सत्संगति पर निबंध। Essay on Satsangati in Hindi : सज्जनों की संगत में रहना सत्संग या सत्संगति कहलाता है। यह शब्द सत् तथा संगति शब्दों की संधि से समुत्पन्न हुआ है और इसका अर्थ है समान गति यानी साथ-साथ रहना उठना-बैठना विचार-विमर्श करना आदि। मनुष्य तो मनुष्य समस्त जीव-जगत पर संगति का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। मानव बुरी संगति से बुरा और अच्छी संगति से अच्छा बन जाता है।
सत्संगति पर निबंध। Essay on Satsangati in Hindi
प्रश्न उठता है कि यदि संगति का प्रभाव अवश्यभावी है तो क्या संगति से बचकर रहना संभव नहीं तो इसका असंदिग्ध उत्तर है नहीं। क्यों क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। संगति से मनुष्य का जीवन ही बदल जाता है। संगति के प्रभाव से वह कुछ का कुछ बन जाता है।
प्रश्न उठता है कि यदि संगति का प्रबाव अवश्यभावी है तो क्या संगति से बचकर रहना संभव नहीं तो इसका असंदिग्ध उत्तर है। क्यों क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। संगति से मनुष्य का जीवन ही बदल जाता है। संगति के प्रभाव से वह कुछ का कुछ बन जाता है।
किसी भी मनुष्य की सफलता में सत्संगति बहुत सहायक सिद्ध होती है। सत्सगि वाणी में सच्चाई लाती है। यह बुद्धि की जड़ता को दूर कर देती है। व्यक्ति को सम्मान दिलाती तथा उन्नति की ओर अग्रसर कर देती है। सत्संग्ति से मनुष्य को मानव-जीवन के उद्देश्य का ज्ञान होता है तथा लक्ष्य के निर्धारण र सकी प्राप्ति हेतु अपेक्षित सहयोग भी।
भगवान् श्रीकृष्ण संगतिका अमोघ फल था कि अकिंचन पांडवों ने महाभारत का विकट युद्ध लड़ा और जीता। जबकि कुसंग के कारण कौए के मित्र हंस को पथिक के बाण से बिंधकर मरना पड़ा। अच्छी संगत से नाम और सम्मान तथा संपन्नता भी मिलती है किंतु कुसंगति से सिर्फ अपमान और लुकसान। सत्संगति सदैव मनुष्य का साथ देती है। मानव-जीवन में सफलता और असफलता का दारोमदार बहुत कुछ व्यक्ति की संगत पर होता है। महापुरूषों की शरण में रहने वाला सत्संग करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी असफल नहीं होता। यदि दुर्जन भी सत्संग करें तो उनका जीवन बदल सकता है।
कुसंग का प्रभाव तीव्र और शीघ्र होता है तथा व्यक्ति बड़ी आसानी से कुसंगति के चक्कर में फँस जाता है। लेकिन सज्जन बनना बहुत कठिन है। इसलिए हमें सदैव सत्संगति में रहने का यत्न करना चाहिए। भगवान् श्रीरामचंद्र के स्पर्श मात्र से अहिल्या तर गई शबरी कृतार्थ हुई वानर तथा रीछ तक पूजनीय हो गए। देवर्षि नारद के सत्संग से डाकू रत्नाकर दिकवि महर्षि वाल्मीकि हो गए। भगवान् बुद्ध के सत्संग के प्रबाव से अंगुलीमाल का जीवन सुधर गया...। ऐसे अनेक दृष्टांतों से यह स्पष्ट है कि सत्संगति का प्रभाव व्यापक और जीवमात्र के ले कल्याणकारी है तथा इससे कुछ बी हासिल कर सकना असंभव नहींहै। कर्म भक्ति और ज्ञान की त्रिविध मंदाकिनी सत्संग में बहती रहती है और व्यक्ति इसके प्रभाव से अनायास ही मनोभिलषित दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त कर लेता है।
शास्त्रों में भी सत्संगति का महत्व असंदिग्ध शब्दों में बताया गया है। सत्संग हमारे पापों को धो डालता है। इससे पाप शाप और शोक का तत्काल नाश होता है। सत्संग्ति से व्यक्ति में विनम्रता आ जाती है और वह सबका प्यारा हो जाता है। स्वामी दयानंद और बीरजानंद स्वामी रामकृष्ण और विवेकानंद गुरू गोविंद सिंह और बंदा वैरागी आदि के दृष्टांत सत्संग के प्रभाव के ज्वलंत उदाहरण हैं।
अतः हमें भी सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए।
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