बरसात का एक दिन पर निबंध। Barsat ka ek din essay in hindi : 21 अप्रैल का आनंदपूर्ण दिन 2 महीने के ग्रीष्म अवकाश की घोषणा का दिन। सहपाठियों मित्रों और अध्यापकों से 60 दिन तक ना मिल पाने की कसक, बिछड़ने का दुख और छुट्टियों की हार्दिक खुशी मन में लिए कक्षा से बाहर निकलकर में साइकिल स्टैंड की ओर चला साइकिल ली और कल्पनालोक में खोया घर की ओर चल दिया। सूर्य देव इस अवकाश घोषणा से संभवता प्रसन्न नहीं थे। अतः अपनी तेज किरणों से अपना क्रोध प्रकट कर रहे थे। वातावरण तप रहा था। साइकिल पर सवार गर्मी से परेशान मैं चींटी की चाल से चल रहा था कि अचानक प्रकृति ने पलटा खाया।
बरसात का एक दिन पर निबंध। Barsat ka ek din essay in hindi
21 अप्रैल का आनंदपूर्ण दिन 2 महीने के ग्रीष्म अवकाश की घोषणा का दिन। सहपाठियों मित्रों और अध्यापकों से 60 दिन तक ना मिल पाने की कसक, बिछड़ने का दुख और छुट्टियों की हार्दिक खुशी मन में लिए कक्षा से बाहर निकलकर में साइकिल स्टैंड की ओर चला साइकिल ली और कल्पनालोक में खोया घर की ओर चल दिया।सूर्य देव इस अवकाश घोषणा से संभवता प्रसन्न नहीं थे। अतः अपनी तेज किरणों से अपना क्रोध प्रकट कर रहे थे। वातावरण तप रहा था। साइकिल पर सवार गर्मी से परेशान मैं चींटी की चाल से चल रहा था कि अचानक प्रकृति ने पलटा खाया। सूर्यदेव के क्रोध को बादलों ने ढक लिया। आकाश में बादल छा गए धीमी-धीमी शीतल हवा चलने लगी। मेरा मन प्रसन्न हुआ मन की प्रसन्नता पैरों से प्रकट हुई पैर पैडलों को तेजी से घुमाने लगे।
अभी 10-20 पैडल ही मारे होंगे कि वरुण देवता ने अपना रुप प्रकट कर दिया वर्षा की तीव्र बोने धरती की मार करने लगे। मैं संभल भी ना पाया था कि उनका वेग बढ़ गया। मैं तेज बौछारों से घबरा उठा अपने से ज्यादा चिंता थी अपनी प्यारी पुस्तकों की। उनका तन मुझसे अधिक कोमल था। मुड़ कर पीछे देखा पुस्तकें अभी सुरक्षित थी। बस्ते की वर्षा ने ढाल के वार को रोक रखा था।
वर्षा का जल सिर से चू-चूकर चेहरे तथा नयनों से क्रीडा कर रहा है। वस्त्रों में प्रवेश कर शरीर का प्रक्षालन कर रहा है। जुराबों में घुसकर गुदगुदी मचा रहा है। बार-बार चेहरा पोंछते हुए रुमाल भी जवाब दे गया। वस्त्रों से पानी ऐसे झड़ रहा है मानो नाइलोन का वस्त्र सुखाने के लिए टांग दिया हो। मार्ग में आश्रय नहीं है सिर छुपाने की जगह भी नहीं है अतः रुकने का कोई लाभ नहीं। मन ने साहस की रज्जू नहीं छोड़ी। अकबर इलाहाबादी का शेर एक स्मरण हो आया और मेरी हिम्मत बढ़ गई।
जिंदगी जिंदादिली का नाम है अकबर
मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं
कष्ट या दुख की अनुभूति मन से होती है। जिस भावना से कार्य किया जाता है वैसा ही आनंद प्राप्त होता है। वर्षा में पिकनिक का आनंद समझकर साइकिल चला रहा हूं। सड़क पर पानी तेजी से बह रहा है। पानी की परत ने सड़क के चेहरे को ऐसे ढक दिया है मानो किसी युवती ने महीन चुनरी अपने मुख पर लपेट ली हो। पानी में साइकिल चलाते हुए जोर लगाना पड़ रहा है। इधर कार, मोटरसाइकिल, ऑटो रिक्शा जो गुजरता वह तेजी से पानी की बौछार मार जाता। होली सी खेल जाता बस्ते तथा साइकिल सहित मेरे शरीर को पुनः स्नान करा जाता। एक क्षण क्रोध आता दूसरे चरण साइकिल चलाने में ध्यानस्थ हो जाता है।
साहस सफलता की सीढ़ी है सौभाग्य का साथी है। आगे बस स्टैंड का शेड आ गया यहां पर अनेक नर नारी और स्कूली बच्चे पहले से ही स्थान को घेरे हुए थे। लेकिन सेट के नीचे पहुंचना भंवर में से नाम निकालना था। पटरी के नीचे 5:00 से 6:00 इंच की तेज धार बह रही थी। मैंने साइकिल को पानी में खड़ा किया बस्ते को साइकिल से उतारा और शेर के नीचे पहुंच गया।
शेड के नीचे सुरक्षित खड़ा मैं अपने को धन्य समझ रहा था। किंतु साहब, तीव्र गति वाले वाहन होली खेलने को भूले ना थे। वह जिस गली से गुजरते, उस गति से जल के छींटे हमारे ऊपर आकर डाल जाते। उस समय शेड के शरणार्थियों के मधुर वचन सुनने योग्य थे।
किंतु मेरी साइकिल तो पानी के मध्य ध्यानस्थ थी। जल की धारा उसके चरणों का चुंबन ले आगे बढ़ रही थी। कभी-कभी तो जल की कोई तरंग मस्ती के क्षणों में साइकिल का आलिंगन करने को उतावली की हो उठती थी। भगवान वरुण का क्रोध शांत होने लगा बादलों कि झूली जल कणों से खाली हो रही थी। फलता वर्षा की बौछार बहुत धीमी हो गई थी। जनता शेड से इस प्रकार निकल पड़ी मानो किसी सिनेमा का शो छूटा हो।
मैंने भी शेर का आश्रय छोड़ा। पटरी से सड़क पर उतरा। जूता पानी में डूब गया था, जुराबे पैरों पर चिपक गई थी। मैंने साइकिल स्टैंड से उतारी और चल दिया घर की ओर। वर्षा शांत थी सड़क पर चहल-पहल थी। पैंट को ऊपर मोड़े, पजामे को ऊपर उठाएं, धोती को हाथ में पकड़े नर-नारी चल रहे थे। सोचा था दोपहर बाद होली डालना देखना खेलना बंद हो जाता है। पर मेरी यह भूल सिद्ध हुई। क्षिप्र गति वाहन जल के छींटे डालकर होली का आनंद भी ले रहे थे सड़क पर पानी जो खड़ा था।
घर पहुंचा। मां प्रतीक्षा कर रही थी। फटाफट कपड़े उतारे। बस्ते को खोलकर देखा। वाटर प्रूफ थैले की अभेद्य भेज दिया वस्त्र प्राचीर में भी वर्षा की 24 शूरवीर बूंदों ने आक्रमण कर ही दिया। वर्षा में भीगने का अनुभव भी विचित्र और स्मरणीय था।
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