गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता। Non Aligned Movement in Hindi : गुटनिरपेक्षता अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक शक्तिशाली ताकत बन गई है। अब यह प्रश्न पूछा जाता है कि आज की स्थिति में जबकि शीत युद्ध समाप्त हो चुका है, यू.एस.एस.आर का विघटन हो चुका है और विश्व एक ध्रुवीय बन गया है जिसमें केवल यू.एस.ए को ही महाशक्ति का दर्जा प्राप्त है तब गुटनिरपेक्षता सार्थक कैसे बनी हुई है? यह स्मरणीय है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गुटनिरपेक्षता पूर्ण रूप से नई चीज नहीं है। यह धारणा किसी ना किसी रूप में अस्तित्व में रही है। पुराने जमाने में भी शांति और युद्ध के समय तटस्थ देशों की धारणा विद्यमान थी।
गुटनिरपेक्षता अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक शक्तिशाली ताकत बन गई है। अब यह प्रश्न पूछा जाता है कि आज की स्थिति में जबकि शीत युद्ध समाप्त हो चुका है, यू.एस.एस.आर का विघटन हो चुका है और विश्व एक ध्रुवीय बन गया है जिसमें केवल यू.एस.ए को ही महाशक्ति का दर्जा प्राप्त है तब गुटनिरपेक्षता सार्थक कैसे बनी हुई है?
यह स्मरणीय है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गुटनिरपेक्षता पूर्ण रूप से नई चीज नहीं है। यह धारणा किसी ना किसी रूप में अस्तित्व में रही है। पुराने जमाने में भी शांति और युद्ध के समय तटस्थ देशों की धारणा विद्यमान थी। जब कभी दो देशों के बीच युद्ध होता था तो कुछ देश अपनी तटस्थता की घोषणा कर देते थे और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार उनके कुछ अधिकार और उत्तरदायित्व हो जाते थे। वर्तमान युग में वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में इस धारणा ने नया महत्व ग्रहण किया है। यह सत्य है कि गुटनिरपेक्षता का ढांचा शीत युद्ध एवं महाशक्तियों की होड़ के संदर्भ में खड़ा किया था किंतु यह भी बराबर ही सत्य है कि इसके उदय की आवश्यकता विश्व शांति के लिए सुविचार नेताओं की चिंता से उत्पन्न हुई। यू एस एस आर के विघटन और साम्यवाद के पतन के साथ शीत युद्ध समाप्त हो गया किंतु विश्व शांति के लिए खतरा अभी कम नहीं हुआ है। नई विश्व व्यवस्था में नए शक्ति समीकरण उभर रहे हैं जो कि महाशक्तियों की होड़ से भी अधिक खतरनाक है। पूर्व सोवियत संघ का कई स्वतंत्र और संप्रभुता संपन्न राष्ट्रों में विभाजन और उन्हें भविष्य में होने वाले संघर्ष की प्रबल संभावना कुछ इस्लामी राष्ट्रों का पृथक इस्लामिक समुदाय बनाने का षड्यंत्र और नाभिकीय अस्त्र प्राप्त करने की उनकी योजना ये सभी विश्व शांति के लिए निश्चित खतरा है। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के समुदाय को इन परिस्थितियों से निपटने के विषय में सोचना है। गुटनिरपेक्षता सार्थक है क्योंकि यह विवाद से बचती है और समस्याओं पर उनकी गुणवत्ता के आधार पर निर्णय लेती है। इसलिए यह धारणा गलत है कि अब गुटनिरपेक्षता की सार्थकता समाप्त हो चुकी है।
विकसित एवं विकासशील देश किन्हीं शक्तियों के विवाद में अपने को नहीं डालना चाहते। इनमें से बहुत से देश ऐसे हैं जो की दास्ता से निकले हैं और अपनी जनता के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी पहली चिंता राजनीति नहीं अर्थ है। इस प्रकार उन्होंने यह स्थिति अपनाई है कि वे किस प्रकार के विवादों से बचेंगे कि वो सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखेंगे और अपना ध्यान अपनी जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में लगाएंगे।
वर्तमान रूप में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शुभारंभ 1961 में बेलग्रेड में गुटनिरपेक्ष सम्मेलन के साथ हुआ। उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के¸ मिस्त्र के उस समय के राष्ट्रपति कर्नल नासिर एवं युगोस्लाविया के उस समय के राष्ट्रपति मार्शल टीटो ये तीनों उस आंदोलन के संस्थापक थे। बेलग्रेड सम्मेलन में 25 देशों ने भाग लिया। जब से इस आंदोलन की शक्ति एवं लोकप्रियता बढ़ी है और इसमें विश्व के 100 से अधिक देश शामिल हो गए हैं। 8 वां गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन 1986 में जिंबाब्वे की राजधानी हरारे में हुआ। इस सम्मेलन ने विशेष तौर पर दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति की समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित किया। सितंबर 1989 में बेलग्रेड¸ यूगोस्लाविया में शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया जहां पर नेताओं ने गुटनिरपेक्षता की 1961 में हुए प्रथम सम्मेलन के बाद प्रगति की समीक्षा की और आज की ज्वलंत समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु रणनीति तैयार की। 10वां शिखर सम्मेलन सितंबर 1992 जकार्ता¸ इंडोनेशिया में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन ने बदलती हुई अंतरराष्ट्रीय स्थिति के संदर्भ में इसकी सार्थकता की पुष्टि कर दी।
