स्वदेश प्रेम पर निबंध। Swadesh Prem Essay in Hindi : प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है। सच्चे देश-प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य होता है। देश-प्रेम का तात्पर्य है- देश में रहने वाले जड़-चेतन सभी से प्रेम ¸देश के रहन-सहन रीति-रिवाज वेशभूषा से प्रेम¸ देश के सभी धर्मों मतों भूमि¸ पर्वत¸ नदी सभी से प्रेम और अपनत्व रखना उन सबके प्रति गर्व की अनुभूति करना।
स्वदेश प्रेम पर निबंध। Swadesh Prem Essay in Hindi
प्रस्तावना : ईश्वर द्वारा
बनायी गई सर्वाधिक अद्भुत रचना है जननी¸ जो निःस्वार्थ प्रेम की प्रतीक है प्रेम
का ही पर्याय है¸ स्नेह की मधुर बयार है¸ सुरक्षा का अटूट कवच है¸ संस्कारों के
पौधों को ममता के जल से सींचने वाली चतुर उद्यान रक्षिका है जिसका नाम प्रत्येक
शीश को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित कर देता है। यही बात जन्मभूमि के विषय में
भी सत्य है। इन दोनों का दुलार जिसने पा लिया उसे स्वर्ग का पूरा-पूरा अनुभव धरा
पर ही हो गया। इसीलिए जननी और जन्मभूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया
है।
देश-प्रेम की स्वाभाविकता : प्रत्येक देशवासी को अपने
देश से अनुपम प्रेम होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हुआ हो चाहे गर्म रेत से भरा हुआ हो, चाहे ऊँची-ऊँची पहाडियों से घिरा हुआ हो वह सबके लिए प्रिय होता है। इस
सम्बन्ध में रामनरेश त्रिपाठी की निम्नलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं
विषुवत् रेखा का वासी जो
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक वह
भी अपनी मातृभूमि पर।।
ध्रुववासी जो हिम में तम
में¸ जी लेता है काँप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर
देता है प्राण निछावर।।
प्रातःकाल के समय पक्षी
भोजन-पानी के लिए कलरव करते हुए दूर स्थानों पर चले तो जाते है परन्तु सायंकाल
होते ही एक विशेष उमंग और उत्साह के साथ अपने-अपने घोसलों की ओर लौटने लगते हैं।
जब पशु-पक्षियों को अपने घर से जन्मभूमि से अपने देश से क्यों प्यार नहीं होगा?
कहा भी गया है कि माता और जन्मभूमि की तुलना मे स्वर्ग का सुख भी तुच्छ है
जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपि गरियसी।
देश-प्रेम का अर्थ : देश-प्रेम का तात्पर्य है-
देश में रहने वाले जड़-चेतन सभी से प्रेम ¸देश की सभी झोंपड़ियों महलों तथा
संस्थाओं से प्रेम ¸देश के रहन-सहन रीति-रिवाज वेशभूषा से प्रेम¸ देश के सभी
धर्मों मतों भूमि¸ पर्वत¸ नदी¸ वन¸ तृण¸ लता सभी से प्रेम और अपनत्व रखना उन सबके
प्रति गर्व की अनुभूति करना। सच्चे देश-प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य
होता है।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी
तृप्ति आत्मिबल पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम
है करो प्रेम पर प्राण निछावर।।
देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र
है अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमें
मानवता होती है विकसित।।
सच्चा देश-प्रेमी वही होता
है जो देश के लिए निःस्वार्थ भावना बड़े
से बड़ा त्याग कर सकता है। स्वदेशी वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता है और दूसरों को
उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है। सच्चा देशभक्त उत्साही सत्यवादी
मह्त्वाकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है।
देश-प्रेम का क्षेत्र : देश-प्रेम का क्षेत्र
अत्यन्त व्यापक है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति
की भावना प्रदर्शित कर सकता है। सैनिक युद्ध-भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर, राज-नेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर, समाज-सुधारक समाज का नवनिर्माण
करके, धार्मिक नेता मानव-धर्म का उच्च आदर्श प्रस्तुत करके, साहित्यकार राष्ट्रीय
