पंचतंत्र की कहानी - विचित्र बालक : एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। पति और पत्नी दोनों पुत्र की कामना से लगातार व्रत-उपवास और पूजा-पाठ किया करते थे। वर्षों पूजा-पाठ करने के पश्चात ब्राह्मण की कामना बलवती हुई। उसके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया, पर वह पुत्र मनुष्य नहीं सांप था। सांप के पैदा होने की खबर जब गांव में फैली तो गांव के लोग दौड़-दौड़ कर उसे देखने के लिए ब्राह्मण के घर जा पहुंचे। लोगों ने सांप को देखकर ब्राह्मण को सलाह दी कि सांप को बढ़ने नहीं देना चाहिए, बढ़ने पर यह हानि पहुंचाएगा इसलिए इसे मार देना चाहिए। पर ब्राह्मण की पत्नी को गांव के लोगों की सलाह पसंद नहीं आई।
पंचतंत्र की कहानी - विचित्र बालक
एक गांव
में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। पति और पत्नी
दोनों पुत्र की कामना से लगातार व्रत-उपवास और पूजा-पाठ किया करते थे। वर्षों पूजा-पाठ करने के पश्चात ब्राह्मण की कामना बलवती हुई। उसके घर में
एक पुत्र ने जन्म लिया, पर वह पुत्र मनुष्य नहीं सांप था।
सांप के पैदा होने की
खबर जब गांव में फैली तो गांव के लोग दौड़-दौड़ कर उसे देखने के लिए ब्राह्मण के
घर जा पहुंचे। लोगों ने सांप को देखकर ब्राह्मण को सलाह दी कि सांप को बढ़ने नहीं
देना चाहिए, बढ़ने पर यह हानि पहुंचाएगा इसलिए इसे मार देना चाहिए। पर ब्राह्मण की
पत्नी को गांव के लोगों की सलाह पसंद नहीं आई। उसने कहा कि सांप हो या कुछ और,
मेरे गर्भ से पैदा हुआ है अतः वह मेरा पुत्र है। भले ही वह बड़ा होने पर मुझे हानि
पहुंचाए, पर मैं तो सच्चे हृदय से उसका पालन-पोषण करूंगी।
ब्राह्मणी की बात सुनकर
ब्राह्मण चुप हो गया। गांव के लोग भी मौन हो गए। ब्राह्मणी बड़े प्यार से सांप का
पालन-पोषण करने लगी। वह प्रतिदिन सांप को नहलाती, खिलाती-पिलाती और एक संदूक में
मुलायम बिछौना बिछाकर सुला दिया करती। वह सांप को लोरियां और मीठे-मीठे गीत भी
सुनाया करती थी। सांप जैसे-जैसे बड़ा होने लगा, वैसे-वैसे ब्राह्मणी के मन का हर्ष
भी बढ़ने लगा। वह उसे देखकर फूली नहीं समाती। प्रतिदिन उसकी दीर्घायु के लिए भगवान
से प्रार्थना भी किया करती थी।
धीरे-धीरे सांप बड़ा हुआ। ब्राह्मणी जब गांव के अन्य
लड़कों का विवाह होते देखती, तो उसके मन में इच्छा पैदा होती कि वह भी अपने बेटे
सांप का विवाह करें और घर में बहू लाए। एक दिन वह ब्राह्मणी ने अपने मन की बात
ब्राह्मण को बताई। वह सांप के विवाह को लेकर उदास बैठी हुई थी। ब्राह्मण ने उसकी
उदासी का कारण पूछा, तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा कि तुम्हें ना तो मेरी
चिंता रहती है और ना ही मेरे बेटे की चिंता रहती है। गांव के लोग अपने-अपने बेटों
का विवाह करते हैं, पर तुम्हें अपने बेटे के विवाह की कोई चिंता ही नहीं है। हमारा
लड़का भी अब विवाह के योग्य हो गया है। जैसा भी
हो, अब उसका विवाह कर देना चाहिए।
ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण चकित हो उठा।
उसने आश्चर्य भरे स्वर में कहा, “क्या कह रही हो ? तुम्हारा बेटा तो सांप है। क्या
तुम सांप का विवाह करने के लिए कह रही हो ? ब्राह्मणी बोली, “हां, हां मैं सांप के
ही विवाह के लिए कह रही हूं। चाहे जैसा भी हो, उसके लिए लड़की की खोज करो।
ब्राम्हण बोल उठा कि कहीं तुम पागल तो नहीं हो गई हो। भला सांप से कौन अपनी लड़की