गुटनिरपेक्ष देश पंचशील के पांच सिद्धांतों में विश्वास रखते थे जो कि इस प्रकार हैं- अनाक्रमण¸ समानता एवं पारस्परिक लाभ¸ एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं¸ एक दूसरे की संप्रभुता एवं प्रादेशिक अखंडता का आदर एवं शांतिमय सह अस्तित्व¸ वास्तव में ये सिद्धांत ही गुटनिरपेक्षता के मुख्य आधार कहे जा सकते हैं। गुटनिरपेक्षता की आलोचना भी की जाती है। इसको ‘किनारे पर बैठे रहना’ और ‘कायरता का रूप’ आदि कुछ देशों के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। यह आलोचना अनुचित है क्योंकि यह धारणा केवल नाम से ही निषेधात्मक है किंतु अर्थ में धनात्मक है। इसका उद्देश्य मानव जाति और विश्व के लिए कुछ धनात्मक कार्य करने का है और मानवता को युद्ध की बर्बादी से बचाना है जो कि हमारे सिरों के ऊपर डेमोक्लीज की तलवार की तरह लटकी हुई है।
गुटनिरपेक्षता के कुछ धनात्मक¸ उच्च एवं रचनात्मक उद्देश्य हैं। इसका सबकी स्वतंत्रता और विकास में विश्वास है। इसका विश्वास अंतरराष्ट्रीय मामलों में कार्यवाही की स्वतंत्रता¸ शक्ति राजनीति से प्रेरित ना होकर योग्यता के आधार पर समस्याओं की परख में है। यह युद्ध पर उतारू पक्षों के बीच सेतु बनाना चाहता है और अंतरराष्ट्रीय विवादों के हल के लिए बातचीत¸ मध्यस्थता¸ पंच फैसला और आग्रह जैसे साधनों की हिमायत करता है। इसका व्यापार¸ वाणिज्य¸ विज्ञान एवं तकनीकी आदि क्षेत्रों में विश्वव्यापी सहयोग में विश्वास है। इसका निरस्त्रीकरण में भी विश्वास है और नाभिकीय युद्ध से मानव जाति को संहार से बचाने के लिए यह प्रयासरत है। यह राष्ट्रों की समानताओं में विश्वास रखता है। और दास बने लोगों की स्वतंत्रता¸ संघर्ष का समर्थन करता है। यह दक्षिण अफ्रीका द्वारा अपनाई गई रंगभेद नीति और विश्व के किसी कोने में जातीय भेदभाव के किसी भी रूप की कड़ी आलोचना करता है। इसमें गुट निरपेक्ष राष्ट्रों ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसके फलस्वरुप दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति का अंत हो चुका है और नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में अश्वेत बहुमत की सरकार ने स्वयं अल्पमत की सरकार का स्थान ले लिया है जिससे वहां पर 400 वर्ष से अधिक की गुलामी समाप्त हो चुकी है। सर्वोपरि यह एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना में विश्वास रखता है जो विश्व के संसाधनों को अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई पाटने के लिए विश्व के सभी देशों के बीच समान रूप से बांट सके। इसका मानवीय प्रतिष्ठा एवं बुनियादी मानव अधिकारों में विश्वास है और यह संयुक्त राष्ट्र संघ को समस्याओं के समाधान का साधन मानता है। अभी हाल ही में गुटनिरपेक्षता ने ‘पर्यावरणीय प्रदूषण’ के बढ़ते हुए खतरे के प्रति विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। इसने दो पृथ्वी सम्मेलनों जिनको पर्यावरणीय ह्वास को रोकने हेतु उपाय ढूंढने हेतु आयोजित किया गया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी व्यवस्था कायम करना चाहता है जिसमें सभी देशों के लिए न्याय¸ शांति एवं संपन्नता हो। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का समुदाय और गुटनिरपेक्ष आंदोलन में मानवता का बहुत बड़ा भाग सम्मिलित है और यदि वे केवल आपस में ही सहयोग करें और किसी भी शक्ति के द्वारा किए जाने वाले अन्याय के विरुद्ध एकजुट होकर खड़े हो तो अन्याय¸ शोषण या किसी भी प्रकार के अत्याचार रहित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की एक साफ संभावना बन जाएगी। यदि इन उद्देश्यों की प्राप्ति कर ली जाती है और इसके द्वारा सभी देश अपनी-अपनी जनता के कल्याण के कार्य में लग जाते हैं तो गुट निरपेक्ष आंदोलन से इससे ज्यादा क्या आशा की जानी चाहिए इसकी सार्थकता स्वयं सिद्ध है इन उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए गुटनिरपेक्षता अब भी इतनी महत्वपूर्ण और सार्थक है जितनी कि यह पहले कभी थी। आइए हम आशा करें कि यह अब भी ऐसा मंच बनी रहेगी जहां पर विश्व की समस्याओं को रचनात्मक दृष्टि से देखा जाता है और जहां पूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय एवं समस्त मानवता के लिए चिंता सर्वोच्च महत्व के विषय हैं।
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