ग्रामीण समाज की समस्याएं और समाधान पर निबंध : प्राचीन काल से ही भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। भारत की लगभग 70% जनता गांवों में निवास करती है। इस जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर निर्भर है। कृषि ने ही भारत को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में विशेष ख्याति प्रदान की है। भारत की सकल राष्ट्रीय आय का लगभग 30% कृषि से ही आता है। भारतीय समाज का संगठन और संयुक्त परिवार प्रणाली आज के युग में कृषि व्यवसाय के कारण ही अपना महत्व बनाए हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हमारे देश में कृषि बहुसंख्यक जनता का मुख्य और महत्वपूर्ण व्यवसाय होते हुए भी बहुत ही पिछड़ा हुआ और अवैज्ञानिक है।
ग्रामीण समाज की समस्याएं और समाधान पर निबंध
प्रस्तावना : प्राचीन काल से ही भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। भारत की लगभग 70% जनता गांवों में निवास करती है। इस जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर निर्भर है। कृषि ने ही भारत को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में विशेष ख्याति प्रदान की है। भारत की सकल राष्ट्रीय आय का लगभग 30% कृषि से ही आता है। भारतीय समाज का संगठन और संयुक्त परिवार प्रणाली आज के युग में कृषि व्यवसाय के कारण ही अपना महत्व बनाए हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हमारे देश में कृषि बहुसंख्यक जनता का मुख्य और महत्वपूर्ण व्यवसाय होते हुए भी बहुत ही पिछड़ा हुआ और अवैज्ञानिक है। जब तक भारतीय कृषि में सुधार नहीं होता, तब तक भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं और भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार के पूर्व भारतीय गांवों के सुधार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भारतीय कृषि, कृषक और गांव तीनो ही एक दूसरे पर आश्रित हैं। इनके उत्थान और पतन समस्याएं और समाधान भी एक दूसरे से जुड़े हैं।
भारतीय कृषि का स्वरूप : भारतीय कृषि और अन्य देशों की कृषि में बहुत अंतर है। कारण अन्य देशों की कृषि वैज्ञानिक ढंग से आधुनिक साधनों द्वारा की जाती है। जबकि भारतीय कृषि अवैज्ञानिक और अविकसित है। भारतीय कृषक आधुनिक तरीकों से खेती करना नहीं चाहते और परंपरागत कृषि पर आधारित हैं। इसके साथ ही भारतीय कृषि का स्वरूप इसलिए भी अव्यवस्थित है कि यहां पर कृषि प्रकृति की उदारता पर निर्भर है। यदि वर्षा ठीक समय पर उचित मात्रा में हो गई तो फसल अच्छी हो जाएगी अन्यथा बाढ़ और सूखे की स्थिति में सारी की सारी उपज नष्ट हो जाती है। इस प्रकार की प्रकृति की अनिश्चितता पर निर्भर होने के कारण भारतीय कृषि, सामान्य कृषकों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
भारतीय कृषि की समस्याएं : आज के विज्ञान के युग में भी कृषि के क्षेत्र में भारत में अनेक समस्याएं विद्यमान हैं, जो कि भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी हैं। भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं में सामाजिक आर्थिक और प्राकृतिक कारण है। सामाजिक दृष्टि से भारतीय किसान की दशा अच्छी नहीं है। अपने शरीर की चिंता ना करते हुए सर्दी-गर्मी सभी ऋतुओं में वह अत्यंत कठिन परिश्रम करता है। तब भी उसे पर्याप्त लाभ नहीं हो पाता। भारतीय किसान अशिक्षित होता है। इसका कारण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार का ना होना है। शिक्षा के अभाव के कारण वह कृषि में नए वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग नहीं कर पाता है और अच्छे खाद और बीज के बारे में नहीं जानता है। कृषि करने के आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों के विषय में भी उसका ज्ञान शून्य होता है। आज भी वह प्रायः पुराने ढंग से ही खाद और बीजों का प्रयोग करता है।
भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति भी अत्यंत दयनीय है। वह आज भी महाजनों की मुट्ठी में जकड़ा हुआ है। प्रेमचंद ने कहा था कि “भारतीय किसान ऋण में ही जन्म लेता है, जीवन भर ऋण चुकता है और अंत में ऋणग्रस्त अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।” धन के अभाव में ही वह उन्नत बीज, खाद और कृषि यंत्रों का प्रयोग नहीं कर पाता। सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण वह प्रकृति पर अर्थात वर्षा पर निर्भर करता है।
