संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav : सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे लोगों की संगति में रहना। उनके अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतारना तथा उनकी अच्छी आदतों को अपनाना। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए अन्य मनुष्यों का संग ढूंढता है। यह संगति जो उसे मिलती है, वह अच्छी भी हो सकती है तथा बुरी भी। यदि उसे अच्छी संगति मिल गई तो उसका जीवन सुखपूर्वक बीतता है। यदि संगति बुरी हुई तो जीवन दुखदाई हो जाता है। अतः मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav par Nibandh
सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे लोगों की संगति में रहना। उनके अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतारना तथा उनकी अच्छी आदतों को अपनाना। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए अन्य मनुष्यों का संग ढूंढता है। यह संगति जो उसे मिलती है, वह अच्छी भी हो सकती है तथा बुरी भी। यदि उसे अच्छी संगति मिल गई तो उसका जीवन सुखपूर्वक बीतता है। यदि संगति बुरी हुई तो जीवन दुखदाई हो जाता है। अतः मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बन जाती है, सीप में पड़कर मोती बन जाती है और अगर सांप के मुंह में पड़ पड़ जाए तो विष बन जाती है। पारस के छूने से लोहा सोना बन जाता है, पुष्प की संगति में रहने से कीड़ा भी देवताओं के मस्तक पर चढ़ जाता है। महर्षि वाल्मीकि नामक एक ब्राह्मण थे, किंतु भीलों की संगति में रहकर वह डाकू बन गए। बाद में वही डाकू महर्षि नारद की संगति से तपस्वी बनकर महर्षि वाल्मीकि नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी प्रकार अंगुलीमाल नामक भयंकर डाकू भगवान बुद्ध की संगति पाकर महात्मा बन गया। उत्तम व्यक्तियों के संपर्क में आने से सदगुण स्वयं ही आ जाते हैं। गंदे जल का नाला भी पवित्र पावन भागीरथी में मिलकर गंगाजल बन जाता है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है – जैसी संगति बैठिए तैसी ही फल दीन
उन्नति करने वाले व्यक्ति को अपने इर्द-गिर्द के समाज के साथ बड़े सोच-विचारकर संपर्क स्थापित करना चाहिए, क्योंकि मानव मन तथा जल का स्वभाव एक जैसा होता है। यह दोनों जब गिरते हैं, तो तेजी से गिरते हैं, परंतु इन्हें ऊपर उठाने में बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है। बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी आदर नहीं होता। कुसंगति काम, क्रोध, मोह और मद पैदा करने वाली होती है। अतः प्रत्येक मानव को कुसंगति से दूर रहना चाहिए क्योंकि उन्नति की एकमात्र सीढ़ी सत्संगति है। बुद्धिमान व्यक्ति को सत्संगति की पतवार से अपने जीवनरूपी नौका को भवसागर पार लगाने का प्रयत्न करना चाहिए तभी वह ऊंचे से ऊंचे पहुंच सकता है और समाज में सम्मान प्राप्त कर सकता है।
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