का विवाह करेगा ? ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को समझाया, पर वह अपनी बात पर अड़ी रही।
उसने कहा, “यदि मेरे लड़के के विवाह के लिए लड़की की खोज नहीं करोगे, तो मैं अपने
प्राण त्याग दूंगी।“ आखिर ब्राम्हण करता तो क्या करता ? पत्नी की बात मानकर उसने
लड़की की तलाश शुरू कर दी।
ब्राम्हण ने आसपास के कई गांवों में लड़की की खोज की,
पर कोई भी आदमी सांप के साथ अपनी लड़की का विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ। वह
जहां भी जाता था, लोग उसकी हंसी तो उड़ाते ही थे, उसे फटकार भी लगाते थे। पर फिर भी
ब्राह्मण लड़की की खोज में लगा रहा। धीरे-धीरे कई महीने बीत गए। एक दिन ब्राम्हण, लड़की की खोज में एक नगर गया। उस नगर में उसका
एक घनिष्ठ मित्र रहता था। वह 15-16 वर्षों से अपने उस मित्र से नहीं मिल सका था। ब्राम्हण में सोचा
कि जब इस नगर में आया हूं, तो क्यों ना अपने मित्र से मिल लूं। ब्राम्हण अपने
मित्र से मिलने के लिए उसके घर जा पहुंचा। ब्राम्हण कई दिनों तक अपने मित्र के घर
रहा। मित्र ने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया।
ब्राह्मण जब जाने लगा, तो मित्र से पूछा,
“भाई, तुमने तो यह बताया ही नहीं कि यहां किस काम से आए थे ?” ब्राम्हण ने उत्तर
दिया, “भाई, मैं अपने बेटे के विवाह के लिए किसी योग्य लड़की की तलाश में निकला
हूं। यहां भी इसीलिए आया था।“ ब्राम्हण की बात सुनकर मित्र बोल उठा, “अरे ! तुमने
पहले क्यों नहीं बताया ? लड़की तो अपनी ही है। देखने में सुंदर है, गुणवती भी है।
ब्राह्मण बीच में ही बोला, “क्या कह रहे हो, तुम्हारी अपनी लड़की है ? तुम अपनी
लड़की का विवाह मेरे लड़के के साथ करोगे ?” मित्र बोला, “हां, हां, क्यों नहीं
करूंगा। मैं अपनी लड़की का विवाह तुम्हारे लड़के के साथ करके खुशी का
अनुभव करूंगा।“ मित्र बोला, “ठीक है, पर एक बार मेरे लड़के को देख तो लो।“ मित्र
ने उत्तर दिया, “अरे ! देखना क्या है। मैं तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को अच्छी तरह
जानता हूं। जब तुम दोनों अच्छे हो तो तुम्हारा लड़का भी अच्छा ही होगा। मैं अपनी
लड़की तुम्हारे हवाले करता हूं। तुम उसे अपने घर ले जाओ। अपने लड़के का उसके साथ
विवाह कर देना।“ ब्राम्हण मौन रह गया।
मित्र ने अपनी लड़की को बुलाकर उसे ब्राम्हण
के साथ भेज दिया। गांव की स्त्रियों ने ब्राम्हण के मित्र की पुत्री से कहा की
तुम्हारा विवाह सांप के साथ हुआ है, तुम उसके साथ कैसे रहोगी ? अभी कुछ बिगड़ा
नहीं है। अपने पिता के घर चली जाओ। सांप की पत्नी ने उत्तर दिया, “मेरे पिता ने
अगर मुझे सांप के ही हवाले किया है, तो मैं उसी के साथ रहूंगी। ईश्वर की जो इच्छा
होती है, वही होता है। भगवान ने मेरे भाग्य में पति के रुप में सांप ही लिखा था।
वह सांप को पति मानकर उसके साथ रहने लगी। वह उसे खाना बना कर खिलाती, उससे प्रेम
करती और रात में उसका बिस्तर लगाया करती थी। वह रात को उसी कमरे में सोती थी,
जिसमें सांप का संदूक रखा हुआ था।
धीरे-धीरे कई महीने बीत गए। एक दिन रात में सांप
की पत्नी कमरे में सो रही थी। अचानक उसकी नींद खुली तो उसने कमरे में एक सुंदर
युवक को देखा। वह डर गई और सहायता के लिए अपने ससुर को बुलाने लगी। पर युवक ने उसे
रोककर कहा, “डरो नहीं, मैं कोई और नहीं हूं, मैं तुम्हारा पति हूं। पर पत्नी को
विश्वास नहीं हुआ। उसने कहा, “मेरा पति तो सांप है। सांप मनुष्य कैसे हो सकता है ?
