चन्द्रशेखर आजाद पर निबंध। Chandra Shekhar Azad Essay in Hindi : चन्द्रशेखर आजाद एक सच्चे क्रांतिकारी देशभक्त थे। उन्होंने भारत-माता की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। सन् 1920 की बात है जब गाँधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सैकड़ों देशभक्तों में च्द्रसेखर आजाद भी थे। जब मजिस्ट्रेट ने बुलाकर उनसे उनका नाम पिता का नाम और निवासस्थान पूछा तो उन्होंने बड़ी ही निडरता से उत्तर दिया- मेरा नाम है-आजाद पिता का नाम है-स्वतंत्रता और मेरा निवास है-जेल। इससे मजिस्ट्रेट आगबबूला हो गया और उसने 14 वर्षीय चन्द्रशेखर आजाद को 15 कोड़े लगाए जाने का आदेश दिया।
चन्द्रशेखर आजाद पर निबंध
इस महान् क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में भावरा गाँव में हुआ था। इसी गाँव की पाठशाला में उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। परंतु उनका मन खेलकूद में अधिक था। इसलिए वे बाल्यावस्था में ही कुश्ती, पेड़ पर चढ़ना तीरंदाजी आदि में पारंगत हो गए। फिर पाठशाला कि शिक्षा पूर्ण करके वे संस्कृत पढ़ाई छोड़कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। गाँधी जी के अहिंसक आंदोलन वापस लेने के पश्चात् 1922 में वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए। उनकी प्रतिभा को देखते हुए 1924 में उन्हें इस सेना का कमांडर-इन-चीफ बना दिया गया।
इस एसोसिएशन की प्रत्येक सश्स्त्र कार्रवाई में चन्द्रशेखर हर मोर्चे पर आगे रहते थे। पहली सश्स्त्र कार्रवाई 9 अगस्त 1925 को की गई। इसकी पूरी योजना राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा चन्द्रशेखर की सहायता से बनाई गई थी। इसे इतिहास में काकोरी ट्रेन कांड के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अंतर्गत सरकारी खजाने को दस युवकों ने छीन लिया था। पुलिस को योजना का पता लग गया था। इसमें आजाद की भागीदारी पाई गई। अंगेज सरकार ने इसे डकैती मानते हुए राम प्रसाद और अशफाकउल्ला को फाँसी की सजा और अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अगली कार्रवाई 1926 में की गई जिसमें वायसराय की रेलगाड़ी को बम से उडा दिया। इसकी योजना भी चन्द्रशेखर आजाद ने बनाई थी। इसके पश्चात् लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सांडर्स की ह्त्या कर दी गई। सांडर्स की हत्या का काम भगत सिंह को सौंपा गया था जिसे उसने पूरा किया और बच निकलने में सफल हुए। इस एसोसिएशन की अगली कारगुजारी सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना और गिरफ्तारी देना था। इस योजना में भी चन्द्रशेखर आजाद की भूमिका थी। इस प्रकार वे अंग्रेज सरकार को भारत से भगाने और भारत को उनसे आजाद कराने के लिए अनेक योजनाएँ बनाते रहे और हर योजना में वे सफल होते रहे।
परंतु 27 फरवरी 191 को सुबह साढ़े नौ बजे चन्द्रशेखर आजाद निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ऐल्फ्रेड पार्क में एक साथी कामरेड से मिलने गए। वहाँ सादा कपड़ों में पुलिस ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने अंग्रेज पुलिस से खूब लोहा लिया। फिर जब उनकी छोटी-सी पिस्तौल में एक गोली बची तो उन्होंने उसे अपनी कनपट्टी पर रखकर चला दी और इस लोक को छोड़ गए। चन्द्रशेखर आजाद ने शपथ ली थी कि वे अंग्रजों की गोली से नहीं मरेंगे। इस प्रकार उन्होंने अपने आजाद नाम को सार्थक किया। जीवन के अंतिम क्षण तक वे किसी की गिरफ्त में नहीं आए। चन्द्रशेखर आजाद एक व्यक्ति नहीं वे अपने मेँ एक आंदोलन थे। आज हम उन्हें एक महान् क्रांतिकारी के रूप में याद करते हैं।
COMMENTS