चोर की सद्बुद्धि - पंचतंत्र की कहानियां : तीन युवक थे। एक था राजा का लड़का, दूसरा था मंत्री का लड़का और तीसरा था व्यापारी का लड़का। तीनों युवकों में घनिष्ठ मित्रता थी। तीनों युवक साथ-साथ रहते थे, साथ-साथ खेलते थे और साथ साथ सैर-सपाटे भी किया करते थे। तीनों लड़कों के घरों में धन दौलत की कमी नहीं थी। अतः उन्हें खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहती थी। वह कामकाज बिल्कुल भी नहीं करते थे। पूरे दिन सैर-सपाटे किया करते या खेल कूद में लगे रहते थे।
चोर की सदबुद्धि - पंचतंत्र की कहानियां
तीन युवक थे। एक था राजा का लड़का, दूसरा था मंत्री का लड़का और तीसरा था व्यापारी का लड़का। तीनों युवकों में घनिष्ठ मित्रता थी। तीनों युवक साथ-साथ रहते थे, साथ-साथ खेलते थे और साथ साथ सैर-सपाटे भी किया करते थे। तीनों लड़कों के घरों में धन दौलत की कमी नहीं थी। अतः उन्हें खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहती थी। वह कामकाज बिल्कुल भी नहीं करते थे। पूरे दिन सैर-सपाटे किया करते या खेल कूद में लगे रहते थे।
वह तीनों जब कुछ और बड़े हुए, तो उनके माता-पिता को चिंता हुई। उन्होंने सोचा - लड़के अब बड़े हो गए हैं फिर भी कोई काम काज नहीं करते। उनका जीवन किस तरह बीतेगा? एक दिन राजा ने अपने लड़के को बुलाकर कहा, “देखो बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो। तुम्हें अब खेलकूद छोड़कर राजकाज देखना चाहिए। आखिर राजा के लड़के हो, राजकाज नहीं देखोगे तो क्या करोगे?
मंत्री भी एक दिन अपने लड़के को बुलाकर कहता है, “तुम अब बड़े हो गए हो बेटा। अब तुम्हें सैर-सपाटा छोड़कर कामकाज में लगना चाहिए।” इसी प्रकार व्यापारी ने भी एक दिन अपने लड़के को बुलाकर कहा, “तुम अब समझदार हो गए हो। पुत्र, अब तुम्हें व्यापार करके धन कमाना चाहिए। यदि तुम इसी प्रकार सैर-सपाटे में लगे रहोगे, तो तुम्हें घर से निकाल दिया जाएगा।
तीनों मित्र अपने-अपने पिता की बात सुनकर चिंतित हो उठे और मन ही मन सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए? वह तीनों एक वृक्ष के नीचे एकत्रित हुए और अपने-अपने पिता की बात एक दूसरे को सुनाकर सोचने लगे, अब क्या किया जाए?
व्यापारी के लड़के ने कहा, “हमें अब किसी काम के द्वारा पैसा कमाना चाहिए। पैसा कमाने के लिए किसी और नगर में जाना चाहिए।” मंत्री का लड़का बोला, “बात तो ठीक कह रहे हो, पर बिना रुपए-पैसे के दूसरी जगह कैसे जाया जाएगा? आखिर कामकाज करने के लिए भी तो धन चाहिए।”
व्यापारी का लड़का विचारों में डूबा हुआ था। उसने सोचकर कहा, “मैं एक ऐसे पर्वत को जानता हूं, जिस पर हीरे-जवाहरात और रत्न मिलते हैं। हमें उसी पर्वत पर चलना चाहिए। अगर रत्न मिल गए तो धन की समस्या हल हो जाएगी। व्यापारी के लड़के की बात शेष दोनों मित्रों को पसंद आ गई। फिर क्या था, तीनों मित्र पर्वत की ओर चल पड़े।
मार्ग में सघन वन पढ़ता था। जंगल के अंत में पर्वत था। तीनों मित्र उस जंगल को पार करके पर्वत पर जा पहुंचे। पर्वत पर पहुंचकर उन्होंने रत्न खोजना आरंभ कर दिया। किस्मत के जोर से उन्हें एक बहुमूल्य रत्न मिल गया। तीनों मित्र बड़े प्रसन्न हुए। वह रत्नों को लेकर पर्वत से नीचे उतर पड़े। पर्वत से नीचे उतर कर वे तीनों एक स्थान पर बैठकर सोचने लगे, आगे फिर वही जंगल मिलेगा। जंगल में चोर डाकुओं की अधिकता रहती है। कौन जाने, किसी चोर या डाकू से भेंट हो जाए। भेंट हो जाने पर वह अवश्य हमारे रत्नों को छीन लेगा। कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे चोर डाकू हमारे रत्नों को ना छीन सके।
तीनों मित्र इसी सोच विचार में डूबे रहे। आखिर उन्होंने एक उपाय खोज ही निकाला। उन्होंने निश्चय किया कि हमें अपने-अपने रत्न निगल जाने चाहिए। पेट में जाने से कोई भी आदमी रत्नों को नहीं देख सकेगा। इस प्रकार रत्न छीने जाने से भी बच जाएंगे।
तीनों इसी निश्चय के अनुसार अपने-अपने रत्न भोजन के साथ निकल गए। संयोग की बात है, जिस समय वह तीनों सोच-विचार कर रहे थे, पास ही एक चोर बैठा हुआ था। उसने उन तीनों की बातें तो सुन ही लीं, उन्हें रत्नों को निकलते हुए भी देख लिया था। चोर ने विचार किया, इन तीनों के पेट में रत्न है। अतः रत्नों को प्राप्त करने के लिए उनके साथ लग जाना चाहिए। जब तीनो जंगल में पहुंचेंगे, तो मैं इन्हें मार-मार कर इनके पेट से रत्न निकाल लूंगा।
