भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध। The Future of Democracy in India in Hindi : भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लगभग 40 करोड़ से अधिक लोगों को राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र में लोकसभा के सदस्यों को चुनने के लिए मताधिकार प्राप्त है। 26 जनवरी 1950 को हमारे संविधान के लागू होने के पश्चात लोकसभा हेतु 16 और राज्य विधानसभाओं के लिए इससे भी कई अधिक बार आम चुनाव संपन्न हो चुके हैं। इस पूरी अवधि में लोकतांत्रिक क्रियाकलाप भारत में भली प्रकार होते रहे हैं¸ जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को विश्वसनीयता प्रदान की है। भारतीय लोकतंत्र समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इसकी लोकतांत्रिकता की संपूर्ण विश्व में सभी लोगों (राष्ट्रों) द्वारा प्रशंसा की गई है।
भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध। The Future of Democracy in India in Hindi
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लगभग 40 करोड़ से अधिक लोगों को राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र में लोकसभा के सदस्यों को चुनने के लिए मताधिकार प्राप्त है। 26 जनवरी 1950 को हमारे संविधान के लागू होने के पश्चात लोकसभा हेतु 16 और राज्य विधानसभाओं के लिए इससे भी कई अधिक बार आम चुनाव संपन्न हो चुके हैं। इस पूरी अवधि में लोकतांत्रिक क्रियाकलाप भारत में भली प्रकार होते रहे हैं¸ जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को विश्वसनीयता प्रदान की है¸ जबकि हमारे पड़ोस में पश्चिम और पूर्व दोनों में ही और कुछ हद तक उत्तर में भी विभिन्न प्रकार की तानाशाही का उदय होता रहा है यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है। भारतीय लोकतंत्र समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इसकी लोकतांत्रिकता की संपूर्ण विश्व में सभी लोगों (राष्ट्रों) द्वारा प्रशंसा की गई है।
भारत में लोकतंत्र की इस सफलता के पश्चात भी इसके विषय में संदेह एवं भय प्रकट किए गए हैं। निराशावादियों का कहना है कि भारत में लोकतंत्र की वर्तमान सफलता केवल एक अस्थाई स्थिति है। उनके अनुसार भारत ने लंबी अवधि तक गुलामी को सहा है¸ इतनी की दासता की भावना हमारी प्रतिभा और चरित्र का प्रमुख अंग बन चुकी है। भारतीय राजनीति में बहुत से ऐसे तत्व है जो भारत को पुनः अधिनायकवाद की ओर जाने को मजबूर कर देंगे। संप्रदायवाद भारत में इतना गहरा समाया हुआ है और वह लोकतंत्र की आत्मा को अग्राह्य है। भारत में बेहद गरीबी है और गरीबी और निर्धनता लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक परंपराओं के विकास के लिए स्वास्थ्यप्रद नहीं है। क्या उन नागरिकों के जीवन में जीवन का लोकतांत्रिक तरीका समा सकता है जो की घोर सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के शिकार हैं। क्षेत्रवाद और प्रांतवाद भी ऐसे तत्व हैं जो कि भारत में लोकतंत्र के जिंदा रहने तक के लिए खतरा बने हुए हैं। जाति¸ धर्म और भाषा के नाम पर संकुचित वफादारी या हमारे लाखों लोगों को संपूर्ण राष्ट्र के संदर्भ में सोचने से रोकती है। इसके अतिरिक्त निराशावादियों का यह भी कहना है कि भारतीयों को पर्याप्त राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है¸ वह मुश्किल से ही यह जानते हैं कि मताधिकार का प्रयोग कैसे किया जाता है। वह धन के अभाव से अपने को मुक्त नहीं रख पाते जिसकी भारतीय चुनावों में बहुत बड़ी भूमिका हो चली है। चुनाव शायद ही कभी स्वच्छ होते हों। चुनावों में जीत प्राप्त नहीं की जाती है बल्कि हथकंडे अपना कर जीत सुनिश्चित की जाती है। भारत में बहुदलीय प्रणाली है और जो दल चुनाव के बाद सत्ता में आता है वह मुश्किल से देश की एक तिहाई जनता का प्रतिनिधित्व करता है। सच्चा लोकतंत्र तो वह है जिसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व हो। भारतीय लोकतंत्र को कुछ बाहरी देशों से भी खतरा बना रहता है जो की विभिन्न तरीकों से लोकतंत्र को तोड़ने और नष्ट करने पर आमदा रहते हैं। क्या लोकतंत्र के रूप में भारत इस खतरे का मुकाबला कर सकेगा?
