ब्राह्मण का सपना पंचतंत्र की कहानी: एक गांव में एक ब्राम्हण रहता था। ब्राह्मण बड़ा गरीब था। वह भीख मांगकर जीवन का निर्वाह किया करता था। घर में कोई दूसरा नहीं था। एक बार भीषण सूखा पड़ा। ब्राम्हण को कई दिनों तक भीख में कुछ भी नहीं मिला। 5 से 6 दिनों के पश्चात उसे एक बड़ी हांडी भर के आटा प्राप्त हुआ। उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं रही। वह आटा लेकर घर आ गया। ब्राह्मण आटे से भरी हुई हांडी को अपनी चारपाई के पास लटकाकर लेट गया। परंतु उसे नींद नहीं आई, उसकी दृष्टि हांडी पर ही लगी हुई थी।
ब्राह्मण का सपना पंचतंत्र की कहानी
एक गांव में एक ब्राम्हण रहता था। ब्राह्मण बड़ा गरीब था। वह भीख मांगकर जीवन का निर्वाह किया करता था। घर में कोई दूसरा नहीं था। एक बार भीषण सूखा पड़ा। ब्राम्हण को कई दिनों तक भीख में कुछ भी नहीं मिला। 5 से 6 दिनों के पश्चात उसे एक बड़ी हांडी भर के आटा प्राप्त हुआ। उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं रही। वह आटा लेकर घर आ गया। ब्राह्मण आटे से भरी हुई हांडी को अपनी चारपाई के पास लटकाकर लेट गया। परंतु उसे नींद नहीं आई, उसकी दृष्टि हांडी पर ही लगी हुई थी।
ब्राम्हण आटे से भरी हुई हांडी को देखकर मन ही मन कल्पनाओं का जाल बुनने लगा, ‘अहा आज मुझे हांडी भरके आटा प्राप्त हुआ है। मैं तीन-चार दिनों तक भिक्षा मांगने नहीं जाऊंगा। रोटियां बना कर बड़े सुख से खाऊंगा और पूरे दिन सोऊंगा।‘ पर इससे क्या होगा? तीन से चार दिनों में जब आटा समाप्त हो जाएगा, तो मुझे फिर भिक्षा मांगने के लिए जाना पड़ेगा। नहीं नहीं, मैं आटे की रोटियां बनाकर नहीं खाऊंगा। मैं बाजार में ले जाकर इसे बेचूंगा। चारों और सूखा पड़ा है। आटा बेचने से अधिक लाभ प्राप्त होगा। मैं एक स्थान पर खड़ा होकर, जोर-जोर से कहूंगा ‘लो भाई ताजा आटा ले लो, ताजा आटा ले लो।‘ कोई दो रुपया दाम लगाएगा, कोई 5 रूपया दाम लगाएगा, पर मैं 20 से कम नहीं लूंगा। आखिर एक अमीर आदमी आएगा। 20 रूपया देकर आटा खरीद लेगा।
अहा, हां, मेरे पास 20 रुपये हो जाएंगे। मैं अपने लिए अच्छी धोती खरीदूंगा, एक कुर्ता भी सिलवा लूंगा, पर नहीं-नहीं, मैं यह सब-कुछ नहीं करूंगा। मैं 20 रुपये की एक बकरी खरीद लूंगा। बकरी बच्चे देगी एक, दो, तीन। बच्चे बड़े होंगे। में बकरी के बच्चों को ले जाकर बाजार में बेचूंगा। एक स्थान पर खड़ा होकर जोर-जोर से कहूंगा ‘लो, बकरी के बच्चे ले लो, बकरी के हष्टपुष्ट बच्चे ले लो।‘ कोई 10 रुपये दाम लगाएगा, कोई 20 रुपये, पर मैं 50 रुपये से कम नहीं लूंगा। आखिर एक धनी मनुष्य आएगा, 50 रुपये में बकरी के बच्चों को खरीद लेगा।
अहा, हां, मेरे पास 50 रुपये हो जाएंगे। मैं अपने लिए बढ़िया जूता खरीद लूंगा, एक कोट भी लूंगा, पर नहीं, नहीं मैं यह सब-कुछ नहीं करूंगा। मैं 50 रुपये से एक गाय खरीद लूंगा। गाय बछिया देगी, बछड़े देगी। बछिया भी गाय बनेगी। वह भी बछिया देगी, बछड़े देगी। मेरे पास कई गायें हो जाएंगी। प्रतिदिन अधिक मात्रा में दूध पैदा होगा। मैं दूध, दही और घी का व्यापार कर लूंगा। खूब पैसे कमाऊंगा।
जब अधिक रुपया एकत्र हो जाएगा, तो हीरे-जवाहरात का व्यापार करूंगा। सुंदर भवन बनाऊंगा, बाग-बगीचे लगवा लूंगा। बड़े सुख से जीवन व्यतीत करूंगा। बड़े-बड़े धनपति मेरे पास आएंगे और मुझ से प्रार्थना करेंगे कि उनकी पुत्री से विवाह कर लूं, पर मैं राजा की पुत्री को छोड़कर और किसी से विवाह नहीं करूंगा। मैं राजा की पुत्री के साथ विवाह करके बड़ी आन-बान के साथ अपने भवन में रहूंगा। पुत्र और पुत्रियां पैदा होंगी। मैं प्रतिदिन अपने छोटे-छोटे पुत्र और पुत्रियों को लेकर बगीचे में सैर के लिए जाया करूंगा। कोई मेरा हाथ पकड़कर इधर खींचेगा, कोई उधर खींचेगा। मैं प्यार से किसी को गोद में उठा लूंगा और किसी के मुख पर ऐसा तमाचा लगाऊंगा कि वह रोने लगेगा।
ब्राह्मण ने आनंद में मग्न होकर बच्चे के मुंह पर तमाचा लगाने के लिए जोर से अपना हाथ ऊपर उठाया तो लटकती हुई आटे की हांडी में हाथ का धक्का लगा। हांडी नीचे गिर कर टूट गई। हांडी का सारा आटा जमीन पर फैल गया। हांडी टूटने की आवाज से ब्राम्हण के सपने भी टूट गए। वह बड़े ही आश्चर्य के साथ बोल उठा ‘अरे यह क्या हुआ?‘ हांडी नीचे गिर कर टूट गई है और सारा आटा जमीन पर फैल गया है। ना कहीं बगीचा था, ना पुत्र थे, ना पुत्रियां थी। ब्राह्मण चीख उठा, ‘हाय, मेरा सुंदर बगीचा कहां गया ? कहां गए मेरे पुत्र और कहां गई मेरी पुत्रियां ?‘ धीरे-धीरे ब्राह्मण जब अपने आपे में आया, तो उसे यह जानकर बड़ा दुख हुआ, यह सब तो कल्पना के स्वप्न थे, उसने स्वप्न में ही हांडी के आटे को मिट्टी में मिला दिया था।
कहानी से शिक्षा:
कल्पनाओं के जालना बुनकर परिश्रम से काम करना चाहिए।
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