पंचतंत्र की कहानी अकृतज्ञता का फल। Panchtantra Stories in Hindi : किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण बड़ा गरीब था। भिक्षा को छोड़कर उसकी जीविका का कोई साधन नहीं था। वह प्रतिदिन सवेरा होते ही भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ता। परंतु ब्राह्मण को रोज पर्याप्त भिक्षा भी नहीं मिलती थी। अतः उसे और उसके परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी दिन भरपेट भोजन नहीं मिल पाता था। ब्राम्हण भूख के कष्टों को सहते-सहते ऊब गया, तो उसने विदेश जाने का निश्चय किया। पर उसने अपने निश्चय को अपने घरवालों पर प्रकट नहीं किया। उसे भय था कि उसके घर वालों को यदि यह बात मालूम हो गई, तो वे उसे विदेश नहीं जाने देंगे।
पंचतंत्र की कहानी अकृतज्ञता का फल। Panchtantra Stories in Hindi
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण बड़ा गरीब था। भिक्षा को छोड़कर उसकी जीविका का कोई साधन नहीं था। वह प्रतिदिन सवेरा होते ही भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ता। परंतु ब्राह्मण को रोज पर्याप्त भिक्षा भी नहीं मिलती थी। अतः उसे और उसके परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी दिन भरपेट भोजन नहीं मिल पाता था। ब्राम्हण भूख के कष्टों को सहते-सहते ऊब गया, तो उसने विदेश जाने का निश्चय किया। पर उसने अपने निश्चय को अपने घरवालों पर प्रकट नहीं किया। उसे भय था कि उसके घर वालों को यदि यह बात मालूम हो गई, तो वे उसे विदेश नहीं जाने देंगे।
एक रात, जब ब्राह्मण के बाल-बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे, तो वह चुपके से विदेश के लिए रवाना हो गया। उसे कहां और किस ओर जाना है, इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था। वह एक ही दिशा में चलता चला गया। ब्राम्हण चलते-चलते एक जंगल में पहुंचा। जंगल में एक पक्का कुआं था। ब्राह्मण आराम करने के लिए पक्के कुएं की जगत पर बैठ गया। ब्राम्हण के कानों में कुछ ऐसी आवाजें पड़ी, जो कुए के भीतर से आ रही थी। वास्तव में बात यह थी कि कुएं में किसी तरह चार प्राणी गिर पड़े थे। बाघ, बंदर, सांप और सुनार। चारों कुएं से बाहर निकलने का प्रयत्न कर रहे थे, पर निकल नहीं पा रहे थे। कुएं के भीतर की आवाजों को सुनकर ब्राह्मण के मन में उत्सुकता पैदा हुई। वह कुए के भीतर झांकने लगा। बाघ की दृष्टि ब्राम्हण पर जा पड़ी। उसने बड़े ही नम्रता से कहा।’कौन हो, भाई ? दया करके मुझे इस कुएं से बाहर निकाल लो ?’
ब्राह्मण बोला, ’मैं तो ब्राम्हण हूं। तुम कौन हो ?’बाघ ने उत्तर दिया, ’मैं बाघ हूं, भाई, कुएं में गिर पड़ा हूं। मुझे बाहर निकालो, तो मैं तुम्हारा उपकार मानूंगा।’ब्राह्मण ने उत्तर दिया, ’ना ना भाई, मैं तुम्हें बाहर नहीं निकालूंगा। तुम बाहर निकलने पर मुझे मारकर खा जाओगे।’बाघ बोला, ’क्या कहते हो ? मैं उपकार करने वालों को मारकर खा लूंगा ? मैं तुम्हें वचन देता हूं, तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। इसके विपरीत, तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगा।’ब्राह्मण के मन में दया उत्पन्न हो गई। उसने सोचा परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। बाघ संकट में पड़ा है। क्यों ना उसे बाहर निकाल दिया जाए। ब्राह्मण ने बाघ को किसी तरह ऊपर खींच लिया। बाघ ने कुएं से बाहर आकर कहा, ’मैं तुम्हारा उपकार सदा याद रखूंगा। हो सके, तो कभी मेरे घर आना। में सामने, पहाड़ी की एक गुफा में रहता हूं। जब भी तुम मेरे घर आओगे, मैं तुम्हारी सेवा करूंगा, तुम्हारा आदर-सत्कार करूंगा। देखो, इस कुएं में एक सुनार भी गिरा है। वह भी कितनी ही प्रार्थना क्यों ना करें, उसे बाहर मत निकालना। उसे बाहर निकालोगे, तो दुख में फंसोगे।’