चेतना और जन-जागरण का स्वर फूँककर, कर्मचारी श्रमिक एवं किसान निष्ठापूर्वक अपने
दायित्व का निर्वाह करके, व्यापारी मुनाफाखोरी व तस्करी का त्याग कर अपनी देशभक्ति
की भावना को प्रदर्शित कर सकता है। संक्षेप में सभी को अपना कार्य करते हुए देशहित
को सर्वोपरि समझना चाहिए।
देश के प्रति कर्त्तव्य : जिस देश में हमने जन्म लिया
है जिसका अन्न खाकर और अमृत के समान जल पीकर और सुखद वायु का सेवन कर हम बलवान् हुए
हैं, जिसकी मिट्टी में खेल-कूदकर हमने पुष्ट शरीर प्राप्त किया है उस देश के प्रति
हमारे अनन्त कर्तव्य हैं। हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्यपालन और त्याग की
भावना से श्रद्धा, सेवा एवं प्रेम रखना चाहिए। हमें अपने देश की एक इंच भूमि के लिए
तथा उसके सम्मान और गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए। यह सब करने पर भी
जन्मभूमि या अपने देश के ऋण से हम कभी भी उऋण नहीं हो सकते।
भारतीयों का देश-प्रेम : भारत माँ ने ऐसे असंख्य
नर-रत्नों को जन्म दिया है जिन्होंने असीम त्याग-भावना से प्रेरित होकर
हँसते-हँसते मातृभूमि पर अपने प्राण अर्पित कर दिये। कितने ही ऋषि-मुनियों ने अपने
तप और त्याग से देश की महिमा को मण्डित किया है तथा अनेकानेक वीरों ने अपने अद्भुत
शौर्य से शत्रुओं के दाँत खट्टे किये हैं। वन-वन भटकने वाले महाराणा प्रताप ने घास
की रोटियाँ खाना स्वीकार किया परन्तु मातृभूमि की सुरक्षा के लिए गुफाओं में छिपकर
शत्रु से टक्कर ली और रानी लक्ष्मीबाई ने महलों के सुखो को त्यागकर शत्रुओं से
लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की। भगतसिंह¸ चन्द्रशेखर आजाद¸ राजगुरू¸ सुखदेव¸
अशफाक उल्ला आदि न जाने कितने देशभक्तों ने विदेशियों की अनेक यातनाएं सहते हुए
मुख से वन्देमातरम कहते हुए हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया।
उपसंहार : खेद का विषय है कि आज हमारे
नागरिकों में देश-प्रेम की भावना अत्यन्त दुर्लभ होती जा रही है। नयी पीढ़ी का
विदेशों से आयातित वस्तुओं और सांस्कृतियों के प्रति अन्धाधुन्ध मोह स्वदेश के
बजाय विदेश में जाकर सेवाएँ आर्पित करने के सजीले सपने वास्तव में चिन्ताजनक है।
हमारी पुस्तकें भले ही राष्ट्र-प्रेम की गाथाएँ पाठ्य-सामग्री में सँजोये रहें
परन्तु वास्तव में नागरिकों के ह्रदय में गहरा व सच्चा राष्ट्र-प्रेम ढूँढने पर भी
उपलब्ध नही होता। हमारे शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों को इस प्रश्न का समाधान
ढूँढना ही होगा। अब मात्र उपदेश या अतीत के गुणगान से वह प्रेम उत्पन्न नहीं हो
सकता। हमें अपने राष्ट्र की दशा व छवि अनिवार्य रूप से सुधारनी होगी।
प्रत्येक देशवासी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके देश
भारत की देश रूपी बगिया में राज्यरूपी अनेक क्यारियाँ हैं। किसी एक क्यारी की
उन्नति एकांगी उन्नति है और सभी क्यारियों की उन्नति देशरूपी उपवन की सर्वांगीण
उन्नति है। जिस प्रकार एक माली अपने उपवन की सभी क्यारियों की देखभाल समान भाव से
करता है उसी प्रकार हमें भी एक देश का सर्वींगीण विकास करना चाहिए।
स्वदेश-प्रेम मनुष्य का
स्वाभाविक गुण है। इसे संकुचित रूप में ग्रहण न कर व्यापक रूप में ग्रहण करना
चाहिए। संकुचित रूप में ग्रहण करने से विश्व-शान्ति को खतरा हो सकता है। हमें
स्वदेश-प्रेम की भावना के साथ-साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना
चाहिए।
Very nice nd useful
ReplyDeleteVery very nice essay . It helped me
DeleteNice
DeleteGood essay it help me too much
DeleteVery good essay...very useful also..
ReplyDeleteThank you.
DeleteYes
DeleteVery very very very very very very good essay bro😘😘😍😍😘😍😘
ReplyDeleteSwadesh prem
Very nice & useful for all of us
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