भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption in Hindi : भृष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भृष्ट आचरण, परन्तु आज यह शब्द रिश्वत खोरी के अर्थ में प्रयोग किया जाता है। आज का युग भृष्टाचार का युग है। प्रत्येक देश भृष्टाचार में लिप्त है। यहाँ तक की हमारा देश भारत जो की सत्य और अहिंसा का उदाहरण है , भी भृष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त है। आज के युग में राजनीतिज्ञ, अधिकारी, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी और यहाँ तक की देश की जनता भी भृष्टाचार में लिप्त है।
भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption in Hindi
भृष्टाचार का शाब्दिक अर्थ
है भृष्ट आचरण, परन्तु आज यह
शब्द रिश्वत खोरी के अर्थ में प्रयोग किया जाता है। आज का युग भृष्टाचार का युग है। प्रत्येक देश भृष्टाचार में लिप्त है। यहाँ तक की हमारा देश भारत जो की सत्य और अहिंसा का
उदाहरण है , भी भृष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त है। आज के युग में राजनीतिज्ञ, अधिकारी, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी
और यहाँ तक की देश की जनता भी भृष्टाचार में लिप्त है। इसने व्यक्ति और समाज दोनों का भारी नुक्सान किया है
और देश को भारी क्षति पहुंचाई है। अतः इस विकराल समस्या पर गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है।
भृष्टाचार की समस्या : इसमें
कोई संदेह नहीं है की भृष्टाचार ने हमारे सामाजिक मूल्यों का गला घोंट दिया है।
भृष्टाचार के कारण समाज से नैतिकता समाप्त हो गई है। इसने हमारे रोजमर्रा के जीवन
को नष्ट करना शुरू कर दिया है। स्विस बैंकों में भारत के नेताओं, उद्योगपतियों और अभिनेताओं का अरबों-करोड़ों रुपया जमा है
जोकि भृष्टाचार से अर्जित किया गया है। यदि यही धन हमारे देश में वापस लाया जा सके
तो हमारे देश से महंगाई की समस्या दूर हो सकती है। हमारे देश में योजनायें तो बनती
हैं पर उसका करोड़ों रुपया विकास कार्य में न लगकर राजनेताओं, सरकारी अफसरों और ठेकेदारों की जेब में चला जाता है। भृष्टाचार के कारण ही
हमारा देश आज वर्ल्ड बैंक के कर्जतले दबता चला जा रहा है।
भृष्टाचार की व्यापकता :
स्वंतंत्रता प्राप्ति के समय देश की जनता नें यह सोचा था की अब हमारी सरकार होगी
और भृष्टाचार से मुक्ति मिलेगी किन्तु हुआ उसका उलटा जितना रुपया अंग्रेज लूटकर
नहीं ले गए उससे कहीं ज्यादा अपने ही देश के नेताओं ने लूटा। अब तो हालात इतने
बुरे हो गए हैं की इस भृष्टाचार रुपी दानव ने समाज को पूरी तरह अपने गिरफ्त में ले
लिया है। सरकारी कार्यालयों में बिना घूस, रिश्वत और पेट-पूजा के कोई कार्य करवा लेना असंभव हो गया है। क्लर्क के
रूप में जो व्यक्ति कुर्सी पर बैठा है वाही असली भाग्य-विधाता है। यदि क्लर्क ना
चाहे तो एड़ियां रगड़ते रहिये पर आपकी फ़ाइल पर फोर्वार्डिंग नोट नहीं लगेगा और भला
किस अफसर की मजाल है की क्लर्क की टिपण्णी के बिना फ़ाइल पास कर दे, असल में सब मिले होते हैं इस खेल में। कहावत है की राज्य में दो ही
व्यक्ति शक्तिशाली होते हैं राज्यपाल और लेखपाल। लेखपाल के लिखे को तो जिलाधीश भी
नहीं काट सकता।
राजनैतिक भृष्टाचार :
राजनेताओं का कार्य देश और देश की जनता का कल्याण करना होता है। लेकिन सबसे अधिक
भृष्टाचार तो इसी क्षेत्र में है। किसी भी देश की उन्नति देश के नेताओं पर ही
निर्भर होती है। यदि देश के नेता ईमानदार है तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक
सकता। आज के नेता कुर्सी पाने के लिए गलत से गलत काम तक कर देते हैं। चुनाव जीतने
के लिए बूथों पर कब्जा करना, गुंडागर्दी
करना, घोटाले करना, जनता से झूठे वादे
करना और न जाने क्या-क्या। चुनाव जीतकर ये नेता जनता से किये वादों को भूल जाए है
और बस अपनी जेब भरना शुरू कर देते हैं। जिन उद्योंपतियों ने चुनाव के लिए पैसा
दिया होता है उन्हें नियमों को टाक पे रखकर मनमाने ढंग से जनता को लूटने की छूट दे
दी जाती है।
आयकर की चोरी : भृष्टाचार के
ही कारण आज लाखों रुपये कमाने वाले डॉक्टर, वकील, आर्किटेक्ट आदि विभिन्न तरीकों से कर की चोरी
करते हैं। बड़े-बड़े उद्योंपतियों ने तो इसी काम के लिए चार्टेड अकाउंटेंट तक रखे
हुए हैं जिनका काम ये बताना है की कर कैसे बचाया जाए और सरकार की आँखों में धुल
झोंकी जाए। यदि सभी लोग अपने-अपने हिस्से का कर सही ढंग से चुकाने लगें तो देश से
निर्धनता समाप्त की जा सकती है।
सरकारी अधिकारी जिन्हें जनता
का सेवक माना जाता है, दोनों हाथ से जनता को लूट रहे हैं।पुलिस
का मामूली दरोगा भी चार-पांच सालों में ही गाडी, बँगला जैसी
सभी सुविधाएं जुटा लेता है।क्या सरकार उससे कभी पूछती है की उसने इतनी बचत कैसे कर
ली की लाखों की संपत्ति अर्जित कर ली ? यह सब भृष्ट आचरण से
अर्जित काला धन है जो यह जनता से लूटते हैं।
उपसंहार : इसमें कोई संदेह
नहीं है की भृष्टाचार एक गंभीर समस्या है जो पूरे देश को खोखला कर रही है। इस पर
अंकुश लगाना अत्यंत आवश्यक है। भृष्टाचार को समाप्त करने के लिए सबसे पहले राजनीति
को शुद्ध करना होगा क्योंकि जब देश के नीता ईमानदार होंगे तो किसी के लिए
भृष्टाचार करना आसान नहीं होगा। इसीलिए कहा भी गया है की जैसा राजा वैसी प्रजा, यानी अगर नेता ईमानदार होगा तो बाकियों से भी ईमानदारी की
उम्मीद की जा सकती है।
Good effort
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