बाघ के चले जाने पर उनके भीतर से बंदर बोला, ’ब्राम्हण देवता, कृपा करके मुझे भी कुएं से बाहर निकाल दो।’ब्राम्हण ने प्रश्न किया, ’तुम कौन हो भाई ?’ब्राम्हण ने उत्तर दिया, ’मैं बंदर हूं। बाघ की भांति ही मैं भी कुएं में गिर पड़ा हूं। मुझे भी बाहर निकाल दो। मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा।’ब्राह्मण ने बंदर को भी बाहर निकाल दिया। बाहर निकलकर बंदर बोला, ’मैं सामने की पहाड़ी के नीचे वृक्ष पर रहता हूं। कभी मेरे घर अवश्य आना। तुम्हारा आदर-सत्कार करने से मुझे सुख मिलेगा। देखो, कुए के भीतर एक सुनार भी है। वह कितनी ही प्रार्थना क्यों ना करें, उसे बाहर मत निकालना।’
बंदर के बाहर आने पर कुए के भीतर से सर्प बोला, ’ब्राम्हण देवता मुझ पर भी दया करो। मुझे भी बाहर निकाल दो।’ब्राम्हण ने प्रश्न किया, ’तुम कौन हो, भाई ?’सर्प ने उत्तर दिया, ’मैं एक सांप हूं, कुएं में गिर पड़ा हूं। कृपया मुझे भी बाहर निकाल दो।’ब्राह्मण बोला, ’ना भाई ना। तुम्हें बाहर नहीं निकाल सकता। तुम्हारा क्या विश्वास, तुम मुझे ही डस लो ?’सांप ने उत्तर दिया, ’तुम मुझे बाहर निकालोगे और मैं तुम्हें डसूंगा ? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता। उपकार करने वाले को भी कोई हानि पहुंचाता है भला ? तुम मेरी बात का विश्वास करो, कृपा करके मुझे भी बाहर निकाल दो।’ब्राम्हण ने सांप को भी बाहर निकाल दिया। बाहर निकलकर सांप बोला, ’मैं तुम्हारा उपकार हमेशा याद रखूंगा। जब भी और जहां भी तुम पर कोई मुसीबत पड़े, मुझे याद करना। मैं याद करते ही तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा और तुम्हारी सहायता करूंगा। देखो, कुए के भीतर एक सुनार दी है। वह दुष्ट प्रकृति का है। उसे बाहर मत निकालना।’
सांप के चले जाने के बाद कुएं के भीतर से सुनार बोला, ’हे ब्राह्मण, मुझे भी कुएं से बाहर निकाल दो।’ब्राम्हण ने प्रश्न किया, ’तुम कौन हो, भाई?’सुनार बोला, ’मैं आदमी हूं, जाति का सुनार हूं। दया करके मुझे भी बाहर निकाल दो।’ ब्राम्हण कुछ उत्तर ना देकर मन ही मन सोचने लगा। उसे सोच-विचार में पड़ा हुआ देखकर सुनार फिर से बोला, ’तुमने बाघ, बंदर और सांप को तो बाहर निकाल दिया, मुझे निकालने में सोच विचार क्यों कर रहे हो? मैं मनुष्य जाति का हूं। मैं तुम्हारे उपकार को कभी नहीं भूलूंगा। एक सच्चे मित्र की भांति तुम्हारी सहायता करूंगा।’ ब्राम्हण के मन में दया उत्पन्न हो गई। उसने सुनार को भी बाहर निकाल दिया। सुनार बाहर निकल कर बोला, ’मैं अमुक नगर में रहता हूं, सुनारी करता हूं। आवश्यकता पड़ने पर मेरे घर अवश्य आना। मैं तुम्हारी सहायता के लिए सदैव तैयार रहूंगा।’ सुनार भी ब्राह्मण को धन्यवाद कह कर चला गया।
ब्राम्हण कामकाज की खोज में वहां से आगे बढ़ा। कई महीनों तक इधर-उधर भटकता रहा, पर उसे ना तो कोई काम-काज मिला और ना ही किसी ने उसकी सहायता की। आखिर ब्राम्हण को बंदर की याद आई। उसने सोचा, बंदर ने सहायता करने का वचन दिया था, क्यों ना उसके घर चलूं? हो सकता है कुछ काम बन जाए। ब्राह्मण बंदर के घर जा पहुंचा। बंदर ने ब्राह्मण को देखकर प्रसन्नता प्रकट की। उसने ब्राह्मण का बहुत आदर-सत्कार किया। उसे मीठे-मीठे फल खिलाएं। ब्राम्हण कई दिनों तक बंदर के घर रहा। बंदर ने आदर-सत्कार तो किया, पर कुछ धन नहीं दिया। धन उसके पास था ही नहीं, तो वह कहां से देता। कई दिनों तक ब्राह्मण बंदर के घर रहने के पश्चात वहां से चल पड़ा।
