावण जैसे शत्रु के सगे भाई का भी परम हितैषी बाली जैसे अपकर्मी के सगे पुत्र का भी शुभचिंतक, परशुराम जैसे घोर अपमान करने वाले का भी प्रसंशक तथा कैकेई जैसी कुमाता का भी पूजक था। वह परम शक्ति शील, सौंदर्य और करुणानिधि शासक श्री राम भारत के लिए पूजनीय हैं।
एक पत्नी व्रत का आजीवन पालन, गुरुओं का आदेश पालन, धर्म रक्षार्थ पत्नी का त्याग, राज्य और संपत्ति के लिए विवाद नहीं, बल्कि भाई के लिए राज्य तक छोड़ने को तैयार, उच्च कुल के चरित्रवान लोग, पतित् स्त्रियों के उद्धार में अपना गौरव समझना, राजपुत्रों का गुहों, भीलों और वनचरों के साथ मैत्री स्थापन, राजन्य होने पर भी अभिमान की ऐंठन से ऊपर उठकर शूद्रादि का आलिंगन, ब्रम्हचर्य का पुनीत तेज, सत्य और धर्म की सेवा स्वीकार करना, प्रजा वर्ग में धर्म और परोपकार के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना, उच्चवंश में उत्पन्न राजकुमार होकर भी जीवन के सुख-ऐश्वर्य को ठोकर मार कर सुख शांति का सच्चा संदेश देने निकल पड़ना, उस राम की अलौकिक कल्पना को शतशत प्रणाम।
यद्यपि राम का उल्लेख ऋग्वेद में 5 बार हुआ है पर कहीं भी ऐसा संकेत नहीं मिलता जिससे सूचित होता हो कि श्री राम दशरथ के पुत्र थे। उनको दशरथनंदन रूप में वर्णन किया आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखकर। इस मधुर काव्य पर अनेक काव्य-प्रणेता इतने मुग्ध हुए कि वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर ना केवल संस्कृत साहित्य में ही अनेक काव्य निर्मित हुए अपितु हिंदी तथा भारत की प्रांतीय एवं विश्व की अनेक भाषाओं में राम काव्य लिखे गए। संस्कृत वाड़्गमय में जो स्थान बाल्मीकि का है हिंदी में वह स्थान तुलसी के राम चरित मानस का है। 20 वीं सदी में मैथिलीशरण गुप्त के ‘साकेत’ का है। महाराष्ट्र में ‘भावार्थ रामायण’ का है और दक्षिण में ‘कम्ब रामायण’ का है।
चीन के ‘अनामकं जातकंम’, ‘दशरथ जातकम’ तथा ‘ज्ञान प्रस्थानं’ आदि ग्रंथों में रामकथा का सविस्तार वर्णन है। पूर्वी तुर्किस्तान की ‘खोतानी रामायण’ में लंका की रामायण पद्य चरित में कंबोडिया की ‘रे आमकेर’ में लाओ के ‘राम जातक’ में मलाया की ‘हिकायत सेरी राम’ में राम कथाओं का उल्लेख है। तिब्बत में भी राम चरित की अनेक हस्त लिपियां मिलती हैं।
डे. फेरिया ने स्पैनिश भाषा में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘प्रसिया पौर्तुगेसा’ में और डॉक्टर कोलैण्ड ने डच भाषा में रामकथा का वर्णन किया है। जे.वी. खनियर ने ‘ट्रावल्स इन इंडिया में’ तथा एम. सोनेरा ने अपनी ‘वॉइस ऑफ ओरिएंटल’ में श्रीराम की लोकप्रिय गाथाओं का निरूपण किया है। फ्रेंच भाषा की ‘रेसालिया डेस एवरर’ में व्यवस्थित रामकथा का उल्लेख है। रूस ने तो रामचरितमानस का रूसी अनुवाद ही छाप दिया है। सच्चाई यह है कि इतने प्रिय और जगद्वन्दनीय नायक राम पूज्य हैं। फिर ‘ श्रुत्वा रामकथां रम्यां शिरः कस्य न कम्पते।‘ मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
राम तुम्हारा व्रत स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।।
राम नवमी उन्हीं की पावन जन्म तिथि है। चैत्र शुक्ल नवमी यदि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त हो और मध्यान्ह में भी यही योग हो तो वह परम पुण्यदाई है। अगस्त्य संहिता में कहा भी है-
चैत्र शुक्ला तु नवमी पुनर्वसु युता यदि।
सैव मध्यान्ह महा पुण्यात्मा भवेत्।।
उपोध्य नवमी त्वद्य यामेष्वष्टसु राघव।
तेन प्रीतो भव त्वं भोः संसारात्मा हि मां हरे।।
इस मंत्र से भगवान के प्रति उपवास की भावना प्रकट करनी चाहिए।राम नवमी के अवसर पर राम मंदिर सजाए जाते हैं, पत्रों-पुष्पों मालाओं तथा रात्रि में विद्युत दीपों से अलंकृत किए जाते हैं। राम जीवन की झांकियां दर्शाई जाती है। ‘मानस’ का पाठ होता है। राम कथा पर प्रवचन होता है। राम जीवन का महत्व दर्शाया जाता है। राम के गुण जीवन में अवतरित करने का उद्देश्य होता है। जीवन में मर्यादा की मूल्यों की स्थापना का आग्रह होता है। ‘सियाराम मय’ रूप ग्रहण करने में जीवन की कृतार्थता पर बल दिया जाता है।
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