हमारी दृष्टि से यह संदेह एवं भय गलत आधार पर टिके हैं। वे केवल उन प्रलय के पैगम्बरों की अभिव्यक्ति हैं जो की चीजों के ऋणात्मक पहलू को ही दृष्टिगत करते हैं। भारतीय लोकतंत्र ने एक उच्च प्रकार की जीवंतता प्रदर्शित की है। 10 आम चुनावों का लगभग शांतिपूर्वक संपन्न हो जाना एवं सरकारों के शांतिमय परिवर्तनों से इन निराशावादियों के संदेह समाप्त हो जाने चाहिए। भारतीय जनता निरक्षर हो सकती है किंतु उसने उच्च प्रकार की बुद्धिमता का परिचय तब दिया जब उसने उन शक्तियों को उखाड़ फेंका जो कि लोकतंत्र को नष्ट करना चाहती थी और तानाशाही की स्थापना करना चाहती थी. यह सही है कि कई बार संविधान के अनुच्छेद 356 का गलत प्रयोग करके राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करके लोकतंत्र पर प्रहार किया गया। केवल राजनीति से¸ न्याय औचित्य से नहीं प्रेरित होकर केंद्रीय नेताओं ने ऐसा किया। यह भी सही है कि भारत के राष्ट्रपति को जनता और उनके प्रतिनिधियों की आवाज सुननी पड़ी और उन्होंने केन्द्रीय सरकार को अपना निर्णय वापस लेने हेतु विवश किया। राषट्रपति शासन को समाप्त किया गया और लोकतंत्र को बहाल किया गया। इसके अतिरिक्त भारत से निरक्षरता को समाप्त करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
हम बहुत दिनों तक गुलाम रहे हो सकते हैं किंतु साथ ही यह भी समान रुप से सत्य है कि हमारे यहां बहुत लंबे समय की लोकतांत्रिक परंपराएं भी हैं। इन लोकतांत्रिक परंपराओं के कारण भारतीय प्रतिभा अधिकतर लोकतांत्रिक ही है। यह सही है कि जनता की घोर निर्धनता के कारण लोकतंत्र के विकास के लिए ऋणात्मक एवं बाधा तत्व है किंतु समान रूप से यह भी सत्य है कि संपन्नता के रास्ते पर हम काफी चले आए हैं। 2017 का भारत 1947 के भारत से कहीं भिन्न है और वह विश्व के औद्योगिक देशों में से एक होने का दावा कर सकता है। विज्ञान और तकनीकी का उपयोग जनता को निर्धनता की कीचड़ से बाहर निकालने और उसे उत्तम जीवन की उज्जवल धूप में लाने के लिए किया जा रहा है। हमारी पंचवर्षीय योजनाएं जिनमें मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल दिया गया है भारत में असमानता और निर्धनता को समाप्त करने के लिए कृत संकल्प हैं। कई आर्थिक सुधार के माध्यम से भारतीय आर्थिक व्यवस्था में नए प्राणों का संचार हुआ है। हमारी आर्थिक व्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ गई है। आर्थिक समृद्धि का रथ अब अधिक आशावाद और विश्वास के साथ तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। भारत भूतकाल की भांति नहीं अपितु गतिशील समृद्ध राष्ट्र के रूप में 21वीं सदी में प्रवेश कर चुका है। हम आसानी से जनता के सहयोग से सांप्रदायिकता¸ क्षेत्रवाद धर्मवाद और भाषावाद से संघर्ष कर सकते हैं। वयस्क मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है। इसने करोड़ों उन युवक और युवतियों को वोट देने का अधिकार प्रदान कर दिया है जो स्वतंत्र भारत में जन्मे और पले हुए हैं। उनके नए जोश एवं शक्ति से आधुनिकता की शक्तियों को निश्चित रूप से बल मिलेगा जो लोकतंत्र और लोकतांत्रिक जीवन शैली को अन्य प्रत्येक चीज से ऊपर समझती है। जनता में राष्ट्रीयता की भावना का संचार करने और राष्ट्रीय एकता और प्रादेशिक अखंडता को बनाए रखने की इच्छा उत्पन्न करने हेतु नई शिक्षा नीति रूप धारण कर चुकी है और इसका लक्ष्य जनता में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करना और राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने की इच्छा का विकास करना है।
हमें व्यवहार में यह दिखा देना चाहिए कि नकारात्मक शक्तियों का हम पर नियंत्रण नहीं होगा और हम देश और राष्ट्र के संदर्भ में ही सोचेंगे। हमें विदेशी तोड़फोड़ से सावधान रहना होगा और उसके लिए हम अपने को हर प्रकार से सशक्त भी बना रहे हैं। भारत में बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजनीति में एक अजीब आकर्षण है न कि यह लोकतंत्र के लिए कोई खतरा है। हमारा स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र का पहरेदार है और जनता के हाथ में तानाशाही की शक्तियों से जुड़ने के लिए सशक्त हथियार है। भारत का संविधान लोकतंत्र का एक मजबूत बांध है। लोकसभा के लिए हाल के आम चुनावों ने हमारे इस विश्वास को और पक्का कर दिया है कि हमारी जनता लोकतंत्र से कितना प्यार करती है और अधिनायकवाद से कितनी घृणा। संविधान में अनेक संशोधन करके हमने तानाशाही शक्तियों के अवशेषों को समाप्त कर दिया है। राजनीतिक और सामाजिक समानता हमारे समाज का शक्तिचिन्ह तीव्र गति से होता जा रहा है। ये सभी धनात्मक कारक लोकतंत्र की निरंतर सफलता के लिए भविष्यवाणी का काम करते हैं। भारत में लोकतंत्र का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।
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