मेरा भारत महान पर भाषण और निबंध : अपना देश सचमुच ही बहुत प्यारा होता है। इसी प्यार की खातिर हमारा सैनिक देश की रक्षा हेतु हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर देता है, बच्चे पढ़-लिखकर योग्य बनने की कोशिश करते हैं। क्योंकि वे देश का भविष्य हैं। जनता अथक परिश्रम करती है ओर नेता मार्गदर्शन करते हैं ताकि देश प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे और यह सब होता है
अपना देश सचमुच ही बहुत प्यारा होता है। इसी प्यार की खातिर हमारा सैनिक देश
की रक्षा हेतु हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर देता है, बच्चे
पढ़-लिखकर योग्य बनने की कोशिश करते हैं। क्योंकि वे देश का भविष्य हैं। जनता अथक
परिश्रम करती है ओर नेता मार्गदर्शन करते हैं ताकि देश प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे और यह सब होता है इसीलिए कि सबको अपने देश से प्यार होता है।
जो भरा नहीं भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह ह्रदय नहीं इक पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
फिर मेरा देश तो अनोखा है। सबसे प्यारा सबसे न्यारा है। सारे
जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा है।
मेरे देश की सभ्यता अत्यंत प्रचीन है। संसार की प्राचीनतम
पुस्तक वेद की रचना इसी देश हमें हुई। जंबुद्वीप (एशिया) के भरतखंड में स्थित
आर्यावर्त नाम के इस संपूर्ण हिमालय से लेकर हिंद महासार तक पसरे भूखंड वाला
वसुधैव कुटुंबकम का घोष करते हुए विश्व को ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करने वाला
देश है मेरा देश भारत। इसीलिए इसे जगद्गुरू भी कहा जाता है। प्राचीन काल में
सूर्यवंश के अत्यंत प्रतापी नरेश महाराजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर इस देश
का नाम भारत हो गाय। सिंधु नदी की घाटी से लगे क्षेत्रों में बसने वालों के देश के
रूप में हमें सिंधु क्षेत्र में स्थलमार्ग से प्रवेश करने वाले विदेशियों ने देखा। वे
सिंधु को हिंदु कहते थे ओर स्थान को स्तान। जाहिर है उनकी भाषा में ध और थ ध्वनियाँ
नहीं थी। इस प्रकार हमारे इस प्यारे भारत को एक और नाम मिला-हिंदुस्तान।
हिंदुस्तान ज्ञान की गरिमा के साथ-साथ कला विज्ञान और अन्य
क्षेत्रों में अग्रणी होने के साथ-साथ अकूत धन-संपदा से संपन्न था अतः संसार-भर के
विदेशी इसे सोने की चिड़िया कहते थे।
हमारे देश की संपननता विदेशी लुटेरों को ललचाती थी और वे आकर
यहाँ से लूटखसोटकर धन-संपत्ति बटोर ले जाते थे। इन लुटेरे आक्रमणकारियों में से कई
यहाँ बस गए और उन्होंने अपनी सल्तनतें यहाँ कायम कर ली। यवन तुर्क हूण यूनानी अरब आदि अनेक
संस्कृतियाँ कभी आक्रमणकारियों के द्वारा तो कभी व्यापारिओं के द्वारा और कभी
संतों (सूफी) के माध्यम से इस देश में प्रविष्ट हुई और इसी संस्कृति में समाहित
होकर रह गई- यहीं इसी मिट्टी में रच-बस गई। यही सम्मिलित संस्कृति है जो हमारी
प्राचीन सभ्यता को अब तक अक्षुण्ण रखती आ रही है।
भारत गाँवों में बसता
है। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के बाद गाँवों में खुशहाली आई है। इस माटी में
किसी वस्तु का अभाव नहीं। रत्नाभूषण ज़ड़ी बूटियाँ खनिज और उत्तम मेधा शक्ति और
ज्ञान के अक्षय भंडार तथा पंचशील के सिद्धांतों से संपन्न मेरा यह देश आज भी संसार-भर के देशों में अग्रिम पंक्ति में स्थान रखता है।
लोकतंत्र का पुरोधा रहा है यह देश। वैशाली के गणराज्य की कथा
इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है और हम सब के संस्कारों में समाहित। इसलिए यह सहज
और स्वाभाविक है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। विश्व में आबादी के लिहाज
से हमारे देश का स्थान दूसरा है। सूचना तकनीक में हम अग्रणी हैं। कंप्युटर
सॉफ्टवेयर के मामले में हमारा कोई जवाब नहीं। हम विश्व में निर्विवाद आणविक
प्रतिरोधी क्षमता से लैस समर्थ देश के स्वाभिमानी नागरिक है। विश्व की चौथी आर्थिक
महाशक्ति है। अनेक मामलों में हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर है और जिनमें नहीं है उनमें भी तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं। हमारे वैज्ञानिकों तकनीशियनों विशेषज्ञों
का लोहा दुनिया मानती है।
पग-पग पर प्राकृतिक सुषमा समेटे मेरे देश को रत्नगर्भा माटी का
प्रताप कुछ ऐसा है कि हमारा देश आज विश्व में सक्षमता का प्रतीक बन गया है। अभी
आधी सदी से कुछ पहले तक हम गुलाम और पिछड़े थे लेकिन दुनिया ने देखा पहले हम
स्वतंत्र हुए फिर विकासशील और अब विकसित होने की कगार पर खड़े हम भारतवासी विकसित भारत के सुनहरे स्वप्न देख रहे हैं।
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