उसे बाघ की याद आई। उसने सोचा, बाघ भी इसी पहाड़ी की गुफा में रहता है, क्यों ना उससे भी मिल लूं? हो सकता है, वह मेरी कुछ सहायता कर दे। ब्राम्हण बाघ के घर जा पहुंचा। बाघ भी ब्राह्मण को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। ब्राम्हण बाघ के घर कई दिनों तक रहा। बाघ ने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया। ब्राह्मण जब बाघ के घर से जाने लगा तो बाघ ने सोने की एक जंजीर और सोने के कंगन उसे दिए। ब्राह्मण बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा, मेरी विदेश यात्रा सफल हो गई। वास्तव में सोने की जंजीर और दोनों कंगन एक राजकुमार के थे। राजकुमार शिकार के लिए पहाड़ पर गया था और बाघ के द्वारा मारा गया था। बाघ को दोनों वस्तुएं उसी से मिली थी।
ब्राम्हण जब बाघ के घर से चला गया, तो उसने सोचा, सोने की दोनों चीजों को मुझे बेच देना चाहिए। बेचने से काफी धन मिलेगा। मैं घर जाकर जब वह धन अपनी पत्नी को दूंगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी। परंतु दोनों चीजों को बेचूं तो कहां बेचूं ? अचानक ही ब्राम्हण को सुनार की याद आई। उसने सोचा, दोनों चीजों को बेचने के लिए क्यों ना सुनार के पास चला जाए ? सुनार ने कहा था, आवश्यकता पड़ने पर मेरे पास आना। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। ब्राम्हण सुनार के घर गया। सुनार ने उसे देख कर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की, उसका बड़ा आदर-सत्कार किया। ब्राह्मण ने कहा, ’सुनार भाई, मैं आपके पास एक विशेष काम के लिए आया हूं। मेरे पास सोने के दो आभूषण हैं। मैं उन्हें बेचना चाहता हूं।’
ब्राम्हण ने दोनों आभूषण को निकालकर सुनार के सामने रख दिया। सुनार दोनों आभूषणों को हाथ में लेकर बड़े ध्यान से उलट-पुलट कर देखने लगा। कुछ देर तक देखने के बाद सुनार सोचता हुआ बोला, ’दोनों आभूषण है तो अच्छे, पर खरीदने से पूर्व मैं इन्हें एक और सुनार को दिखाना चाहता हूं, तुम यहीं आराम करो। मैं अभी इन्हें दिखाकर आ रहा हूं।’ सुनार ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा, ’यह ब्राम्हण देवता मेरे मित्र हैं। तुम इनके खाने-पीने का प्रबंध करो। मैं अभी थोड़ी देर में लौट कर आ रहा हूं।’
सुनार दोनों आभूषणों को लेकर अपने घर से निकल पड़ा। वह सीधे राजा के पास गया। उसने राजा से कहा, ’महाराज, राजकुमार के गले की जंजीर और हाथ के दोनों कंगन मुझे मिल गए हैं। यह देखिए, मैं इन्हें अच्छी तरह पहचानता हूं, क्योंकि यह दोनों ही चीजें मेरे हाथों की बनाई हुई है।’ सुनार ने दोनों ही आभूषण राजा के सामने रख दिए। राजा ने आभूषणों को हाथ में लेकर देखते हुए कहा, ’तुम्हें यह दोनों आभूषण कहां से और कैसे प्राप्त हुए ?’ सुनार ने उत्तर दिया, ’महाराज, एक ब्राम्हण मेरी दुकान पर बैठा हुआ है। मैं उसे भली भांति पहचानता हूं।’
राजा क्रोधित हो उठा। उसने सिपाहियों को बुलाकर कहा, ’तुम सब सुनार के साथ जाओ। इसकी दुकान पर जो ब्राम्हण बैठा हुआ है, उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दो। फिर मैं उसके भाग्य का निपटारा करूंगा।’ सिपाहियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया और ब्राह्मण को जेल में डाल दिया। ब्राम्हण आश्चर्यचकित हो उठा। उसने जब सिपाहियों से अपना अपराध पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया, ’यह तो तुम्हें महाराज ही बताएंगे।’ राजा ने आभूषणों को देखकर सोचा, हो ना हो ब्राह्मणों ने ही ब्राम्हण ने ही राजकुमार की हत्या की है, क्योंकि बहुत खोजने पर भी राजकुमार का कहीं पता नहीं चल सका था। पता कैसे भी चलता, उसे तो बाघ मारकर खा गया था। राजकुमार के आभूषणों को देखकर सुनार ने भी यही समझा कि ब्राम्हण ने ही राजकुमार की हत्या की है। वह ब्राम्हण के उपकार को तो भूल गया और राजा से पुरस्कार पाने के लालच में उसे बंदी बनवा दिया।
