भारत में कुपोषण पर निबंध। essay on kuposhan in hindi : भारत एक विशाल देश है जिसमें प्राकृतिक संसाधन एवं खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है किंतु फिर भी जनसंख्या के एक बड़े भाग को वांछित मात्रा में पौष्टिक भोजन प्राप्त नहीं हो पाते। परिणामस्वरुप लोग कुपोषित और अभाव ग्रस्त रहते हैं। यदि कुछ पिछड़े राज्यों जैसे बिहार¸ मध्य प्रदेश¸ उड़ीसा¸ राजस्थान आदि के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी अंदर तक जाएं तो हमें यह देख कर हैरानी होगी कि लोग किस प्रकार अर्द्धपोषित हैं विशेषकर महिलाएं और बच्चे जो कि दो जून की रोटी हेतु प्रातः से सायं तक कठिन परिश्रम करते हैं और वह भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पाती। उनकी आमदनी इतनी कम होती है कि वह इतनी अपर्याप्त होती है कि वे ऐसा भोजन नहीं खरीद सकते जिससे उन्हें उपयुक्त शक्ति प्राप्त हो सके।
भारत में कुपोषण पर निबंध। essay on kuposhan in hindi
भारत एक विशाल देश है जिसमें प्राकृतिक संसाधन एवं खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है किंतु फिर भी जनसंख्या के एक बड़े भाग को वांछित मात्रा में पौष्टिक भोजन प्राप्त नहीं हो पाते। परिणामस्वरुप लोग कुपोषित और अभाव ग्रस्त रहते हैं। यदि कुछ पिछड़े राज्यों जैसे बिहार¸ मध्य प्रदेश¸ उड़ीसा¸ राजस्थान आदि के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी अंदर तक जाएं तो हमें यह देख कर हैरानी होगी कि लोग किस प्रकार अर्द्धपोषित हैं विशेषकर महिलाएं और बच्चे जो कि दो जून की रोटी हेतु प्रातः से सायं तक कठिन परिश्रम करते हैं और वह भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पाती। उनकी आमदनी इतनी कम होती है कि वह इतनी अपर्याप्त होती है कि वे ऐसा भोजन नहीं खरीद सकते जिससे उन्हें उपयुक्त शक्ति प्राप्त हो सके। पौष्टिक आहार की अनुपलब्धता के कारण ये लोग अनेक अभावों की बीमारियों से ग्रस्त होते रहते हैं। उनका एक अच्छा प्रतिशत तो नेत्रदृष्टि के दोषों से पीड़ित रहता है क्योंकि उनके भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी होती है। बहुत से बच्चे सूखा रोग से पीड़ित होते हैं क्योंकि उनके भोजन में विटामिन डी की कमी होती है।
हमारी अधिकतर जनता के लिए संतुलित भोजन की उपलब्धता एक टेढ़ी खीर है। लोग अधिकतर अनाज पर निर्भर करते हैं। अन्य चीजों जैसे कि साग सब्जी¸ चिकनाई¸ दूध¸ फल इत्यादि की तो उनके भोजन में बहुत ही कमी होती है जिसका परिणाम यह होता है कि उनके भोजन की कैलोरी कीमत वांछित स्तर की नहीं होती। इसलिए वे कुपोषण की बुराई के शिकार हो जाते हैं। यह समस्या उनकी अस्वास्थ्यप्रद बस्तियों से और अधिक गंभीर हो जाती है जहां वे रहते हैं। महामारियां बहुधा उन पर आक्रमण करती हैं। समय के बीतते उनकी रोगों से लड़ने की शक्ति में काफी कमी हो जाती है। स्वच्छता के अभाव में वे वायुमंडल से भी आवश्यक तत्व शोषित नहीं कर पाते। उनकी त्वचा पर गंदगी जम जाती है जो कि वायुमंडल के आवश्यक तत्वों को उनके शरीर में प्रवेश करने से रोकती है। सूर्य विटामिन ‘डी‘ का एक अच्छा स्त्रोत है किंतु उनके शरीर पर मैल की परत होने के कारण सूर्य की विटामिन युक्त किरणें उनके शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।
भारत में कुपोषण की समस्या भौतिक कारणों या खाद्य पदार्थों की कमी की वजह से इतनी नहीं है जितनी कि लोगों की अज्ञानता के कारण है। व्यापक निरक्षरता और अज्ञानता के कारण लोग खाद्य पदार्थों के पौष्टिक भाग को फेंक देते हैं। उदाहरण के लिए गेहूं का ऊपरी आवरण बहुत ही विटामिन युक्त होता है किंतु लोग इसको फेंक देते हैं। चावल के स्टार्च को फेंक दिया जाता है। दालों का प्रयोग उचित ढंग से नहीं किया जाता। विटामिन युक्त बाहरी आवरण को फेंक दिया जाता है। खाने को आवश्यकता से अधिक पकाने से उसकी पौष्टिकता नष्ट हो जाती है। काश कि लोग खाद्य पदार्थों के विभिन्न भागों की उपयोगिता समझते तो कुपोषण की समस्या का बहुत कुछ समाधान हो जाता।
