ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश : कहानी का मुख्य पात्र राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप के नगरों की बधाइयां लेते हुए मुंबई और फिर वहां से दिल्ली आते हैं। उनकी प्रेयसी उर्मिला अन्य खबरों की तरह ही इस खबर को भी पढ़ती है, लेकिन किसी प्रकार की व्याकुलता या जिज्ञासा प्रकट नहीं करती। राजा रिपुदमन एवं उर्मिला के बीच काफी पहले से प्रेम संबंध है, लेकिन उन दोनों ने परस्पर विवाह नहीं किया है। रिपुदमन विवाह को बंधन मानते हैं, किंतु प्रेम को सत्य मानते हैं। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारुति से मिलते हैं, क्योंकि उन्हें नींद कम आने तथा मन नियंत्रण में नहीं रहने की समस्या महसूस होती है।
ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश। Dhruv Yatra Kahani ka Saransh
विजेता के रूप में राजा रिपुदमन बहादुर : कहानी का मुख्य पात्र राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप के नगरों की बधाइयां लेते हुए मुंबई और फिर वहां से दिल्ली आते हैं। उनकी प्रेयसी उर्मिला अन्य खबरों की तरह ही इस खबर को भी पढ़ती है, लेकिन किसी प्रकार की व्याकुलता या जिज्ञासा प्रकट नहीं करती।
राजा रिपुदमन बहादुर एवं उर्मिला के बीच प्रेम संबंध : राजा रिपुदमन एवं उर्मिला के बीच काफी पहले से प्रेम संबंध है, लेकिन उन दोनों ने परस्पर विवाह नहीं किया है। रिपुदमन विवाह को बंधन मानते हैं, किंतु प्रेम को सत्य मानते हैं। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारुति से मिलते हैं, क्योंकि उन्हें नींद कम आने तथा मन नियंत्रण में नहीं रहने की समस्या महसूस होती है। आचार्य उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बताते हैं।
राजा रिपुदमन की उर्मिला से मुलाकात : राजा रिपुदमन ने उर्मिला से विवाह नहीं किया है, किंतु उन दोनों के प्रेम संबंधों के कारण उनकी एक संतान है। उर्मिला राजा से मिलने आई तो साथ में अपने बच्चे को भी लाई, जिसके नाम को लेकर उन दोनों के बीच चर्चा होती है। दोनों बात करने के लिए जमुना किनारे पहुंच जाते हैं। वहां उर्मिला राजा से कहती है कि तुम अब मेरी व मेरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त हो। अब तुम निश्चिंत होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने पर अपना ध्यान केंद्रित करो। उर्मिला सिद्धि प्राप्ति के लिए राजा को दक्षिणी ध्रुव जाने की सलाह देती है।
आचार्य (उर्मिला के पिता) द्वारा विवाह के लिए दबाव डालना : राजा रिपुदमन आचार्य को बताते हैं कि उर्मिला पहले विवाह के लिए उद्यत थी, जबकि वह तैयार नहीं थे। गर्भधारण करने के बाद वह विवाह के लिए तैयार थे, किंतु उर्मिला ने उन्हें ध्रुव यात्रा पर भेज दिया। अब लौट आने पर वह प्रसन्न नहीं है। वह कहती है कि यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं होती।
सिद्धि तक जाओ जो मृत्यु के पार है। आचार्य मारुति राजा को बताते हैं कि उर्मिला उन्हीं की बेटी है और तुम लोग विवाह कर के साथ-साथ यहीं रहो। अपने आचार्य पिता की बात उर्मिला नहीं मानती है। उनका अंत समय आने पर भी उर्मिला उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं करती है और अपने पिता से स्वयं को भूल जाने के लिए कहती है।
उर्मिला के दृढ़ संकल्प के सामने रिपुदमन का झुकना : जब राजा रिपुदमन को यह विश्वास हो गया कि उर्मिला किसी भी प्रकार अपने निश्चय से नहीं हटने वाली है, तो वह पूछते हैं कि उन्हें कब जाना है? तो उर्मिला कहती है कि जब हवाई जहाज मिल जाए, राजा उसी समय शटलैंड के लिए पूरा जहाज बुक कर लेते हैं, जो तीसरे दिन ही जाने वाला होता है। इतनी जल्दी जाने की बात सुनकर उर्मिला थोड़ी भावुक हो जाती है, लेकिन रिपुदमन कहते हैं कि उर्मिला रूपी स्त्री के अंदर छिपी प्रेमिका की यही इच्छा है।
रिपुदमन की दक्षिणी ध्रुव जाने की तैयारी : इस खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मच गई। लोगों की उत्सुकता का ठिकाना न रहा। उर्मिला सोच रही थी कि आज उनके जाने की अंतिम संध्या है। राष्ट्रपति की ओर से भोज दिया गया होगा। एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े लोग उसमें शामिल होंगे। कभी वह अनंत शून्य में देखती तो कभी अपने बच्चे में डूब जाती।
राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या करना : तीसरे दिन जो जाने का दिन था, उर्मिला ने अखबार पढ़ा - राजा रिपुदमन सवेरे खून से भरे पाए गए। गोली का कनपटी के आर-पार निशान है।
अखबार में विवरण एवं विस्तार के साथ उनसे संबंधित अनेक सूचनाएं थी, जिन्हें उर्मिला ने अक्षर-अक्षर सब पड़ा।
राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या से पहले लिखा गया पत्र : राजा ने अपने पत्र में लिखा है कि “दक्षिणी ध्रुव जाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वे जाना चाहते थे क्योंकि इस बार उन्हें वापस नहीं लौटना था। लोगों ने इसे मेरा पराक्रम समझा लेकिन यह छलावा है क्योंकि इसका श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए।
ध्रुव पर जाने पर भी मैं नहीं बचता या फिर नहीं लौटता और आत्महत्या कर के भी नहीं लौटूंगा। मैं अपने होशोहवास में अपना जीवन समाप्त करके किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूं। भगवान मेरे प्रिय के लिए मेरी आत्मा की रक्षा करें।
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