चुहिया की शादी हिंदी कहानी। Chuhiya ki Shaadi Hindi Story: एक नदी के किनारे पर साधुओं का आश्रम था। आश्रम में साधु महात्मा रहते थे। वह भिक्षा मांग कर खाते और भजन कीर्तन में लगे रहते थे। साधुओं के गुरु बड़े तपस्वी हैं। उनमें चमत्कारी शक्तियां थी। वह योग और मंत्र की शक्ति से कुछ का कुछ कर दिया करते हैं। वह अपनी पत्नी के साथ आश्रम में रहते थे। सुबह का समय था। सूर्य की किरणें फैल गई थी। तपस्वी नदी के किनारे पर बैठ कर प्रार्थना में संलग्न थे। अचानक ही उनके सामने एक चुहिया गिर पड़ी। चुहिया भूरे रंग की थी, लंबी पूछ थी, चमकीले नेत्र थे। तपस्वी को उस पर दया आ गई।
चुहिया की शादी हिंदी कहानी। Chuhiya ki Shaadi Hindi Story
एक नदी के किनारे पर साधुओं का आश्रम था। आश्रम में साधु महात्मा रहते थे। वह भिक्षा मांग कर खाते और भजन कीर्तन में लगे रहते थे। साधुओं के गुरु बड़े तपस्वी हैं। उनमें चमत्कारी शक्तियां थी। वह योग और मंत्र की शक्ति से कुछ का कुछ कर दिया करते हैं। वह अपनी पत्नी के साथ आश्रम में रहते थे।
सुबह का समय था। सूर्य की किरणें फैल गई थी। तपस्वी नदी के किनारे पर बैठ कर प्रार्थना में संलग्न थे। अचानक ही उनके सामने एक चुहिया गिर पड़ी। चुहिया भूरे रंग की थी, लंबी पूछ थी, चमकीले नेत्र थे। तपस्वी को उस पर दया आ गई। उन्होंने उसे उठाकर हथेली पर रख लिया। वह उनकी हथेली पर बैठकर उनकी ओर देखने लगी।
तपस्वी के मन में चुहिया के प्रति और भी अधिक दया जाग उठी। उन्होंने मंत्र पढ़कर उस पर जल छिड़क दिया। वह चुहिया एक सुंदर कन्या में बदल गई। तपस्वी उस कन्या को अपनी पत्नी के पास ले गए। उन्होंने पत्नी से कहा, ‘ तुम्हारी कोई संतान नहीं है। तुम अपनी संतान के समान ही इस कन्या का पालन-पोषण करो। ‘ तपस्वी की पत्नी बड़े प्रेम से कन्या का पालन पोषण करने लगी।
कन्या ज्यों-ज्यों बड़ी होने लगी, क्यों क्यों उसका रूप भी लिखने लगा। बड़ी होने पर वह पूर्णिमा के चांद की भांति निखर उठी। कन्या जब विवाह योग्य हुई, तो तपस्वी के मन में उसके लिए वर खोजने की चिंता हुई। उन्होंने सोचा, कन्या बड़ी रूपवती है, अतः इसका वर भी इसी के समान सुंदर और रूपवान होना चाहिए।
तपस्वी ने विचारकर देखा, तो कन्या के लिए उन्हें सूर्य की सबसे उपयुक्त वर जान पड़ा। तपस्वी ने मंत्र की शक्ति से सूर्य को अपने पास बुलाया। सूर्य ने तपस्वी से पूछा, ‘महात्मा, आपने मुझे किस लिए बुलाया है?‘ तपस्वी ने उत्तर दिया, ‘मेरी कन्या बड़ी रूपवती है। उसके लिए आप ही उपयुक्त वर हैं। मैं चाहता हूं, आप पत्नी के रूप में मेरी कन्या को स्वीकार करें।‘