भारत इतना खाद्य पदार्थ अवश्य पैदा करता है जिससे हमारी समस्त जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके किंतु इसके दोषपूर्ण वितरण से समस्या उत्पन्न होती है। बहुत से खाने को तो चूहे ही खा जाते हैं¸ काफी बर्बादी हमारी खाने की दोषपूर्ण विधि से होती है। शादी-विवाहों आदी में अच्छे खासे भोजन की बर्बादी होती है। इस बर्बादी को बचाने से लाखों भूख से सिसकते लोगों की पेट की ज्वाला शांत हो सकती है।
हमारी जनता की खाने की आदतें भी दोषपूर्ण हैं। यदि किसी प्रकार भोजन की आदतों में परिवर्तन आ जाए तो वर्तमान खाद्य आपूर्ति से पोषण की समस्या का समाधान हो सकता है। उदाहरण के लिए दुग्ध आपूर्ति का एक बड़ा भाग मावा¸ पनीर आदि तैयार करने में बर्बाद कर दिया जाता है। यदि दूध से मावा या पनीर का बनाया जाना निश्चित कर दिया जाए तो उन लोगों के लिए जो अपने जीवन में दूध देख भी नहीं पाते लाखों टन दूध उपलब्ध हो सकेगा। जीभ के स्वाद के अतिरिक्त दूध से मावा बनाकर कोई उद्देश्य हल नहीं होता। मावा हमारी पाचन प्रणाली के लिए भी हानिकारक होता है। इसलिए दूध या दही का प्रत्यक्ष रुप से उपयोग सुनिश्चित करने के लिए मावा तैयार करने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी जानी चाहिए।
खाद्य पदार्थों की वर्तमान आपूर्ति की पुष्टकारी उपयोगिता को अन्य तरीकों द्वारा भी बढ़ाया जा सकता है। मिश्रित दाल अलग-अलग दाल की अपेक्षा अधिक पुष्टकारी होती है। इसी प्रकार खमीर उठा आटा पकाने से तुरन्त पहले माढ़े गए आटे से अधिक पुष्टिकर होता है। कच्ची सब्जियाँ पकी सब्जियों से अधिक गुणकारी होती हैं। फलों के द्वारा पौष्टिक तत्वों को फलों की अनुपलब्धता की स्थिति में वह कमी कच्ची सब्जियों के मिश्रण या सलाद के द्वारा पूरी की जा सकती है। दूध को यदि अन्न के साथ लिया जाए तो वह अकेले लिए जाने की अपेक्षा अधिक पौष्टिक हो जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि हम भोजन करने की अपनी आदतों में थोड़ा सा भी परिवर्तन कर देते हैं तो कुपोषण की समस्या काफी हद तक हल हो जाती है। नाजुक मामलों में दवाई की गोलियां या विटामिन के कैप्सूलों की आपूर्ति द्वारा कुपोषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। अधिकांश रुप से तो कुपोषण की समस्या अज्ञानता की ही समस्या है जिसका असली निदान तो शिक्षा ही कर सकती है।
मिलावट से भी कुपोषण को जन्म मिलता है। भारत के व्यापारी वर्ग ने खाद्य पदार्थों में मिलावट करके अपने लाभ को बढ़ाने के प्रयास करने में काफी बदनामी कमाई है। दुग्ध की आपूर्ति करने वाले दूध में पानी ही नहीं पाउडर भी मिलाते हैं। ऐसा दुग्ध पोषण प्रदान करना तो दूर अपच¸ पेचिश आदि बीमारी भी उत्पन्न करता है। खाद्य तेल तो मुश्किल से शुद्ध प्रकार के उपलब्ध होते हैं। बिना मिलावट के शब्द की उपलब्धता अत्यंत कठिन हो गई है। पिसे हुए मसालों में तो बहुधा मिलावट होती है। अन्य प्रकार की मिलावट का उल्लेख किए जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह भारत में बहुत अधिक है इस अपराधी क्रिया को रोकने हेतु सख्त कानून भी हैं किंतु निहित स्वार्थ वाले बुराई को समाप्त करने के रास्ते में आ जाते हैं। मिलावट करने वालों को और अधिक कठोर दंड दिए जाने की आवश्यकता है और इस प्रकार के अपराधी व्यापारियों की पहचान किए जाने हेतु अभियान चलाया जाना चाहिए।
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