युवक पत्नी के संदेह को दूर करने के लिए वही पड़े सांप के शरीर में समा गया और फिर
बाहर निकल कर मनुष्य बन गया। पत्नी के मन का संदेह दूर हो गया। वह बड़े प्रेम और
सुख के साथ रहने लगी। उसका पति दिन भर तो सांप के रूप में रहता था, पर जब रात होती
थी तो युवक का रूप धारण कर लेता था। सवेरा होने पर वह फिर सांप के शरीर में समा
जाता था।
संयोग की बात, ब्राह्मण ने रात में अपनी पुत्रवधू के कमरे में किसी पुरुष
की आवाज सुनी। उसके मन में संदेह पैदा हुआ। उसने सोचा कि उसकी बहू रात में किसी
पुरुष को तो नहीं बुलाती ? ब्राह्मण ने पता लगाने का निश्चय किया। एक रात वह कमरे
में छुप गया और किसी पुरुष के आने की राह देखने लगा। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सांप
के संदूक से एक युवक बाहर निकला और रात भर उसकी पुत्रवधू के साथ रहकर फिर सांप के शरीर में समा गया।
ब्राह्मण के मन का संदेह दूर हो गया। उसे इस बात से बड़ा दुख पहुंचा कि उसने
व्यर्थ ही अपनी बहू पर संदेह किया। वह सांप साधारण सांप नहीं है, कोई देवता है।
ब्राह्मण ने युवक को पकड़ने का निश्चय किया।
एक रात ब्राम्हण फिर कमरे में छिप गया।
रात में जब सांप के संदूक से वही युवक बाहर निकला, तो ब्राह्मण ने चुपके से सांप
के शरीर को ले जाकर आग में डाल दिया। सांप का शरीर जलकर भस्म हो गया। सवेरा होने
पर युवक जब संदूक के पास गया, तो वहां सांप का शरीर ना देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसी
समय ब्राह्मण भी प्रकट हो गया। अब युवक को यह समझते देर नहीं लगी कि सांप का शरीर
किसने गायब किया है।
युवक प्रसन्नता के साथ बोला, “पिताजी, आपने मुझे सांप के शरीर
से छुटकारा दिलाकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। मैं श्राप के कारण सांप के
शरीर में रहता था। श्राप देने वाले ने कहा था कि जब कोई आदमी सांप के शरीर को
जलाकर भस्म कर देगा, तो तुम सांप के शरीर से छुटकारा पाकर मनुष्य बन जाओगे। अब मैं
मनुष्य के रुप में आपका पुत्र हूं और आप मेरे पिता हैं। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ही
दोनों युवक की बात सुनकर बड़े प्रसन्न हुए। दोनों अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ
सुख से रहने लगे।
कहानी से
शिक्षा :
मां बुरे
पुत्र से भी स्नेह करती है।
कर्तव्य
का पालन करने से सुख मिलता है।
धैर्य और
सेवा का फल सुखद होता है।
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