कारागार में ब्राम्हण दुखी होकर सोचने लगा, आखिर उसने ऐसा कौन सा अपराध किया है, जिसके कारण राजा के सिपाहियों ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। ब्राह्मण ने बहुत सोच-विचार किया, पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया। ब्राह्मण ने जब देखा, अब उसके छुटकारे का कोई उपाय नहीं है, तो संकट की इस घड़ी में उसे सांप की याद आई। उसने सोचा कि सांप ने कहा था, जब और जहां विपत्ति पड़े मुझे याद करोगे, तो मैं सहायता के लिए अवश्य आऊंगा। फिर मैं क्यों ना सांप को याद करूं। ब्राह्मण ने सांप को याद किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि याद करते ही सांप कारागार की कोठरी में उपस्थित हो गया और ब्राम्हण से बोला, ’मित्र ब्राम्हण, तुमने मुझे क्यों याद किया ?’ ब्राम्हण ने बड़े दुख के साथ अपनी कहानी सुना दी। सांप ब्राम्हण की कहानी सुनकर बोला, ’मैंने तुम्हें मना किया था कि सुनार को कुएं से बाहर मत निकालना, पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। आखिर दुष्ट सुनार ने तुम्हें संकट में फंसा ही दिया।’
ब्राह्मण बोला, ’जो होना था वह तो अब हो चुका है। अब दया करके मुझे जेल से मुक्ति दिलाने का उपाय करो।’ सांप ने सोचते हुए उत्तर दिया, ’कुछ तो करना ही पड़ेगा। मुझे एक उपाय सूझा है। मैं राजभवन जाकर रानी को डस लूंगा। वह मेरे विष से मूर्छित हो जाएगी। होश तभी आएगा, जब तुम उसके सिर पर अपना हाथ रखोगे। रानी के बेहोश होने पर राजा देश-विदेश के चिकित्सकों को बुलाएगा, पर कुछ भी परिणाम नहीं निकलेगा। तुम भी रानी के पास जाना। जब तुम रानी के सिर पर हाथ रखोगे तो विष का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। रानी होश में आ जाएगी। राजा प्रसन्न होकर तुम्हें जेल से तो छोड़ ही देगा, और सुनार को दंड भी देगा।’
सांप ब्राम्हण को समझाकर राजभवन में जा पहुंचा। उसने रानी को डस लिया। रानी विष के प्रभाव से मूर्छित हो गई। राजभवन में कोहराम छा गया। सारी प्रजा हाय हाय करने लगी। राजा ने अनेक प्रकार की दवाएं खिलायीं, झाड़-फूंक भी कराई, पर कुछ भी लाभ नहीं हुआ। आखिर राजा ने ढिंढोरा पिटवाया। जो भी आदमी रानी को होश में ला देगा, उसे बहुत बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। पुरस्कार के लोभ में देश-विदेश के चिकित्सक राजा की सेवा में उपस्थित हुए पर किसी की भी औषधि से रानी को होश नहीं आया।
राजा निराश हो गया। उसने सोचा कि अब रानी के प्राण शायद ही बच सकें। राजा का ढिंढोरा ब्राम्हण के कानों में भी पड़ा। ब्राह्मण ने जेल के पहरेदार से कहा, ’भाई, यदि तुम मुझे रानी के पास ले चलो तो मैं उन्हें होश में ला सकता हूं।’ पहरेदार ने ब्राम्हण की बात राजा को बताई। राजा की आज्ञा से ब्राह्मण ने जैसे ही अपना दाहिना हाथ रानी के सिर पर रखा, विष का प्रभाव दूर हो गया और रानी होश में आ गई। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने ब्राम्हण से पूछा, तुम कौन हो ? तुम जेल में क्यों और किस तरह पहुंचाए गए ?’ ब्राम्हण ने प्रारंभ से लेकर अंत तक पूरी कहानी राजा को सुना दी। राजा बड़ा प्रभावित हुआ। उसने ब्राम्हण को कारागार से मुक्त कर दिया और अकृतज्ञ सुनार को बंदी बनाकर जेल में डलवा दिया। राजा ने ब्राह्मण का आदर-सत्कार किया और उसे पुरस्कार में ढेर सारा धन दिया। ब्राह्मण अपने बाल बच्चों को भी वही बुलाकर बड़े सुख के साथ रहने लगा।
अच्छे कामों का फल सदा अच्छा ही होता है।
मित्र के साथ सदैव मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।
उपकारी के प्रति अकृतज्ञता करने पर दंड अवश्य भोगना पड़ता है।
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