वनों की उपयोगिता पर निबंध। Importance of trees essay in Hindi : वन मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी है, किंतु सामान्य व्यक्ति इसके महत्व को नहीं समझ पा रहा है। जो व्यक्ति वनों में रहते हैं या जिनकी जीविका वनों पर आश्रित है, वह तो वनों के महत्व को समझते हैं। लेकिन जो लोग वनों में नहीं रह रहे हैं वे तो इन्हें प्राकृतिक शोभा का साधन ही मानते हैं। वनों को हरा सोना इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन जैसा मूल्यवान, हितैषी और शोभाकारक मनुष्य के लिए कोई और नहीं। आज भी संतप्त मनुष्य वृक्ष के नीचे पहुंचकर राहत का अनुभव करता है। सात्विक भावनाओं के यह संदेशवाहक, प्रकृति का सर्वाधिक प्रेमपूर्ण उपहार हैं। स्वार्थी मनुष्य ने इनसे निरंतर दुर्व्यवहार किया है।
वनों की उपयोगिता पर निबंध। Importance of trees essay in Hindi
वनों का प्रत्यक्ष योगदान
मनोरंजन का
साधन : वन मानव को सैर-सपाटे के लिए रमणीय क्षेत्र प्रस्तुत कराते हैं। वनों के
अभाव में पर्यावरण शुष्क हो जाता है और सौंदर्य नष्ट हो जाता है। वृक्ष स्वयं
सौंदर्य का सृजन करते हैं। ग्रीष्मकाल में बहुत बड़ी संख्या में लोग पर्वतीय
क्षेत्रों की यात्रा करके इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
लकड़ी की प्राप्ति
: वनों से हमें अनेक प्रकार की बहुमूल्य लकड़ियां प्राप्त होती हैं। यह लकड़ियां
हमारे अनेक प्रयोगों में आती हैं। इन्हें ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह
लकड़ियां व्यापारिक दृष्टिकोण से भी बहुत उपयोगी होती हैं, जिनमें साल, सागौन देवदार, चीड़, शीशम, चंदन आदि
की लकड़ियां प्रमुख हैं। इनका प्रयोग फर्नीचर, कीमती सामान, माचिस, रेल के डिब्बे,
स्लीपर, जहाज आदि बनाने के लिए किया जाता है।
विभिन्न
उद्योगों के लिए कच्चे माल की पूर्ति : वनों से लकड़ी के अतिरिक्त अनेक उपयोगी
सहायक वस्तुओं की प्राप्ति होती है, जिनका अनेक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में
उपयोग किया जाता है। इनमें गोंद, शहद, जड़ी-बूटियां, कत्था, लाख, चमड़ा, जानवरों
के सींग आदि मुख्य हैं। इनका कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर उद्योग, दियासलाई
उद्योग, औषधि उद्योग आदि में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है।
प्रचुर फलों की
प्राप्ति : वन प्रचुर मात्रा में फलों को प्रदान करके मानव का पोषण करते हैं। यह
फल अनेक बहुमूल्य खनिज-लवणों व विटामिनों का स्रोत है।
जीवन उपयोगी
जड़ी बूटियां : वन जीवन उपयोगी जड़ी बूटियों का भंडार है। वनों में ऐसी अनेक वनस्पतियां
पाई जाती हैं, जिनसे अनेक असाध्य रोगों का निदान संभव हो सका है। विजयसार की लकड़ी
मधुमेह में अचूक औषधि है। लगभग सभी आयुर्वेदिक औषधियां वृक्षों से ही विभिन्न
तत्वों को एकत्र कर बनाई जाती है।
वन्य पशु-पक्षियों
को संरक्षण : वन्य पशु-पक्षियों की सौंदर्य की दृष्टि से अपनी उपयोगिता है। वन अनेक
पशु-पक्षियों को आवास प्रदान करते हैं। वे हिरण, नीलगाय, गीदड़, रीछ, शेर, चीता और
हाथी आदि वन्य पशुओं की क्रीड़ास्थली है। यह पशु वनों में स्वतंत्र विचरण करते हैं,
भोजन प्राप्त करते हैं और संरक्षण पाते हैं। गाय, भैंस, बकरी और भेड़ आदि पालतू
पशुओं के लिए भी वन विशाल चारागाह प्रदान करते हैं।
बहुमूल्य
वस्तुओं की प्राप्ति : वनों से हमें अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं।
हाथीदांत, मृग-कस्तूरी, मृग-छाल, शेर की खाल, गेंडे के सींग आदि बहुमूल्य वस्तुएं