जब तीनों मित्र चलने लगे, तो चोर उनके पीछे जा पहुंचा। नम्रता से बोला, “मैं अकेला हूं। यदि तुम लोग मुझे भी अपने साथ ले चलो, तो तुम से बातचीत करते-करते मेरा रास्ता कट जाएगा।” उन तीनों ने सोचा, यह अकेला है और हम तीन हैं। यह हमारा कुछ बिगाड़ तो सकेगा नहीं। अतः साथ चलने देने में हर्ज क्या है? उन्होंने चोर को साथ चलने की अनुमति दे दी। फलतः चोर भी उनके साथ हो लिया।
चारों जंगल को पार करके एक गांव में पहुंचे। गांव के मुखिया के पास एक तोता था। तोता किसी भी आदमी को देखते ही समझ जाता था कि इनके पास क्या है। वह मनुष्य की तरह बात भी कर सकता था। वे चारों जब मुखिया के द्वार के सामने से निकलने लगे, तो तोते ने उन्हें देख लिया। वह देखते ही समझ गया कि इनके पास रत्न है। वह जोर जोर-जोसे बोलने लगा, “इन आदमियों के पास रत्न है।”
तोते की बात मुखिया के कानों में भी पड़ी। वह तोते की बात पर विश्वास करता था। उसने सोचा, “तोते के कहने के अनुसार इन आदमियों के पास रत्न हैं। अतः इन्हें पकड़कर रत्न चीन लेने चाहिए। मुखिया ने चारों आदमियों को पकड़वाकर कैद कर लिया। वह उन्हें डांट-डांट कर कहने लगा, “तुम्हारे पास रत्न है, निकालकर सामने रख दो।”
चारो आदमियों ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “हमारे पास रत्न आदि कुछ नहीं है। आप चाहें, तो हमारी तलाशी ले लें।” मुखिया ने उन चारों की बारी-बारी से तलाशी ली, पर उनमें से किसी के पास भी रत्न नहीं निकला। निकलता भी तो कैसे? रत्न तो तीनों के पेट में थे। अतः मुखिया ने चारों को छोड़ छोड़ दिया। जब चारों चलने लगे तो तोता फिर जोर-जोर से कहने लगा, “इनके पास रत्न है ! इनके पास रत्न है!”
मुखिया के मन में संदेह पैदा हो उठा। वह सोचने लगा - मेरा तोता तो कभी झूठ नहीं बोलता। हो सकता है, इनके पास रत्न हो। यह भी हो सकता है, ये रत्न को निगल गए हों। अतः मुखिया ने चारों युवकों को फिर से कैद कर लिया। उन्हें एक कमरे में बंद करते हुए कहा, “कल सवेरे तक रत्न हमारे हवाले कर दो। नहीं तो बारी-बारी से चारों के पेट चीर कर रत्न निकाल लिए जाएंगे।
मुखिया ने चारों को कमरे में बंद कर दिया। बेचारे चारों युवक चिंतित हो उठे, भयभीत हो उठे। रात में चोर के मन में एक नया विचार पैदा हुआ। उसने सोचा, “मैंने हमेशा पाप किए हैं। आज एक अच्छा काम करने का अवसर मिला है। फिर क्यों ना लाभ उठाया जाए? रत्न मेरे पेट में तो नहीं, इन तीनों के पेट में है। अगर मुखिया पहले मेरा पेट चीरकर देखे, तो उसे रत्ना नहीं मिलेगा। हो सकता है, मेरे पेट में रत्न ना मिलने से वह यह सोचकर इन तीनों को छोड़ दें कि तोता झूठ बोल रहा है। इन तीनों के पास रत्न नहीं है। इस तरह मेरे मरने से तीनों की जान बच जाएगी।” अतः चोर ने तीन मित्रों को बचाने का निश्चय किया।
दूसरे दिन सवेरे जब मुखिया कमरा खोलकर भीतर आया, तो चोर ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, “मुखिया जी आप निश्चय ही रत्न के लिए हमारा पेट चीर सकते हैं, पर मेरी एक प्रार्थना है। आप सबसे पहले मेरा पेट चीर कर देखें। मुखिया ने चोर की बात मान ली और सबसे पहले उसी के पेट की चीर-फाड़ की। चोर के पेट में कुछ नहीं मिला। मिलता भी तो कहां से मिलता? रत्न तो अन्य तीन युवकों के पेट में थे।
चोर के पेट में रत्न न मिलने से मुखिया ने सोचा, मैंने इसके पेट की चीरफाड़ तो की, पर कुछ नहीं मिला। मैंने व्यर्थ ही इसकी जान ले ली। हो सकता है, इन तीनों के पेट में भी रत्न न हो। मुझे व्यर्थ ही इन तीनों की भी जान नहीं लेनी चाहिए। तो क्या तोता झूठ बोलता है? वह तो पक्षी है। वह सच या झूठ को क्या जाने?
मुखिया ने तीनों युवकों को छोड़ दिया। चोर की सद्बुद्धि ने उन तीनों की जान बचा ली। तीनों युवक अपने-अपने घर जाकर काम करने में लग गए और जीवन सुख से व्यतीत करने लगे।
कहानी से शिक्षा :
- बुरे मनुष्यों के ह्रदय में भी कभी-कभी अच्छे विचार पैदा हो जाते हैं।
- अच्छे विचारों से सदा भलाई ही होती है।
- जिस आदमी के विचार स्थिर नहीं रहते, उसे धोखा खाना पड़ता है।
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