कन्या पास में ही खड़ी थी। सूर्य के उत्तर देने के पूर्व ही बोल उठी, ‘पिताजी, यह बहुत गर्म रहते हैं, मैं इनके साथ विवाह नहीं करूंगी।‘ जब कन्या ने ही अस्वीकार कर दिया, तो तपस्वी क्या करते हैं? उन्होंने सूर्य की ओर देखते हुए कहा, ‘क्षमा कीजिए सूर्यदेव। कृपया बताइए, क्या आप से भी कोई बड़ा है?‘ सूर्य ने उत्तर दिया, ‘मुझसे भी बड़ा बादल है। वह मुझे भी ढक लेता है।‘
तपस्वी ने मंत्र की शक्ति से बादल को अपने पास बुलाया। बादल ने तपस्वी से प्रश्न किया, ‘महाराज, आपने मुझे किसलिए बुलाया है?‘ तपस्वी ने उत्तर दिया, ‘मेरी कन्या बड़ी रूपवती है। आप तीनों लोकों में सबसे बड़े हैं। अतः मैं आपके साथ ही अपनी कन्या का विवाह करना चाहता हूं।‘ कन्या पास ही खड़ी थी। वह नाक सिकोड़कर बोली, ‘पिताजी, यह तो बहुत काले रंग के हैं। मैं इनके साथ विवाह नहीं करूंगी।‘
तपस्वी मौन हो गए। उन्होंने बादल से कहा, ‘मुझसे मुझे बड़ा दुख है। कृपया बताइए, आप से भी बड़ा कोई है?‘ बादल ने उत्तर दिया, ‘मुझसे बड़ा पवन है, क्योंकि वह मुझे एक जगह स्थिर नहीं रहने देता।‘ तपस्वी ने मंत्र की शक्ति से पवन को बुलाया। पवन ने तपस्वी से पूछा, ‘तपस्वी जी, आपने मुझे किस लिए बुलाया है?‘
तपस्वी ने उत्तर दिया, ‘आप तीनों लोकों में सबसे बड़े हैं, मैं अपनी सुंदर कन्या का विवाह आपके साथ करना चाहता हूं।‘ कन्या पास ही खड़ी हुई थी। वह उंगलियों को नचाती हुई बोली, ‘पिताजी, यह तो सदा चलते ही रहते हैं। मैं इनके भी साथ विवाह नहीं करूंगी।‘ तपस्वी ने दुखी होकर पवन की ओर देखते हुए कहा, ‘पवन देव, क्षमा कीजिए। दया करके बताइए कि क्या आप से भी कोई बड़ा है?‘
पवन देव ने उत्तर दिया, ‘मुझसे बड़ा पहाड़ है। मैं सबको तो उड़ा ले जाता हूं, पर पहाड़ को नहीं उड़ा पड़ता।‘ तपस्वी ने मंत्र की शक्ति से पहाड़ को भी बुलाया। पहाड़ ने पूछा, ‘हे महात्मा, क्या आज्ञा है?‘ तपस्वी ने उत्तर दिया, ‘आप सबसे बड़े हैं। मैं अपनी रुपवती और गुणवती कन्या का हाथ आपके ही हाथ में देना चाहता हूं।‘ कन्या सुन रही थी। वह अपनी भौहों को नचाती हुई बोली, ‘इनका ह्रदय तो बड़ा कठोर है। मैं इनके साथ विवाह नहीं करूंगी।‘
तपस्वी ने पहाड़ की ओर देखते हुए कहा, ‘कृपा करके बताइए, क्या आप से भी कोई बड़ा है?‘ पहाड़ ने उत्तर दिया, ‘चूहा, मुझसे भी बड़ा है, क्योंकि वह खोदकर मुझमें भी बिल बना लेता है।‘ तपस्वी ने चूहे को बुलाया। चूहे को देखते ही कन्या प्रसन्न हो उठे। वह मुस्कुराती हुई बोली, ‘यही मेरे योग्य वर है। मैं इन्हीं को ढूंढ रही थी।‘ तपस्वी ने मंत्र की शक्ति से कन्या को फिर से चुहिया बना दिया। चुहिया प्रसन्न होकर चूहे के साथ चली गई।
कोई कितना ही प्रयत्न क्यों ना करें, पर स्वभाव नहीं बदलता।
कहानी से शिक्षा:
जीवों के प्रति दया दिखाना सबसे बड़ा धर्म है।
संसार में ईश्वर को छोड़कर कोई बड़ा नहीं है।
प्रयत्न करने पर भी जातीय गुण और स्वभाव नहीं बदलता।
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