वनों की ही देन है। वनों से प्राप्त कुछ वनस्पतियों से तो सोना और चांदी भी निकाले
जाते हैं। तेलियाकंद नामक वनस्पति से प्रचुर मात्रा में सोना प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक लाभ
: भौतिक जीवन के अतिरिक्त मानसिक एवं आध्यात्मिक पक्ष में भी वनों का महत्व कुछ कम
नहीं है। सांसारिक जीवन से क्लांत मनुष्य यदि वनों में कुछ समय निवास करते हैं, तो
उन्हें संतोष तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है। इसलिए हमारी प्राचीन संस्कृति में
ऋषि-मुनि वनों में ही निवास करते थे।
इस प्रकार हमें वनों
का प्रत्यक्ष योगदान देखने को मिलता है, जिनसे सरकार को राजस्व और वनों के ठेकों
के रूप में करोड़ों रुपए की आय होती है। साथ ही सरकार चंदन के तेल, उसकी लकड़ी से
बनी कलात्मक वस्तुओं, हाथी दांत की बनी वस्तुओं, फर्नीचर, लाख, तारपीन के तेल आदि
के निर्यात से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित करती है।
वनों का अप्रत्यक्ष योगदान
वर्षा : भारत एक
कृषि प्रधान देश है। सिंचाई के अपर्याप्त साधनों के कारण अधिकांशतः मानसून पर
निर्भर रहता है। कृषि की मानसून पर निर्भरता की दृष्टि से वनों का बहुत महत्व है। वन, वर्षा में सहायता करते
हैं। इन्हें वर्षा का संचालक भी कहा जाता है। इस प्रकार वनों से वर्षा होती है और
वर्षा से वन बढ़ते हैं।
पर्यावरण
संतुलन : वन-वृक्ष वातावरण से दूषित वायु ग्रहण करके अपना भोजन बनाते हैं और
ऑक्सीजन छोड़कर पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने में सहायक होते हैं। इस प्रकार वन पर्यावरण
में संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।
जलवायु पर
नियंत्रण : वनों से वातावरण का तापक्रम, नमी और वायु प्रवाह नियंत्रित होता है।
जिससे जलवायु में संतुलन बना रहता है। वन जलवायु की भीषणता को सामान्य बनाए रखते
हैं। यह आंधी-तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं। यह सारे देश की जलवायु को प्रभावित
करते हैं तथा गर्म एवं तेज हवाओं को रोककर देश की जलवायु को समशीतोष्ण बनाए रखते
हैं।
जल के स्तर में
वृद्धि : वन वृक्षों की जड़ों के द्वारा वर्षा के जल को सोखकर भूमि के नीचे जल
स्तर को बढ़ाते रहते हैं। इससे दूर-दूर तक के क्षेत्र हरे-भरे रहते हैं। साथ ही कुओं
आदि में जल का स्तर घटने नहीं पाता है। वनों से नदियों के सतत प्रवाहित होते रहने
में भी सहायता मिलती है।
भूमि कटाव पर
रोक : वनों के कारण वर्षा का जल मंद गति से प्रवाहित होता है। अतः भूमि का कटाव कम
हो जाता है। वर्षा के अतिरिक्त जल को वन सोख लेते हैं और नदियों के प्रवाह को
नियंत्रित करके भूमि के कटाव को रोकते हैं। जिसके फलस्वरुप भूमि उबड़-खाबड़ नहीं
हो पाती तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है।
रेगिस्तान के
प्रसार पर रोक : वन तेज आंधियों को रोकते हैं तथा वर्षा को आकर्षित भी करते हैं।
जिससे मिट्टी के कण उनकी जड़ों में बंध जाते हैं। इससे रेगिस्तान का प्रसार नहीं
होने पाता।
बाढ़-नियंत्रण
में सहायक : वृक्षों की जड़े वर्षा के अतिरिक्त जल को सोख लेती हैं, जिसके कारण
नदियों का जल प्रवाह नियंत्रित रहता है। इससे बाढ़ की स्थिति में बचाव होता है।
वनों को हरा सोना
इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन जैसा मूल्यवान, हितैषी और शोभाकारक मनुष्य के लिए
कोई और नहीं। आज भी संतप्त मनुष्य वृक्ष के नीचे पहुंचकर राहत का अनुभव करता है।
सात्विक भावनाओं के यह संदेशवाहक, प्रकृति का सर्वाधिक प्रेमपूर्ण उपहार हैं।
स्वार्थी मनुष्य ने इनसे निरंतर दुर्व्यवहार किया है। जिसका प्रतिफल है भयंकर उष्णता,