प्राकृतिक प्रकोप : बाढ़, सूखा और ओला आदि से भारतीय किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। अशिक्षित होने के कारण वह वैज्ञानिक विधियों का खेती में प्रयोग करना नहीं जानता और ना ही उन पर विश्वास करना चाहता है। अंधविश्वास, धर्मांधता और रूढ़िवादिता आदि उसे बचपन से ही घेर लेते हैं। इन सब के अतिरिक्त एक अन्य समस्या है भ्रष्टाचार की। जिसके चलते ना तो भारतीय कृषि का स्तर सुधर पाता है और ना ही भारतीय कृषक का।
भृष्टाचार : हमारे पास दुनिया की सबसे अधिक उपजाऊ भूमि है। गंगा-जमुना के मैदान में इतना अनाज पैदा किया जा सकता है कि पूरे देश का पेट भरा जा सकता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण दूसरे देश आज भी हमारी ओर ललचाई नजरों से देखते हैं। लेकिन हमारी गिनती दुनिया के भ्रष्ट देशों में होती है। हमारी तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। केंद्र सरकार अथवा विश्व बैंक की कोई भी योजना हो उसके इरादे कितने ही महान क्यों ना हो, पर हमारे देश के नेता और नौकरशाह योजना के उद्देश्यों को धूल चटा देने की कला में माहिर हो चुके हैं। भूमि सुधार, बाल पुष्टाहार, आंगनबाड़ी, निर्बल वर्ग आवास योजना से लेकर कृषि के विकास और विविधीकरण की तमाम शानदार योजनाएं कागजों पर ही चल रही हैं।
आज स्थिति यह है कि गांवों के कई घरों में दो वक्त चूल्हा भी नहीं जलता है। और ग्रामीण नागरिकों को पानी, बिजली, स्वास्थ्य, यातायात और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं भी ठीक से उपलब्ध नहीं है। इन सभी समस्याओं के परिणामस्वरुप भारतीय कृषि का प्रति एकड़ उत्पादन अन्य देशों की अपेक्षा गिरे हुए स्तर का रहा है।
समस्या का समाधान : भारतीय कृषि की दशा को सुधारने से पूर्व हमें कृषक और उसके वातावरण की ओर देखना चाहिए। भारतीय कृषक जिन ग्रामों में रहता है उनकी दशा अत्यंत दयनीय है। अंग्रेजों के शासन काल में किसानों पर कर्ज बहुत अधिक था। धीरे-धीरे किसानों की आर्थिक दशा और गिरती चली गई एवं गांवों का सामाजिक, आर्थिक वातावरण अत्यंत दयनीय हो गया। किसानों की स्थिति में सुधार तभी लाया जा सकता है जब विभिन्न आवासीय योजनाओं के माध्यम से इन्हें लाभांवित किया जा सके। इन को अधिक से अधिक संख्या में साक्षर बनाने हेतु एक मुहिम छेड़ी जाए ऐसे ज्ञानवर्धक कार्यक्रम तैयार किए जाएं, जिनसे हमारा किसान कृषि के आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से अवगत हो सके।
ग्राम उत्थान हेतु सरकारी योजनाएं : ग्रामों की दुर्दशा से भारत की सरकार भी अपरिचित नहीं है। भारत ग्रामीणों का ही देश है। अतः उनके सुधार के लिए पर्याप्त ध्यान दिया जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा गांवों में सुधार किए जा रहे हैं। शिक्षालय, वाचनालय, सहकारी बैंक, पंचायत, विकास विभाग, जल विद्युत आदि की व्यवस्था के प्रति पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। इस प्रकार सर्वांगीण उन्नति के लिए भी प्रयत्न हो रहे हैं किंतु इनकी सफलता गांवों में बसने वाले निवासियों पर भी निर्भर हैं। यदि वह अपना कर्तव्य समझकर विकास में सक्रिय सहयोग दें, तो यह सभी सुधार उत्कृष्ट साबित हो सकते हैं। इन प्रयासों के बावजूद ग्रामीण जीवन में अभी भी अनेक सुधार अपेक्षित हैं।
उपसंहार : गांव की उन्नति भारत के आर्थिक विकास में अपना अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भारत सरकार ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात गांधी जी के आदर्श ग्राम की कल्पना को साकार करने का यथासंभव प्रयास किया है। गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई आदि की व्यवस्था के प्रयत्न किए हैं। कृषि के लिए अनेक सुविधाएं जैसे अच्छे बीज, अच्छी खाद, अच्छे उपकरण एवं सुविधाजनक ऋण व्यवस्था आदि देने का प्रबंध किया गया है। इस दशा में अभी और सुधार किए जाने की आवश्यकता है। वह दिन दूर नहीं है जब हम अपनी संस्कृति के मूल्य को पहचानेंगे और एक बार फिर उसके सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करेंगे। उस समय हमारे स्वर्ग से सुंदर देश के गांव अंगूठी में जड़े की तरह सुशोभित होंगे और हम कह सकेंगे कि -
हमारे सपनों का संसार, जहां पर हंसता हो साकार,
जहां शोभा-सुख-श्री के साज, किया करते हैं नित श्रृंगार।
यहां योवन मदमस्त ललाम, ये है वही हमारे ग्राम।।
बहुत ही सुन्दर लेख है पड़के बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteManav samaj me bhrashtachar ke prabhav