श्वास संबंधी रोग। हिंसात्मक वृत्तियों का विस्फोट आदि।
भारतीय वन-संपदा
के लिए उत्पन्न समस्याएं : वनों के योगदान से स्पष्ट है कि वह हमारे जीवन में
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से बहुत उपयोगी है। वनों में अपार संपदा पाई
जाती है। किंतु जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती गई, वनों को मनुष्य के प्रयोग के लिए
काटा जाने लगा। अनेक अद्भुत और घने वन आज समाप्त हो गए हैं और हमारी वन संपदा का
एक बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया है। वन संपदा के इस संकट ने व्यक्ति और सरकार को वन
संरक्षण की ओर सोचने पर विवश कर दिया है। यह निश्चित है कि वनों के संरक्षण के
बिना मानव जीवन दूभर हो जाएगा। आज हमारे देश में वनों का क्षेत्रफल केवल 22।7 प्रतिशत ही रह
गया है, जो कम से कम एक तिहाई तो होना ही चाहिए। वनों के असमान वितरण, वनों के
पर्याप्त दोहन, नगरीकरण से वनों की समाप्ति, ईंधन व इमारती सामान के लिए वनों की
अंधाधुंध कटाई ने भारतीय वन संपदा के लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं।
वनों के विकास के
लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास : सरकार ने वनों के महत्व को दृष्टिगत रखते
हुए समय-समय पर वनों के संरक्षण और विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं जिसका विवरण
निम्नलिखित है:
1) सन 1956
में वन महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका
प्रमुख नारा था "अधिक वृक्ष लगाओ।” तभी से यह उत्सव प्रतिवर्ष 1 से 7 जुलाई तक मनाया जाता है।
2) सन 1965 में सरकार ने केंद्रीय वन आयोग की स्थापना की।
जो वनों से संबंधित आंकड़े और सूचना एकत्रित करके वनों के विकास में लगी हुई
संस्थाओं के कार्य में तालमेल बैठाता है।
3) वनों के विकास
के लिए देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई, जिनमें वनों के संबंध
में अनुसंधान किए जाते हैं और वन अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाता है।
4) विभिन्न
राज्यों में वन निगमों कि स्थापना की गई है, जिससे वनों की अनियंत्रित कटाई को
रोका जा सके।
व्यक्तिगत स्तर
पर भी अनेक जन आंदोलनों का संचालन करके समाजसेवियों द्वारा समय-समय पर सरकार को
वनों के संरक्षण और विकास के लिए सचेत किया जाता रहा है। इसमें चिपको आंदोलन
प्रमुख रहा, जिसका श्री सुंदरलाल बहुगुणा ने सफल नेतृत्व किया।
उपसंहार : वन निसंदेह
हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। इसलिए वनों का संरक्षण और संवर्धन बहुत आवश्यक
है। इसके लिए जनता और सरकार का सहयोग अपेक्षित है। बड़े खेद का विषय है कि एक ओर
तो सरकार वनों के संवर्धन के लिए विभिन्न आयोगों और निगमों की स्थापना कर रही है
तो दूसरी ओर वह कुछ स्वार्थी तत्वों के हाथों में खिलौना बनकर केवल धन के लाभ की
आशा से अमूल्य वनों को नष्ट भी कराती जा रही है। आज मध्य प्रदेश में केवल 18%
रह गए हैं, जो कि पहले एक तिहाई से अधिक हुआ
करते थे। इसलिए आवश्यकता है कि सरकार वन संरक्षण नियमों का कड़ाई से पालन कराये
ताकि भावी प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा हो सके। इसके लिए सरकार के साथ-साथ सामान्य
का सहयोग भी अपेक्षित है। यदि हर व्यक्ति वर्ष में एक बार एक वृक्ष लगाने और उसका
भली प्रकार संरक्षण करने का संकल्प लेकर उसे क्रियान्वित भी करें तो यह राष्ट्र के
लिए आगे आने वाले कुछ एक वर्षों में
अमूल्य योगदान हो सकता है।
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